अडानी ग्रुप, केंद्र सरकार पर CITU क्यों बोल रहा-नहीं रोका तो देश के सार्वजनिक उद्योगों को निगल जाएंगे ये

Why is CITU speaking on Adani Group and Central Government - If not stopped, they will swallow the country's PSUs
वाइजैग स्टील प्लांट का उत्पादन 25% तक करने पर विवश करने की नीति के बाद अब सेल को भी उसी रास्ते ले जाने की कोशिश।
  • सेल के कैप्टिव माइंस को अडानी ग्रुप को देने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन।

सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। देश के सार्वजनिक उद्योगों पर छाए काले बादल से ट्रेड यूनियनें डरी हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सीटू ने केंद्र सरकार और अडानी ग्रुप के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। यूनियन आरोप है कि अगर पीएसयू के कर्मचारियों ने नहीं रोका तो देश के सार्वजनिक उद्योगों को अडानी एवं केंद्र सरकार निगल जाएगा।

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भिलाई स्टील प्लांट (Bhilai Steel Plant) की पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन सीटू के जनरल सेक्रेटरी जगन्नाथ प्रसाद त्रिवेदी का कहना है कि ओडिशा स्थित सेल के तालडीह माइंस को अडानी को देने के खिलाफ स्टील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के आह्वान पर सेल के सभी संयंत्र एवं खदानों में सीटू आवाज उठा रही है।

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सेल राउरकेला स्टील प्लांट (SAIL – Rourkela Steel Plant) की केप्टीव माइंस तालडीह आयरन ओर माइंस को केंद्र सरकार द्वारा अडानी ग्रुप को दिये जाने के विरोध में तालडीह माइंस में लगातार 12 दिनों तक हड़ताल चला।

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केन्द्र सरकार ने ओडिशा बीजेपी सरकार का सहारा लेकर पुलिस बल का उपयोग करते हुये हड़ताल को तोड़कर अडानी ग्रुप के लोगों को खदान में घुसा दिया। आज भी वहां लोग आंदोलन कर रहे हैं। जिसके समर्थन में सेल के सभी इकाइयों में विरोध कार्यवाही की जा रही है।

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सुनियोजित षड्यंत्र रचा जा रहा है सार्वजनिक उद्योगों के साथ

सीटू के उपाध्यक्ष डीवीएस रेड्डी का कहना है कि केंद्र सरकार पिछले 10 सालों से सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सार्वजनिक उद्योगों को खत्म करने में लगी हुई है। इंडियन एयरलाइंस खत्म कर दिया गया। एयरपोर्टों को लगातार तेजी से अडानी के हवाले किया जा रहा है। बीएसएनल को बर्बाद करने की योजना जारी है।

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रेलवे को धीरे-धीरे अडानी के हवाले किया जा रहा है। बहुत सारे बंदरगाह संचालन का काम अडानी को सौंपा जा चुका है। कोल माइंस लगातार अडानी को सौंपा जा रहा है। अडानी के साथ-साथ अन्य निजी मालिकों के हाथों सार्वजनिक उद्योगों को देने हेतु परिस्थितियों को निर्माण करने का काम केंद्र सरकार ने तेजी से किया है।

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1500 से ज्यादा दिनों से लड़ रहे हैं विशाखापट्टनम के कर्मी

सीटू के सहायक महासचिव टी. जोगा राव ने कहा-विशाखापट्टनम में स्थित देश का सबसे उन्नत गंगवरम बंदरगाह को अडानी को दे दिया गया है, जिसमें अडानी समूह विदेश से कोल मंगा कर देश में दोगुने दामों पर बेचने का काम कर रहा है।

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विदेश से मंगा रहे इंपोर्टेड कोल (Imported Coal) को स्टोर करने के लिए अडानी समूह को समुद्र के किनारे जगह की आवश्यकता है। इसीलिए वह हर हाल में विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को हासिल करना चाहता है, ताकि वहां का प्लांट उखाड़ कर उस जगह पर कोयला का डंप यार्ड बना सके।

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इसीलिए विशाखापत्तनम स्टील प्लांट (Visakhapatnam Steel Plant) को आयरन ओर माइंस (Iron Ore Mines) ना देकर उत्पादन को 25% पर पहुंचा दिया गया है। साथ में वहां काम करने वाले कर्मियों को अलग-अलग इकाइयों में भेजने की नाकाम कोशिश जारी है।

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नया वेतन समझौता लागू नहीं किया गया है। वहीं, पुराना वेतन का पहला किस्त महीने के 15 तारीख एवं दूसरा किस्त महीने के आखिरी में दिया जा रहा है। इन सब तकलीफों को सहते हुए भी विशाखापट्टनम के कर्मी पिछले 1500 दिनों से लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

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वाइजैग स्टील प्लांट का उत्पादन 25% तक करने पर विवश करने की नीति के बाद अब सेल को भी उसी रास्ते ले जाने की कोशिश की जा रही है।

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यदि नहीं रोका गया तो देश के सार्वजनिक उद्योगों को निगल जाएगा अदानी एवं केंद्र सरकार

सीटू नेता एसपी डे ने कहा-पूरे देश के अंदर केंद्र सरकार की सार्वजनिक उद्योग विरोधी निर्णय के खिलाफ संघर्ष जारी है। केंद्र सरकार अडानी समूह एवं अन्य दूसरे निजी उद्योगों को सार्वजनिक उद्योग सौंप देना चाहती है। यदि इसे अभी नहीं रोका गया तो अडानी समूह एवं केंद्र सरकार देश की रीढ़ कहीं जाने वाली आधुनिक भारत के तीर्थ सार्वजनिक उद्योगों को निगल जाएगा।

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सेल के कर्मियों को लड़ना होगा अपने हिस्से की लड़ाई

सीटू नेता अशोक खातरकर बोले-अलग-अलग सार्वजनिक उद्योगों में हाथ डालने के बाद अब केंद्र सरकार ने सेल के इकाइयों को निजी हाथों में सौपना शुरू कर दिया है। लंबे समय तक भद्रावती स्टील प्लांट, सेलम स्टील प्लांट और दुर्गापुर एलॉय स्टील प्लांट के लिए योजना बनाकर काम करता रहा। कोल माइंस को तो पहले ही निजी हाथों में देने का काम शुरू कर दिया था।

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अब इस्पात उद्योग की सबसे आवश्यक एवं अभिन्न अंग आयरन ओर माइंस को निजी हाथों में देने का कार्य प्रारंभ कर दिया है, इसके खिलाफ सेल के सभी इकाइयों में संघर्षों को तेज करना होगा। अन्यथा आने वाले दिनों में भिलाई इस्पात संयंत्र का केप्टीव माइंस रावघाट को भी निजी हाथों में दिया जा सकता है। इसके खिलाफ सभी कर्मियों एवं आम जनों को संघर्षों में उतरकर अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होगी।

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