- सेल में राउरकेला इस्पात संयंत्र ब्लास्ट फर्नेस में बायोचार इंजेक्शन शुरू करने वाली पहली इकाई बनी।
सूचनाजी न्यूज, राउरकेला। सेल, राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) (SAIL Rourkela Steel Plant) ने सेल, आरडीसीआईएस (RDCIS) के सहयोग से ब्लास्ट फर्नेस-1 में इस्पात उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बायोचार का उपयोग सफलतापूर्वक शुरू किया है।
राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) (Rourkela Steel Plant) के निदेशक प्रभारी अतनु भौमिक ने बायोचार इंजेक्शन के ऐतिहासिक परीक्षण के दौरान पहला बायोचार चार्ज किया। इस अवसर पर कार्यपालक निदेशक (वर्क्स) एसआर सूर्यवंशी, कार्यपालक निदेशक (मानव संसाधन) सह अतिरिक्त प्रभार कार्यपालक निदेशक (परियोजना) तरुण मिश्रा, कार्यपालक निदेशक (आरडीसीआईएस) संदीप कुमार कर, कार्यपालक निदेशक (खान) आलोक वर्मा, कार्यपालक निदेशक (वित्त एवं लेखा) एके बेहुरिया, मुख्य महाप्रबंधकगण और आरएसपी और आरडीसीआईएस के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
इस अवसर पर डायरेक्टर इंचार्ज अतनु भौमिक ने कहा, “हमें पूरे सेल में इस परिवर्तनकारी पहल में सबसे आगे रहने पर गर्व है। अपने परिचालन में बायोचार को एकीकृत करके, हम अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और सतत विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं।” उन्होंने ब्लास्ट फर्नेस कर्मीसमूह को कार्यस्थल में सभी सुरक्षा मानदंडों का पालन करने के लिए भी प्रेरित किया।
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ईडी वर्क्स एसआर सूर्यवंशी ने इस्पात संयंत्र द्वारा कार्बन न्यूट्रल लक्ष्य को प्राप्त करने में इस पहल के महत्व पर प्रकाश डाला। संदीप कर ने ब्लास्ट फर्नेस (Blast Furnace) में बायोचार इंजेक्शन के कामकाज और लाभों के बारे में संक्षेप में बताया।
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उल्लेखनीय है कि, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (Carbon Dioxide Emission) में कटौती करने के लिए, सेल बायोचार के उपयोग जैसे अभिनव समाधानों की खोज कर रहा है, जो पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया (Process called pyrolysis) के माध्यम से बायोमास से प्राप्त कार्बन का एक स्थाई रूप है।
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यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पौधों और जानवरों से उत्पन्न बायोमास को थर्मल रूप से विघटित करती है, जिससे बायोचार का उत्पादन होता है, जिसका उपयोग ब्लास्ट फर्नेस में पारंपरिक पल्वराइज्ड कोल इंजेक्शन (Pulverised Coal Injection) (PCI) कोयले को आंशिक रूप से बदलने के लिए किया जा सकता है।
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आरडीसीआईएस द्वारा किए गए प्रयोगशाला अध्ययनों और परीक्षणों ने पीसीआई कोयले के लिए उपयुक्त प्रतिस्थापन के रूप में बबूल और बांस-आधारित बायोचार की पहचान की है। तेजी से बढ़ने वाले, CO2 अवशोषित करने वाले पेड़ों और पौधों से प्राप्त ये सामग्रियाँ कार्बन न्यूट्रल मानी जाती हैं और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्द्ध हैं। इस तकनीक का सफल परीक्षण आरडीसीआईएस और आरएसपी के ब्लास्ट फर्नेस की टीम के नेतृत्व में एक सहयोगात्मक प्रयास है।