पेंशनभोगी खोलना चाह रहे चाय-पान और पकौड़े की दुकान, EPFO-सरकार लौटाए जमा पैसा, पेंशन से ज्यादा ही होगी कमाई

Pensioners want to open tea and pakora shops, EPFO-government should return the deposited money, they will earn more than pension
बहुत कुछ कहा और सुना जा चुका है अब तक, कुछ बाकी नहीं रहा कहने सुनने को। सिवाय इसके कि हमारे धैर्य की परीक्षा लेना बंद हो।
  • तथाकथित हमारी सेवानिवृत काल को संवारने वाली दुकान रूपी संस्था ईपीएफओ को बंद करने की आवाज पेंशनर ने उठाई।

सूचनाजी न्यूज, रायपुर। ईपीएस 95 हायर पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं। केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन-ईपीएफओ अब तक दोनों पर अमल नहीं कर सका है। विवाद बना हुआ है। पेंच फंसा हुआ है। फिलहाल, पेंशनर्स के आखिरी पड़ाव पर हैं। सरकार की क्या मंशा है, यह तो समझ से परे है।

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पेंशनभोगी Anil Kumar Namdeo ने कहा-पिछले 10 सालों से न्यूनतम पेंशन 7500+महंगाई भत्ता प्रदान करने की मांग पर चले आ रहे देशव्यापी आंदोलनों पर भाँति भांति की प्रतिक्रियाएं आती रही है। मेरा सिर्फ इतना ही उधेश्य रहा है कि NAC प्रमुख कमांडर अशोक राउत एवं उनके जाबाज साथियों के भागीरथी प्रयास और उस पर समर्थन या विरोधाभासी वक्तव्यों की समीक्षा की जा सके और बहुमत का सम्मान किया जाए।

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पेंशन मिलना न मिलना,खुदा की मर्जी…जो शायद हम सब से अभी रूठा हुआ है,जबकि हमने सुन रखा है कि”हिम्मते मर्दा मददे खुदा” और शायद खुदा भी हमारी हिम्मतों की परीक्षा लेना चाहता है। पर कुछ और भी हैं नंगे जो खुदा से भी बड़े हैं..यही हमारी सबसे बड़ी विडंबना ही है।

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दूसरी ओर हायर पेंशन का मसला है, जिस पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला 2016 और 2022 को जारी कर दिया था,उस पर भी देश के अधिकांश सेवानिवृत्त आज भी अपने आप को कानूनी दावं पेंच के चलते असहाय महसूस कर रहे हैं।

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लगता है हम सभी की परिणिती यही है कि सड़क पर हो या कोर्ट में लड़ते-लड़ते मर जाओ और वो हो भी रहा है। अब तो दोनों मोर्चों पर इस बात की लड़ाई होनी चाहिए कि हमें किसी की दया धर्म,मेहरबानी की जरूरत नहीं हैं। हमारे जो पैसा EPFO/सरकार के पास जमा है, वो लौटा दिया जाए,ताकि उसी पैसे से हम चाय,पान पकौड़े की दुकान से अपना जीवन यापन कर सकें,जिससे होने वाली कमाई आज दी जाने वाली पेंशन से कहीं बेहतर है।

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और तथाकथित हमारी सेवानिवृत काल को संवारने वाली दुकान रुपी संस्था को बंद कर दिया जाए।ये कैसा प्रजातंत्र है जो हमारा ही अभिशाप साबित हो रही है। बहुत कुछ कहा और सुना जा चुका है अब तक, कुछ बाकी नहीं रहा कहने सुनने को सिवाय इसके कि हमारे धैर्य की परीक्षा लेना बंद हो।

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