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EPS 95 पेंशन, EPFO और लोकतंत्र पर पेंशनभोगियों का छलका आंसू

EPS 95 पेंशन, EPFO और लोकतंत्र पर पेंशनभोगियों का छलका आंसू
  • राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में सूखी रोटी खाकर गुजारा करनेवाले इन कामगार बुजुर्गों को अंशदान करने के बाबजूद एक हजार रुपये का पेंशन दिया जाता है।

सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। ईपीएस 95 पेंशन (EPS 95 Pension) को लेकर पेंशनर्स इतने भड़के हुए हैं कि देश की सियासत पर तंज करने से नहीं चूक रहे हैं। ईपीएफओ और सरकार पर कटाक्ष किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर इसकी झलक देखी जा सकती है। पेंशनर्स Indranath Thakur ने गुस्सा जाहिर करते हुए लिखा-यह कैसा लोकतंत्र है? जिसके नाम पर भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद, परिवारवाद,लूट तंत्र चलाया जा रहा है?

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राजनैतिक दलों के गठन और उसके चलाने पर स्वार्थी तत्वों का कब्जा होता है।  उनके पिछलग्गुओं में से किसी भ्रष्ट, गुंडे, अपराधियों में से ही किसी को चुनने के लिए देश के मतदाता विवश होता है। उस पर भी चुनकर गये प्रतिनिधि की गर्दन पर पार्टी का प्रमुख गुंडा चढ़ा रहता है। वे ही सरकार बनाती और चलाती है। जिनका मतदाताओं से कोई सरोकार नहीं होता।

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यह कैसा लोकतंत्र है भाई!

देश के मौजूदा हालात पर पेंशनर्स ने लिखा-भूखे सताये रौंदे गये मतदाताओं पर अन्याय सहन करने की विवशता होती है? भारत में औरतें, बूढ़े और बच्चों जैसे बेवस को सबसे सबसे अधिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। संयुक्त परिवारों का विघटन वृद्धजनों की उपेक्षा का उत्तरदाई है।

उन्हें ऊपर से सरकारी उपेक्षा का भी शिकार होना पड़ता है। असहाय वृद्धों की सुरक्षा के लिए सरकार एवं न्यायालय भी सहज नहीं होते हैं। सरकार सामाजिक सुरक्षा का दायित्व  उठावे यह अकल्पनीय है।

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असंगठित क्षेत्र के कामगारों का दर्द

असंगठित क्षेत्र के कामगारों की सेवानिवृत्ति के पश्चात जब कमाई बन्द हो जाती है तो बेटा घर से बाहर निकाल देता है। और सरकार उसे समाज से बाहर कर देने में संकोच नहीं करती। आत्महत्या करने से कानून रोक देता है।

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सरकार उन्हें एक हजार का पेंशन देकर तृप्त हो जाती है। उनके भोजन, वस्त्र, आवास और चिकित्सा सुविधा से सरकार निश्चिन्त  हो जाती है। किन्तु मोटे चिकने लोगों को साथ ही विधायकों, सांसदों को प्रत्येक टर्म की सामाजिक सेवा के लिए मोटी रकम और सुविधाएं जीवन पर्यन्त मुहैया करती है। जबकि इस सुविधा के लिए उनका कोई अंशदान नहीं होता।

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गरीब बूढ़ों को पेंशनर्स

राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में सूखी रोटी खाकर गुजारा करनेवाले इन कामगार बुजुर्गों को अंशदान करने के बाबजूद एक हजार रुपये का पेंशन दिया जाता है। जिसके चलते उन गरीब बूढ़ों को पेंशनर्स की कोटि में रखकर उनकी वे सारी सुविधाएं छीन ली जाती है, जो देश के अन्य गरीब बूढ़े लोगों को सरकार चटाती रहती है।अजब का खेल होता रहता है। इस गजब के लोकतंत्र में।

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