- …लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे एक कठपुतली चुनाव तंत्र (आयोग) काम कर रहा होगा। हर तरफ से देश के संविधान पर हमला होगा।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। संयुक्त ट्रेड यूनियनें और संयुक्त किसान सभा द्वारा दिल्ली में 16 सितंबर को आयोजित कन्वेंशन में लेबर कोड बिल और कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी धरना प्रदर्शन किए जाने सम्बंधित निर्णय लिया गया, जिसके तहत आज संविधान दिवस के दिन 26 नवंबर को पूरे देश में विरोध कार्यवाही की जा रही है। इसी के तहत सुबह 8 बजे भिलाई स्टील प्लांट के जोरातराई गेट पर मजदूरों के बीच नुक्कड़ सभा की गई। तत्पश्चात डुंडेरा, पुराई एवं और मैत्री गार्डन चौक मरोदा में नुक्कड़ सभा की गई।
किसानों को बर्बाद कर गुलाम बनाने के लिए लाया गया था तीन कृषि कानून
मोदी सरकार ने 2020 में जिन तीन कृषि कानून को संसद में पारित कर किसानों पर थोपने की कोशिश की थी। उससे किसान न केवल बर्बाद हो जाते बल्कि बड़े पूंजी पतियों के गुलाम बना दिए जाते जिसे किसानों ने समझा और 26 नवंबर 2020 से शुरू करके एक साल तक आंदोलन किया, जिसके फलस्वरुप मोदी सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेना पड़ा।
इन तीनों कृषि कानून में से पहले कानून में कहा गया कि किसानों को धान बेचने के लिए मंडियो में जाने की आवश्यकता नहीं है वे सीधे साहूकार अथवा बड़े पूंजीपतियों को अपना ध्यान दे सकते हैं यदि यह व्यवस्था लागू होती तो किसानों को मंडियों के माध्यम से मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य तो नहीं मिलता उल्टा बड़े पूंजीपतियों के रहमो करम पर उनके कहे दाम पर धान बेचना पड़ता।
वहीं दूसरे कानून में कहा गया कि बड़े पूंजीपति छोटे किसानों के साथ उनकी जमीन को लेकर कांट्रैक्ट फार्मिंग करवाएंगे इस व्यवस्था के लागू होने से बड़े पूंजी पतियों के कहे अनुसार फसल ना पैदा होने पर कॉन्ट्रैक्ट में लिखे गए पैसे को फसल के दाम के रूप में नहीं दिए जाने का प्रावधान था जिसका पूंजीपति हमेशा फायदा उठाता। वहीं तीसरे कानून में जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए 1955 में ले गए कानून को खत्म करने की बात कही गई थी, ताकि अदानी को अपने बनाए हुए गोदाम में पूरे देश के अनाज को खरीद कर जमाखोरी करने की छूट मिल जाती और जब देश में अकाल जैसी स्थिति पड़ती तो वह अपने मर्जी के दाम में उसी अनाज को लोगों को बेचता और अकूत मुनाफा कमाता जिसे किसानों ने वक्त रहते समझ गए एवं तीनों कानून को वापस होते तक दिल्ली को घेर कर रखे।
मेहनतकशों पर थोपा जा रहा है मजदूर विरोधी श्रम कोड
जगन्नाथ प्रसाद त्रिवेदी ने कहा-अब मोदी सरकार 2019 में पारित किए गए वेज कोड बिल एवं 2020 में पारित किए गए बाकी तीनों श्रम कोड को 2020 से ही लागू करने की कोशिश कर रही थी किंतु मजदूरों के जबरदस्त आंदोलन के चलते देश के श्रमिकों पर थोप नहीं पा रही थी। किंतु जैसे ही बिहार का रिजल्ट आया उसने अपने सरकार की स्थिरता को देखते हुए जबरदस्ती उन चारों श्रम कोड को अधिसूचित कर दिया।
इसमें श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करते जाने एवं मालिकों, नियोक्ताओं, ठेकेदारों को असीमित अधिकार और छूट देने की बात स्पष्ट रूप से दर्ज है। काम के घंटे को 8 से बढ़कर 12 करने, महिलाओं को रात्रि पाली में संयंत्र के अंदर काम करवाने, ओवरटाइम को मालिकों के रहमो करम पर, निश्चित अवधि के लिए रोजगार देने, 60 वर्षों वाली पूर्ण रोजगार को खत्म करने, 300 से ज्यादा मजदूर होने पर ही फैक्ट्री एक्ट लागू होने, 300 मजदूर से कम काम करने वाले फैक्ट्री में छटनी तालाबंदी करने के लिए किसी से अनुमति न लेने जैसे सैकड़ो नियम बनाए गए हैं जो पूरी तरह से मालिकों को कर्मचारियों पर अत्याचार करने एवं लूटने के लिए छूट देता है।
बेरोजगारी चरम पर
सीटू नेता ने कहा कि हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात कह कर सत्ता में आई मोदी सरकार रोजगार देना तो दूर उल्टे रोजगार को छीनने में लगी हुई है। कोरोना काल में जिनकी भी नौकरियां गई किसी को भी वापस नहीं मिली। देश में बेरोजगारी अपने चरम पर है। 40 करोड़ से ज्यादा नौजवान नौकरी के लिए तरस रहे हैं। लगातार पढ़े-लिखे बेरोजगारी की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में इसका समाधान निकालने की बजाय नौजवानों को गुमराह किया जा रहा है।
80 करोड लोग जी रहे हैं मुफ्त अनाज के सहारे
एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि लोगों को लगातार गरीबी रेखा से बाहर निकाल रहे हैं वहीं दूसरे तरफ यह कहते हुए अपना सीना चौड़ा कर लेते हैं कि हम 80 करोड लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे हैं यदि देश की आबादी गरीबी रेखा से बाहर आ गई है तो मुफ्त अनाज देने की आवश्यकता क्या है यह सब केंद्र सरकार के जुमले के सिवाय कुछ भी नहीं है।
यही है नव फासीवाद
सीटू उपाध्यक्ष डीवीएस रेड्डी ने कहा-फासीवादी व्यवस्था आते ही सबसे पहले लोकतंत्र को खत्म कर दिया जाता है जिसे जर्मनी और इटली में देखा गया। किंतु मौजूदा समय में फासीवाद अपने छद्दम में रूप को लेकर सामने आया है, जिसमें यह दिखाता रहेगा कि लोकतंत्र जिंदा है। किंतु सही मायने में लोकतंत्र रहेगा नहीं। लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे एक कठपुतली चुनाव तंत्र (आयोग) काम कर रहा होगा। हर तरफ से देश के संविधान पर हमला होगा।
न्यायव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और जनता न्यायालयों कि सीढ़ियों पर धक्के खा रही होगी।मीडिया जनता की आवाज़ उठाने के बजाए उसकी आवाज दबाने में लग जाएगी और सरकार का मुखपत्र बन जाएगी।बोलने की आज़ादी केवल कहने को रह जाएगी लेकिन जैसे ही आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलेंगे आपको खामोश कर दिया जाएगा।
समाज में सांप्रदायिकता, भेदभाव और नफरत अपने चरम पर होगी। सभी सरकारी संस्थाएं एक विचारधारा विशेष के लिए काम करेंगी और दूसरे तरह के विचारों के लिए समाज में कोई स्थान नहीं होगा। क्योंकि यह सब लोकतंत्र के मुखोटे को ओढ़ कर किया जा रहा है इसीलिए यही नव फासीवाद है।
















