टाटा के कर्मचारियों के लिए ‘56 का समझौता’ गीता-बाइबिल और कुरआन के कम नहीं, 94 साल से एक भी हड़ताल नहीं, औद्योगिक शांति ही शांति
कर्मचारियों के मुद्दों को हल करने और औद्योगिक शांति के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सुभाषचंद्र बोस को टाटा भेजा था। 1928 से लेकर 1936 तक बोस टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे। टाटा वर्कर्स यूनियन और प्रबंधन के बीच कम्यूनिकेशन गैप नहीं। कर्मचारियों की बातों को सुनने और अमल करने पर होता है काम।
अज़मत अली, भिलाई। कर्मचारी, अधिकारी और प्रबंधन का तालमेल देखना है तो टाटा स्टील का दौरा कर लीजिए। औद्योगिक शांति का केंद्र नजर आएगा। सुख-सुविधाओं को लेकर कोई किचकिच नहीं होती। और न ही चौक-चौराहों पर प्रदर्शन होता है। ठेका मजदूरों के शोषण और वसूली की बात आने का सवाल ही नहीं उठता है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि वहां ‘56 का समझौता’ लागू है।
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यह समझौता कर्मचारियों और प्रबंधन के लिए गीता-बाइबिल और कुरआन के कम नहीं। कर्मचारियों के हर मुद्दे इसी समझौते के तहत हल होते हैं। यही वजह है कि 94 साल से एक भी हड़ताल नहीं टाटा स्टील में नहीं हुई है। औद्योगिक शांति ही शांति है। टाटा ने एक ऐसा माहौल बनाया जहां कर्मचारियों को पूरी सुविधाएं दी जाती है और शत-प्रतिशत कर्मचारियों का योगदान भी मिलता है। कर्मचारियों को पूरी सुविधाओं से लैस किया जाता है। इस वजह से कर्मचारी भी कोई ढिलाई नहीं बरतते हैं।
जानिए ‘56 के समझौता’ की तीन खास बातें
-कर्मचारियों के किसी भी मुद्दे को हल करने के लिए प्रबंधन सिर्फ टाटा वर्कर्स यूनियन से बात करेगी।
-किसी कर्मचारी को प्रबंधन जबरन नौकरी से नहीं निकालेगा। कर्मचारी से विवाद आदि या अन्य कारणों से उसे दूसरे जॉब में शिफ्ट किया जाएगा, लेकिन नौकरी से नहीं निकाल सकते।
-कर्मचारियों से जुड़ा हुआ कोई भी मुद्दा हो, यूनियन हड़ताल पर नहीं जाएगी। पिछले 94 साल से एक भी हड़ताल नहीं हुई है।
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प्रबंधन-कर्मचारियों के बीच कम्यूनिकेशन गैप नहीं
टाटा वर्कर्स यूनियन के जनरल सेक्रेटरी सतीश कुमार सूचनाजी.कॉम को बताते हैं कि कर्मचारियों की समस्याओं को लंबित नहीं रखा जाता है। कोई भी मांग हो, तत्काल प्रबंधन उसे हल करता है। बैठक करने में देरी नहीं की जाती है। कम्यूनिकेशन गैप का सवाल ही यहां नहीं उठता। हर छोटे-छोटे मुद्दों पर संवाद स्थापित किया जाता है ताकि कोई विवाद बढ़ न सके। कर्मचारियों की बातों को गौर से सुना और अमल किया जाता है। यही वजह है कि कर्मचारी भी पूरी लगन से अपना योगदान देते हैं।
1928 से पहले खूब होती थी हड़ताल, गांधीजी और सुभाषचंद्र बोस ने बदला कल्चर
टाटा वर्कर्स यूनियन के महासचिव ने बताया कि टाटा स्टील में सन 1928 से पहले खूब हड़ताल हुआ करती थी। प्रबंधन और कर्मचारी आमने-सामने होते थे। बात-बात पर उत्पादन ठप कर दिया जाता था। कर्मचारियों के मुद्दों को हल करने और औद्योगिक शांति के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सुभाषचंद्र बोस को टाटा भेजा था। 1928 से लेकर 1936 तक बोस टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे। इन्होंने पूरे हालात को संभाला। गांधीजी भी दौरा करते रहे। गांधीजी ने कर्मचारियों को कहा था कि आप कंपनी में योगदान दे रहे हैं तो यह देश की नींव में आपका योगदान है। इसके बाद 1956 में एक समझौता हुआ, जिसे छप्पन का समझौता बाेलते हैं। इसमें कर्मचारी और प्रबंधन के बीच कई मुद्दे हल कर दिए गए, जिस पर आज भी अमल किया जा रहा है।