
- बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती की सीटू ऑफिस में कार्यक्रम।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। बीएसपी (BSP) की पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन सीटू ने बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर (Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar) की जयंती मनाई। मौजूदा परिस्थितियों में बदलते श्रम कानून एवं भारत का संविधान विषय पर चर्चा रखी गई एवं उस महान युगदृष्टा को नमन कर याद किया गया। जिन्होंने न केवल भारत के संविधान की नींव रखी, बल्कि श्रमिकों के अधिकारों को एक नई पहचान दी। बाबासाहेब के उन श्रम सुधारों को याद करते हुए साथियों ने कहा कि उन्होंने हमारे देश में मजदूरों की बेहतरी के लिए जो श्रम कानून बनाया उसे मौजूदा सरकार खत्म कर रही है इसके खिलाफ संघर्ष को तेज करना होगा।
बाबासाहेब का श्रम सुधारों में योगदान
डॉ. अंबेडकर का जीवन अन्याय के खिलाफ एक अनवरत संघर्ष था। एक दलित परिवार में जन्मे बाबासाहेब ने स्वयं सामाजिक और आर्थिक शोषण का दंश झेला। फिर भी, उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट हासिल की। उनकी विद्वता और अनुभव ने उन्हें श्रमिकों की पीड़ा को समझने और उनके लिए नीतियाँ बनाने की प्रेरणा दी।
बाबा साहब के प्रमुख श्रम सुधारों पर नजर डालें
8 घंटे काम का कानून पेश किया था बाबासाहेब ने
पूरे विश्व में 8 घंटे काम को लेकर संघर्ष चरम पर था। उस समय भारत में बाबासाहेब ने मजदूरों के लिए काम के घंटों को 12-14 घंटे से घटाकर 8 घंटे करने का ऐतिहासिक कदम उठाया। यह सुधार उस समय क्रांतिकारी था, जब श्रमिकों का शोषण चरम पर था। यह नीति Factories Act, 1948 का आधार बनी, जिसने मजदूरों को अमानवीय कार्यभार से मुक्ति दिलाई।
महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश
बाबासाहेब ने महिला श्रमिकों के अधिकारों को प्राथमिकता दी। उन्होंने Maternity Benefit Act की नींव रखी, जिसके तहत महिलाओं को प्रसव के दौरान वेतन सहित अवकाश का अधिकार मिला। यह सुधार न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा करता है, बल्कि उनके आर्थिक सशक्तीकरण का प्रतीक भी है।
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न्यूनतम वेतन का कानून
बाबासाहेब ने मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन की अवधारणा को प्रोत्साहित किया, जो बाद में Minimum Wages Act, 1948 के रूप में लागू हुआ। उनका मानना था कि मजदूर की मेहनत का उचित मूल्य मिलना, सामाजिक न्याय का आधार है। उन्होंने आर्थिक शोषण को सामाजिक असमानता से जोड़ा। समान काम के लिए समान वेतन की पैरवी करते थे।
हड़ताल का अधिकार और यूनियन
बाबासाहेब ने मजदूरों को संगठित होने और हड़ताल करने का अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1936 में, उन्होंने Independent Labour Party की स्थापना की, जिसने 1938 में लाखों मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व किया। उनका कहना था, “किसी की इच्छा के विरुद्ध काम कराना गुलामी है।”
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श्रमिक कल्याण निधि
बाबासाहेब ने कोयला खदानों और अन्य उद्योगों में श्रमिकों के लिए कल्याणकारी निधियों की स्थापना की प्रेरणा दी। यह बाद में Employees’ Provident Fund (1952) जैसे कानूनों का आधार बना। उनका लक्ष्य था कि मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा मिले।
संघर्ष ही एकमात्र विकल्प
आज, जब श्रम कानूनों को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं, बाबासाहेब का संदेश और भी प्रासंगिक है। 2020 में श्रम कानून को श्रम संहिताओं में बदलाव के खिलाफ हमारी लड़ाई उनकी शिक्षाओं से प्रेरित है। बाबासाहेब ने कहा था, “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो!” यह नारा हमारा भी मूलमंत्र है। हमें संगठित होकर मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, और सम्मानजनक जीवन की गारंटी करनी होगी।
सभी को लेना होगा संकल्प
बाबासाहेब का जीवन एक दीपस्तंभ है, जो हमें शोषण के अंधेरे से मुक्ति का रास्ता दिखाता है। उनकी श्रम सुधार नीतियाँ-8 घंटे का कार्यदिवस, मातृत्व अवकाश, न्यूनतम वेतन, हड़ताल का अधिकार-मजदूर वर्ग की जीत हैं। इस अवसर पर हम सभी को संकल्प लेना होगा कि हम बाबासाहेब के सपनों को साकार करेंगे उनके आदर्शों को अपनाकर एक ऐसी दुनिया बनाएँ, जहाँ हर मजदूर को उसकी मेहनत का उचित मूल्य और सम्मान मिले।
20 मई 2025 को संयुक्त हड़ताल प्रस्तावित
चर्चा के दौरान सीटू नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 29 श्रम कानून को खत्म कर 4 श्रम संहिताओं में बदलने के मजदूरों विरोधी फैसलों के खिलाफ संयुक्त रूप से 20 मई 2025 अखिल भारतीय हड़ताल का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिस पर पूरे देश में जोर शोर से तैयारी चल रही है। केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों को रोकने के लिए इस हड़ताल को सफल करना जरूरी है।