कर्मचारी पेंशन योजना 1995: पेंशनर को याद आए अर्जुन, कृष्ण, पांडव और मुकदमेबाजी

Employees Pension Scheme 1995: Pensioners remember Arjun, Krishna, Pandavas and litigation
  • हमारी न्याय व्यवस्था हरिशंकर परसाई जी की नजर में। कहीं ये बात पेंशनरों के लिए तो नहीं कही गई थी?

सूचनाजी न्यूज, रायपुर। कर्मचारी पेंशन योजना 1995 के तहत न्यूनतम पेंशन का मामला हल नहीं हो पा रहा है। एक के बाद एक सवाल उठ रहे हैं। केंद्र की मोदी सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन-ईपीएफओ पर पेंशनर गुस्साए हुए हैं। अब हरिशंकर परसाई याद किए जा रहे हैं।

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ईपीएस 95 राष्ट्रीय पेंशन संघर्ष समिति रायपुर के अध्यक्ष अनिल कुमार नामदेव ने EPS 95 पेंशन पर दर्द बयां किया है। बतौर पेंशनर्स मौजूदा हालात की तस्वीर को बयां किया है। हमारी न्याय व्यवस्था हरिशंकर परसाई जी की नजर में…।

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अनिल नामदेव कहते हैं अभी तक मैं सोचता था कि अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था, पर कृष्ण ने उसे जबरदस्ती लड़वा दिया, यह अच्छा नहीं किया। लेकिन अर्जुन यदि युद्ध नहीं करता, तो क्या करता? कचहरी जाता। जमीन का मुकदमा दायर करता। अगर वन से लौटे पांडव, जैसे-तैसे कोर्ट-फीस चुका भी देते, तो वकीलों की फीस कहां से देते?

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गवाहों को पैसे कहां से देते? और कचहरी में धर्मराज का क्या हाल होता? वे क्रॉस एक्जामिनेशन के पहले ही झटके में उखड़ जाते। सत्यवादी भी कहीं मुकदमा लड़ सकते हैं? कचहरी की चपेट में भीम की चर्बी उतर जाती।

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युद्ध में तो अट्ठारह दिन में फैसला हो गया। कचहरी में अट्ठारह साल भी लग जाते, और जीतता दुर्योधन ही, क्योंकि उसके पास…था। सत्य सूक्ष्म है। सबको पैसा दिख जाता है; सत्य नहीं दिखता। शायद पांडव मुकदमा लड़ते-लड़ते मर जाते , क्योंकि दुर्योधन पेशी बढ़वाता जाता।

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पांडवों के बाद उनके बेटे लड़ते, फिर उनके बेटे। बड़ा अच्छा किया कृष्ण ने जो अर्जुन को लड़वाकर, अट्ठारह दिनों में ही फैसला करा लिया, वरना आज कौरव-पांडव के वंशज किसी दीवानी कचहरी में वही मुकदमा लड़ रहे होते। हरिशंकर परसाई की बातों को पेंशनभोगी खुद से जोड़कर देखना शुरू कर चुके हैं। साफ शब्दों में कहा जा रहा है कि कानूनी लड़ाई के अलावा सरकार से अब दो-दो हाथ करने की नौबत आ गई है।