इसी लेटलतीफी के चलते टाटा स्टील ने 2009 में एनजेसीएस को किया था टाटा
1600 डिग्री तापमान में काम करने वाले कर्मचारियों को तत्काल रिजल्ट की दरकार होती है। लेकिन एनजेसीएस में ऐसा नहीं होने की वजह से टाटा स्टील की यूनियन अलग हो गई थी।
अज़मत अली, भिलाई। नेशनल ज्वाइंट कमेटी फॉर स्टील इंडस्ट्री-एनजेसीएस। यह शब्द इस वक्त काफी चर्चा में है। सेल का हर कर्मचारी इससे जुड़ा हुआ है। कोई पक्ष में है तो कोई विपक्ष में। इसी एनजेसीएस के जरिए सेल प्रबंधन वेतन समझौता के लिए एमओयू साइन किया है। समझौते की खामियों को लेकर कर्मचारी एनजेसीएस को राडार पर लिए हुए हैं। समय पर एनजेसीएस मीटिंग न होने से सेल में कर्मचारियों के मुद्दे लंबित हैं।
ये खबर भी पढ़ें: चेयरमैन के सामने नेताजी ने निकाली भड़ास, कहा-एग्रीमेंट पर साइन करके गुनाह किया, गाली हम खा रहे, ईडी बोले-जून में होगी फुल एनजेसीएस बैठक
आरोप है कि लंबित मुद्दों को हल करने के लिए एनजेसीएस की बैठक समय पर नहीं होती है। महीनों इंतजार करने की वजह से दहकते इस्पात के सामने काम करने वाले कर्मचारियों का सब्र जवाब दे जाता है। यही वजह है कि साल 2009 में एनजेसीएस की सदस्यता से टाटा स्टील ने खुद को बाहर कर लिया था। कर्मचारियों के मुद्दों को हल करने के लिए एनजेसीएस की बैठकों का इंतजार करना पड़ता था।
लेटलतीफी की वजह से कर्मचारियों का सब्र जवाब दे जा रहा था। अंत में टाटा वर्कर्स यूनियन ने एनजेसीएस को टाटा बोल दिया। टाटा स्टील प्रबंधन और यूनियन ने मिलकर अलग से एक वेज बोर्ड तैयार किया। कर्मचारियों के मुद्दों को हल करने के लिए ठोस रणनीति बनाई और उस पर काम करना शुरू किया। टाटा स्टील प्लांट के कर्मचारियों ने सूचनाजी.कॉम को बताया कि 1600 डिग्री तापमान में काम करने वाले कर्मचारियों को तत्काल रिजल्ट की दरकार होती है। लेकिन एनजेसीएस में ऐसा नहीं होता था। वहां प्रबंधन की दया पर पूरा मामला चलता था। कई विचारधारा वाली यूनियनों में आयेदिन विवाद की स्थिति बनती थी। इससे बचने के लिए टाटा वर्कर्स यूनियन ने एनजेसीएस को छोड़ दिया था।
जानिए एनजेसीएस का इतिहास
अक्टूबर 1969 में इस्पात मंत्रालय के अधीन आने वाले इस्पात उद्योग के लिए संयुक्त वेतन विचार-विमर्श समिति गठित की गई, जिसे बाद में राष्ट्रीय संयुक्त समिति (इस्पात उद्योग के लिए एनजेसीएस) का नाम दिया गया। समिति ने 27-10-1970 में इस्पात उद्योग के कर्मियों के लिए वेतन और अनुलाभ के सम्बन्ध में एक समझौता ज्ञापन किया। यह समझौता हिन्दुस्तान लिमिटेड, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) जो एक निजी क्षेत्र की कम्पनी है, इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (इस्को) और तत्कालीन एमआईएसएल जिसे अब विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील प्लांट (वीआईएसपी) के नाम से जाना जाता है, के कर्मचारियों पर लागू हुआ। समिति का गठन श्रम मंत्रालय के तत्वावधान में किया गया। तत्कालीन उप-मुख्य श्रम आयुक्त (आई), इस समिति के सचिव थे।
मोहन कुमारमंगलम ने बदला स्ट्रक्चर
तत्कालीन इस्पात तथा खान मंत्री स्वर्गीय मोहन कुमारमंगलम के नेतृत्व में फरवरी 1971 में यह निर्णय किया गया कि समिति श्रम मंत्रालय की सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करेगी। यह कर्मियों के प्रतिनिधियों से अंशदान सहित अपनी अलग से निधि तैयार करेगी। अक्टूबर, 1970 में पहले समझौते पर हस्ताक्षर करने के पश्चात समिति का कार्यक्षेत्र बढ़ा दिया गया और यह संयुक्त विचार-विमर्श समिति के नाम से ही कार्य करती रही। समिति समझौते के कार्यान्वयन तथा उद्योग में सामान्य समस्याओं के निवारण के लिए भी कार्य करती रही। तब से समिति ने अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
एनजेसीएस इस समय निम्न क्षेत्रों में योगदान दे रहा
-वेतन निर्धारण और उसके कार्यान्वयन पर विचार-विमर्श।
-उत्पादन, उत्पादकता में वृद्धि के लिए किए जाने वाले उपायों के सम्बन्ध में विचार।
-गुणवत्ता, लागत में कमी तथा माल खराबी में कमी सम्बन्धी मामले।
-कल्याण सुविधाओं की समीक्षा।
-वे मामले, जहां सरकार द्वारा तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है, और
इस्पात उद्योग तथा इसके कर्मचारियों से सम्बन्धित ऐसा कोई भी मामला जिसके बारे में समय-समय पर एनजेसीएस में सहमति हुई हो।