मोदी सरकार के 4 लेबर कोड को बताया धोखाधड़ी और गुलामी, ट्रेड यूनियनों का 26 नवंबर को उग्र आंदोलन

Trade Unions Call Modi Governments 4 Labour codes a Fraud, Protest on November 26
  • ट्रेड यूनियनों ने कहा-ये श्रम संहिताएँ श्रमिकों के जीवन और आजीविका पर हमला हैं, जो आधुनिक दासता थोपने और उनके अधिकार छीनने का प्रयास।

सूचनजी न्यूज, दिल्ली। मोदी सरकार ने 4 लेबर कोड को लागू कर दिया है। इस पर संयुक्त ट्रेड यूनियन की प्रतिक्रिया आ गई है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच की प्रारंभिक प्रतिक्रिया में नाराजगी जाहिर की है। INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC की ओर से बयान जारी किया गया है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने से एकतरफ़ा, श्रमिक-विरोधी और नियोक्ता-पक्षीय श्रम संहिताओं के लागू किए जाने पर कड़ी निंदा व्यक्त की है। स्पष्ट शब्दों में हम इसे केंद्र सरकार द्वारा देश के श्रमिकों के साथ किया गया धोखाधड़ीपूर्ण छल बताते हैं।

चार तथाकथित “श्रम संहिताओं” की 21 नवंबर 2025 को जारी की गई यह मनमानी और गैर-लोकतांत्रिक अधिसूचना लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना करती है और भारत की कल्याणकारी राज्य की छवि को क्षति पहुँचाती है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र औद्योगिक महासंघों के इस संयुक्त मंच ने इन कठोर श्रम संहिताओं का उस दिन से विरोध किया है जब इन्हें मौजूदा 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समाप्त कर लागू करने का प्रस्ताव रखा गया था। 2019 में ‘कोड ऑन वेजेज’ लागू होने के बाद तत्काल विरोध आरंभ हुआ और जनवरी 2020 की आम हड़ताल में इसका चरम देखने को मिला।

इसके बाद अन्य तीन श्रम संहिताएँ — औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य-दशा संहिता — वर्ष 2020 में लागू की गईं। सितंबर 2020 में भी विरोध प्रदर्शन किए गए और 26 नवंबर को ऐतिहासिक जनरल स्ट्राइक आयोजित की गई, जिसमें ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच और संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने भी भाग लिया। इसके बाद भी कई संयुक्त कार्यवाहियाँ चलती रहीं, जिसका परिणाम 9 जुलाई 2025 की ऐतिहासिक आम हड़ताल में दिखाई दिया जिसमें 2.5 करोड़ से अधिक श्रमिकों ने हिस्सा लिया।

कड़े प्रतिरोध के बावजूद, केंद्र सरकार ने, बिहार चुनावों में मिली जीत से उत्साहित होकर, आज से इन सभी चार श्रम संहिताओं को लागू कर दिया। मीडिया रिपोर्टों और श्रम मंत्रालय के ट्वीट्स के अनुसार, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) बुलाने और श्रम संहिताओं को तुरंत वापस लेने का आग्रह किया था। 13 नवंबर को मंत्रालय द्वारा बुलाए गए शक्ति नीति 2025 के मसौदे पर हुई परामर्श बैठक में भी श्रम संहिताओं को रद्द करने की मांग रखी गई।

20 नवंबर को वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित प्री-बजट परामर्श बैठक में भी ट्रेड यूनियनों ने श्रम संहिताओं को वापस लेने और ILC को पुनः बुलाने की मांग की, जिसे सरकार लगातार अनदेखा करती रही है। 2015 के बाद से ILC की बैठक नहीं हुई है।

सरकार ने न तो विरोधों पर ध्यान दिया, न ही हड़तालों पर और न ही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की किसी अपील पर। इसके विपरीत, सरकार ने इन श्रम संहिताओं को लागू कर दिया ताकि नियोक्ता वर्ग और सरकार के समर्थक संगठनों की मांगें पूरी की जा सकें, जैसा कि प्री-बजट बैठक में देखा गया।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने सरकार की इस कार्रवाई को गैर-लोकतांत्रिक, प्रतिगामी, श्रमिक-विरोधी और नियोक्ता-पक्षीय करार दिया है। मंच ने चेतावनी दी है कि श्रमिक वर्ग पर किया गया यह क्रूर हमला सबसे प्रचंड और सबसे संयुक्त प्रतिरोध को जन्म देगा, जैसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।

ट्रेड यूनियनों ने एक स्वर में कहा कि ये श्रम संहिताएँ श्रमिकों के जीवन और आजीविका पर हमला हैं, जो आधुनिक दासता थोपने और उनके अधिकार छीनने का प्रयास हैं।