Gama Pehlwan 144th Birth Anniversary: आधा लीटर घी और छह देशी चिकन डकार जाते थे गामा पहलवान, अमृतसर में जन्म और लाहौर में हुआ था इंतकाल

450 पहलवानों में से 10 साल का गामा टॉप-15 में हुआ था चयनित। जोधपुर के महाराज ने प्रतियोगिता का विजयी उन्हें ही घोषित किया। दतिया के महाराज ने पालन पोषण किया था।

अज़मत अली, सूचनाजी न्यूज। हर किसी की जुबां पर गामा पहलवान का नाम आ ही जाता है। आखिर गामा पहलवान कौन थे। कहां जन्म हुआ था और कहां निधन…। इन सारी बातों को सूचनाजी.कॉम आपके सामने रख रहा है। गामा पहलवान के 144 जन्मदिवस को गूगल भी याद कर रहा है। गूगल ने डूडल बनाया। दुनिया भर में लोग गामा पहलवान के बारे में एक बार फिर पढ़ और सुन रहे हैं।

गामा पहलवान के जन्म स्थान को लेकर विवाद है। माना जाता है कि गामा का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर-पंजाब में हुआ था। गामा पहलवान की मृत्यु 23 मई 1960 को लाहौर-पाकिस्तान में हुई। उम्र के आखिरी पड़ाव में वह बीमारी से ग्रस्त रहे। बीमारी का सारा खर्च पाकिस्तान सरकार उठाती थी।

ये खबर भी पढ़ें:15 साल में सेल में बढ़ी 137% लेबर प्रोडक्टिविटी, इकाइयों में बर्नपुर सबसे छोटी, लेकिन आंकड़े में टॉप पर, बोकारो दूसरे, बीएसपी तीसरे, राउरकेला चौथे और दुर्गापुर 5वें स्थान पर

आधा लीटर दूध और छह देशी मुर्गा डकार जाने वाले गामा पहलवान का वास्तविक नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था। महज 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। इन्होंने पत्थर के डम्बल से अपनी बॉडी बनाई थी।

जाने-माने कराटे योद्धा और अभिनेता ब्रूस ली गामा पहलवान के बहुत बड़े फैन थे। वे प्रायः अखबार में उन पर लिखे हुए लेख पढ़ा करते थे कि किस तरह से गामा पहलवान ने अपनी शक्ति का विस्तार किया, अपने शरीर को सुदृढ़ बनाया। किस तरह से उन्होंने अपनी शक्ति में वृद्धि की। इन सभी को ब्रूस ली ने भी अपने जीवन में अपनाया और वह भी कसरत के समय दंड बैठक लगाया करते थे।

ये खबर भी पढ़ें: 1600 कर्मचारियों को भारतीय रेलवे दे रहा पांच से सात दिन की छुट्‌टी व स्पेशल पास, जानिए पूरा मामला

100 किलो की हस्ली पटियाला राष्ट्रीय खेल संस्थान में

गामा पहलवान की 100 किलो की हस्ली आज भी पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में संभाल कर, सुरक्षित रूप से रखी हुई है।
गामा जब पहलवानी करते थे तब दुनिया में कुश्ती के मामले में अमेरिका के जैविस्को का बहुत नाम था। गामा ने इसे भी परास्त कर दिया था। पूरी दुनिया में गामा को कोई नहीं हरा सका और उन्हें वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब मिला। गामा रोज़ तीस से पैंतालीस मिनट में, सौ किलो कि हस्ली पहन कर पांच हजार बैठक लगाते थे, और उसी हस्ली को पहन कर उतने ही समय में तीन हजार दंड लगाते थे।

ये खबर भी पढ़ें:NTPC Financial Result 2022: एनटीपीसी ने 15% लगाई उत्पादन में छलांग, आय में 16.83% का इजाफा, फरवरी में दिया था 40 फीसद लाभांश

भारत-पाकिस्तान बंटवारे में चले गए थे लाहौर

भारत-पाक बटवारे के समय ही गामा पहलवान अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए। मई 1960 को लाहौर में ही उनकी मृत्यु हो गई। गुलाम मौहम्मद बख्श का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव के एक कश्मीरी गुर्जर परिवार में हुआ। इनके परिवार में स्वयं ही विश्वप्रसिद्ध पहलवान हुए थे। गामा कि दो पत्नियां थीं। एक पाकिस्तान में और दूसरी बड़ोदा गुजरात में। जब गामा छः साल के थे तो उनके पिता मौहम्मद अज़ीज़ बख्श का निधन हो गया। इसके बाद उनके नानाजी नुन पहलवान ने उनका पालन किया। बाद में उनके निधन के बाद उनके मामाजी इड़ा पहलवान ने उनका पालन किया और उनकी ही देखरेख में गामा ने पहलवानी की शिक्षा प्रारंभ की।

40 प्रतिद्वंदीयों के साथ एक-साथ लड़ते थे

गामा ने पहलवानी की शिक्षा अपने मामा इड़ा पहलवान से प्रारंभ की। आगे चलकर इनके अभ्यास में काफी बदलाव आए। जैसे कि, यूं तो बाकी पहलवानों कि तरह उनका अभ्यास भी सामान्य ही था,परंतु इस सामान्यता में भी असामान्यता यह थी कि वे प्रत्येक मैच एक से नहीं बल्कि 40 प्रतिद्वंदीयों के साथ एक-साथ लड़ते थे और उन्हें पराजित भी करते थे।

ये खबर भी पढ़ें: न्यूनतम वेतन 27 हजार करने पर सरकार मौन, 12 घंटे कार्य दिवस पर आमादा

जानिए गामा पहलवान की डाइट

-डेढ़ पौंड बादाम मिश्रण (बादाम पेस्ट)
-दस लीटर दूध
-मौसमी फलों के तीन टोकरे
-आधा लीटर घी
-दो देसी मटन
-छः देसी चिकन
-छः पौंड मक्खन
-फलों का रस

450 पहलवानों के बीच 10 वर्ष का गामा पहलवान प्रथम 15 में

गामा ने अपने पहलवानी करियर की शुरुआत महज़ 10 वर्ष की आयु से की थी। सन 1888 में जब जोधपुर में भारतवर्ष के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवानों को बुलाया जा रहा था, तब उनमें से एक नाम गामा पहलवान का भी था। यह प्रतियोगिता अत्याधिक थकाने वाले व्यायाम की थी। लगभग 450 पहलवानों के बीच 10 वर्ष के गामा पहलवान प्रथम 15 में आए थे। इस पर जोधपुर के महाराज ने उस प्रतियोगिता का विजयी उन्हें ही घोषित किया। बाद में दतिया के महाराज ने उनका पालन पोषण आरंभ किया।

"AD DESCRIPTION";

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!