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नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवाओं और नक्सलियों का साथ छोड़ने वालों का केंद्र है DRG, छत्तीसगढ़ में थर्राते हैं नक्सली

नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवाओं और नक्सलियों का साथ छोड़ने वालों का केंद्र है DRG, छत्तीसगढ़ में थर्राते हैं नक्सली
  • क्षेत्रीय भाषा को बखूबी जानते हैं। पहाड़ी, नदी और घने जंगल का रास्ता बेहतर तरीके से जानते हैं, जिसकी मदद फोर्स को मिलती है।

अज़मत अली, भिलाई। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा (Dantewada Naxal Attack) में नक्सलियों ने कायराना हरकत का सबूत दिया है। डीआरजी (District Reserve Guard) के 10 जवान व एक ड्राइवर को धमाके से शहीद कर दिया है। छत्तीसगढ़ को जानने और समझने वाले डीआरजी के बारे में बखूबी जानते हैं। वहीं, ऐसे लोग भी हैं, जो District Reserve Guard से वाकिफ नहीं हैं।

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Suchnaji.com आपको इसके गठन से लेकर अब तक के योगदान की विस्तृत जानकारी साझा करने जा रहा है। डीआरजी जवानों के शौर्य की गाथा देशभर में प्रसिद्ध है। कोबरा कमांडो भी इनके हौसले की दाद देते हैं। केंद्र सरकार हो या छत्तीसगढ़ सरकार, इन जवानों के हौसले के बल पर नक्सलियों के खात्मे की तरफ से तेजी से बढ़ी है।

आपको जान कर हैरानी होगी कि District Reserve Guard में किसी बाहरी को मौका नहीं दिया जाता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र के जंगलों के बीच रहने वाले युवाओं की भर्ती की गई है। साथ ही नक्सलियों के आतंक और क्रूरता का साथ छोड़ने वाले नक्सली मुख्यधारा से जुड़े।

नक्सलियों से नाता तोड़ने के बाद अब वे छत्तीसगढ़ की साख को बनाने और नक्सलियों के खात्मे के लिए District Reserve Guard का हिस्सा बन चुके हैं। अब यही लोग नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की अगुवानी करते हैं। क्षेत्रीय भाषा को बखूबी जानते हैं। पहाड़ी, नदी और घने जंगल का रास्ता बेहतर तरीके से जानते हैं, जिसकी मदद फोर्स को मिलती है।

बस्तर का क्षेत्र 40 हजार वर्ग फीट में फैला है। नक्सलियों के खिलाफ अभियान को तेज करते हुए साल 2008 में डीआरजी का गठन किया गया। कांकेर और नारयणपुर से शुरुआत हुई। 2013 में बीजापुर, 2014 में सुकमा, कोंडागांव, 2016 में दंतेवाडा में डीआरजी जवानों ने मोर्चा संभाला। डीआरजी जवानों के बारे में कहा जाता है कि इनकी चाल चीते की तरह और हौसला बुलंद है। दाहिने हाथ में गोली लगे तो बायें से फायरिंग कर सकते हैं।

बताया जाता है कि गठन के 2015 में 644 नक्सल विरोधी अभियान डीआरजी जवानों ने लगाए। इसके बाद आंकड़ा बढ़ता ही गया। छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोहियों से निपटने के लिए वर्ष 2007 में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया था। नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए स्थानीय आदिवासी लड़कों की भर्ती कर डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड का गठन किया गया। ये जवान इंसास रायफल और JVPC कार्बाइन चलाने में माहिर होते हैं।