महाराष्ट्र में NDA की जीत, पेंशनभोगी बोले-EPS 95 पेंशन में बढ़ोतरी की मांग को सिरे से खारिज करने का रास्ता साफ

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न्यूनतम पेंशन 7500 रुपए कराने के लिए चल रहा है आंदोलन।

पेंशनभोगियों का संगठन केंद्र सरकार और बीजेपी के खिलाफ चल रहा था अभिया।

महाराष्ट्र में एनडीए का जीत मिली। झारखंड में इंडिया गठबंधन जीता।

सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। ईपीएस 95 न्यूनतम पेंशन को 7500 रुपए कराने के लिए आंदोलन चल रहा है। केंद्र सरकार और भाजपा पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में पेंशनभोगियों ने दावा किया था कि मोदी सरकार और बीजेपी पर गुस्सा दिखाएंगे। लेकिन, महाराष्ट्र के रिज्ल्ट ने पेंशनभोगियों को बड़ा झटका दिया है।

पेंशनभोगी गौतम चक्रवर्ती कहते हैं कि सब कुछ खो दिया…। एनडीए ने महाराष्ट्र में जीत दर्ज की। इससे टीम मोदी के लिए न्यूनतम ईपीएस 95 पेंशन में बढ़ोतरी की हमारी मांगों को सिरे से खारिज करने का रास्ता साफ हो गया।

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एनडीए सरकार के प्रति एनएसी का विरोध उसकी चुनावी संभावनाओं पर कोई असर नहीं डाल सका। कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि यू-ट्यूबर्स द्वारा पोस्ट किए गए झूठे वीडियो देखना और सुनना बंद कर दें। व्याख्यान सुनने में समय बर्बाद न करें।

Shramik Day

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जीवन को अपने सामान्य प्रवाह में चलने दें। आइए प्रार्थना, सुबह/शाम की सैर और नाती-नातिन की सेवा में समय बिताएं। अगर केंद्र सरकार हमारी मदद करने का फैसला करती है, तो इसका असर हमारे बैंक खातों में दिखेगा।

वहीं, एक अन्य पेंशनर्स सनत रावल ने कहा-गौतम चक्रवर्ती जी, हां बिल्कुल सही। मैं आपके कथन से पूरी तरह सहमत हूं। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि भगवान मोदीजी को सद्बुद्धि दे और उनके दर्द को महसूस करे।

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मोनीश गुहा भी इस बात से पूरी तरह सहमत नजर आए। उन्होंने कहा-और मैं भी यही भावना रखता हूँ…। अब समय आ गया है कि बुजुर्ग गहरी साँस लें और गरीबी से भरी वही ज़िंदगी जिएँ और अपने परिवार के साथ मौज-मस्ती करें…।

ये नेता सख्त होते तो ऐसा नहीं होता

वदिराजा राव बोले-अगर ऐसा है तो हमारे अपने नेता क्या कर रहे हैं। अगर ये नेता सख्त होते तो ऐसा नहीं होता।
करनैलपाल सिंह ने भी रिजल्ट पर प्रतिक्रिया दी। कहा-जबतक मुफ़्त राशन और ईवीएम है। क्या कॉर्पोरेट सिस्टम को कोई हरा नहीं सकता। इस सिस्टम से कोई राहत मिलनी चाहिए।

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सहानुभूति मोदीजी और उनकी कंपनी के साथ

रमेश गौतम ने कहा-इसके लिए मैं हमारे नेताओं को ख़ास तौर पर श्रेय देता हूँ, जो पिछले दस सालों से हमारे बुजुर्गों को बेवकूफ़ बना रहे हैं। उनकी सहानुभूति मोदीजी और उनकी कंपनी के साथ है, ईपीएस सदस्यों के साथ नहीं। इसका कारण तो वे ही जानते हैं।

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