क्या वाकई अड़चन है आचार संहिता हड़ताल के लिए?
कोरोना काल में प्रशासन से धारा 144 लागू होने की सूचना पर सीटू ने हड़ताल का फैसला वापस नहीं लिया था।
आचार संहिता में सभा करने एवं भीड़ जुटाने पर प्रतिबंध लगा है। हड़ताल करने पर नहीं।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। क्या वाकई आचार संहिता हड़ताल के लिए अड़चन बन गया है? सेल कर्मियों के बीच यह बात आज बहस का विषय है। झारखंड में 13 एवं 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव है। चुनाव की घोषणा के साथ ही बोकारो में भी आचार संहिता लग गया है।
आचार संहिता में बिना प्रशासन की अनुमति के लोग इकट्ठा नहीं हो सकते हैं, क्योंकि 144 धारा लगी होती है। तो क्या ऐसे समय में हड़ताल करने के लिए प्रशासन की अनुमति लेनी होती है? यदि हम घर से ही ना निकले और संयंत्र के अंदर अपने विभाग में ड्यूटी पर न पहुंचें तो क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन होगा?
क्या हड़ताल के दिन गेटों पर जाम लगाना जरूरी है? इन्हीं सब बातों के बीच धीरे-धीरे यह बात स्पष्ट होने लगी है कि यदि यूनियन हड़ताल के लिए 14 दिन का नोटिस दिया है तथा हड़ताल के दिन कर्मी संघर्षों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और अपने घर से ही बाहर ना निकल कर हड़ताल में भागीदारी कर रहे हैं तो वह किसी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कहलाएगा।
क्या है हड़ताल का मतलब?
सीटू के महासचिव जगन्नाथ प्रसाद त्रिवेदी का कहना है कि हड़ताल संघर्ष का सबसे अंतिम चरण होता है। यूनियनें अपनी मांगों के लिए प्रबंधन को पत्र देने, बातचीत करने, धरना देने, रैलियां निकालने, सभाएं करने, प्रदर्शन करने जैसी गतिविधियों से अपना आंदोलन शुरू करता है।
इन सभी कार्रवाई के बावजूद जब प्रबंधन कर्मियों की मांगों को नहीं मानता है, तब बात हड़ताल तक पहुंचती है। यूनियन हड़ताल करने के लिए 14 दिन से पहले प्रबंधन को नोटिस देता है। हड़ताल करने पर कर्मियों का उस दिन का वेतन कट जाता है। कर्मी काम ना कर यह बताता है कि उसके काम न करने से उत्पादन ठप हो जाएगा।
संयंत्र का पहिया नहीं चलेगा। इसीलिए उसके खिलाफ कोई भी नीतियां एवं निर्णय न लें और कर्मी जो वाजिब मांग कर रहा है, उसे मान लें।
क्या रास्ता जाम किए बिना नहीं हो सकती हड़ताल?
देश और दुनिया में हड़ताल के दिन कर्मियों का एक जगह इकट्ठा हो जाना स्वाभाविक है। किंतु अधिकांश जगह जबरदस्ती रोकने की नौबत नहीं रहती है। कर्मी अपने मांगों को समझते हैं एवं उसके प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं। इसीलिए उनके अपने यूनियनों द्वारा दिए गए नारे के साथ खड़े होकर आंदोलन में स्वेच्छा से भागीदारी करते हैं। इसीलिए आचार संहिता की स्थिति में जाम लगाए बिना भी हड़ताल किया जाना संभव है।
बोकारो में हड़ताल वापस लेना कहीं अनुभवहीनता और डर तो नहीं?
सीटू के कार्यालय सचिव अशोक खातरकर का कहना है कि आचार संहिता लगते ही प्रशासन ने जिस तरह से आनन-फानन में हड़ताल पर रोक लगाई। इस पर वहां की यूनियनों को अपना रुखा स्पष्ट करना चाहिए था। हड़ताल वापस लेने में इतनी हड़बड़ी करने की आवश्यकता नहीं थी। कर्मचारियों को एकजुट करते हुए ड्यूटी पर न जाने की अपील करना चाहिए था।
हां, गेट या सड़क पर किसी तरह का जमावड़ा नहीं किया जाता। इस तरह का फैसला न करने से कहीं यह अनुभवहीनता अथवा डर का कारण तो नहीं था। कहीं, पहले से ही मन तो नहीं बनाकर रखा गया था कि कोई कारण बताकर हड़ताल को टाल दिया जाए। ऐसे सब निर्णय ना केवल कर्मियों के मनोबल को तोड़ता है, बल्कि आंदोलन को भी कमजोर करता है, जिससे बचना चाहिए।
सीटू ने किया था 144 धारा लागू होने के दौरान हड़ताल