चांदीपुरा वायरस एक वैक्टर जनित बीमारी है, जो सैंडफ्लाई मक्खी के द्वारा फैलती है। ये मक्खियां कच्चे-पक्के मकानों के दरारों में रहते है, जो मिट्टी और गोबर से लीपे-पोते होते है।
सूचनाजी न्यूज, रायपुर। देश में कोरोना का दंश झेल चुके लोगों के सामने अब एक और विचित्र बीमारी ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है। गुजरात में करीब 15 दिन के भीतर ही 16 बच्चों की मौत हो गई। अचानक हुई बच्चों की मौत से राज्य सहित देश भर में हड़कंप मच गया। जानकार बता रहे है कि यह एक वायरस के कारण मौत हो रही है। वायरस का नाम चांदीपुरा है। विशेषज्ञ बता रहे है कि यह वायरस मक्खी के कारण हो रही है।
आशंका जताई जा रही है कि यह बीमारी एक खास किस्म की मक्खी के कारण फैस रही है, जिसे सैंडफ्लाई कहते है। आखिर वह क्या कारण है जिससे यह बीमारी फैसली है और अगर यह मक्खी काट ले तो क्या होता है और यह मक्खी कहां पैदा होती है, कहां पनपती है इसके बारे में आज @Suchnaji.com News आपको बताने जा रहा है।
ऐसा फैसला है वायरस
चांदीपुरा वायरस एक वैक्टर जनित बीमारी है, जो सैंडफ्लाई मक्खी के द्वारा फैलती है। ये मक्खियां कच्चे-पक्के मकानों के दरारों में रहते है, जो मिट्टी और गोबर से लीपे-पोते होते है। आमतौर पर यह संक्रामक मक्खियां घर के अंदरुनी हिस्सों में पैदा होती है। नमी इन जीवों के लिए सबसे अनुकूल माहौल माना जाता है, जहां यह पैदा हो सकते है।
ये सैंडफ्लाई अंडे देते है, जो बड़े होकर व्यस्क मक्खी का रूप ले लेते है। ये मक्खियां इतनी छोटी होती है कि नंगी आंखों से दिखने वाली मक्खियों के मुकाबले इनका आकार चार गुना कम होता है। जून से लेकर अक्टूबर के बीच चांदीपुरा वायरस के मामले सबसे ज्यादा सामने आते है।
इस वायरस के लिए कैसा वातावरण होता है अनुकूल
बाल विशेषज्ञ चिकित्सकों ने बताया कि चांदीपुरा वायरस सैंडफ्लाई मक्खी और मच्छर दोनों से फैलते हैं। ये मक्खियां उन घरों की दीवारों में आई दरारों में नजर आती हैं जो मिट्टी या गोबर से पुती हुई होती है। गंदे इलाकों में बने घरों की दीवारों में आई दरारों में भी ये मक्खियां मिलती हैं, जिन कमरों में हवा और सूरज की रोशनी नहीं आती वहां पर ये मक्खियां पैदा होती हैं।
क्या ये संक्रामक बीमारी है?
ये संक्रामक बीमारी नहीं है। लेकिन अगर ये किसी बच्चे को होता है तो दूसरे बच्चे में इससे नहीं फैलेगा। हालांकि ये सैंडफ्लाई किसी संक्रमित बच्चे को काटने के बाद किसी स्वस्थ बच्चे को काटता है तो ये हो सकता है कि वो स्वस्थ बच्चा बीमार पड़ जाए।
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14 साल तक के ही बच्चे आ रहे चपेट में
इस बीमारी की गंभीरता पर बात करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि इस बीमारी से जान गंवाने वाले बच्चों की दर करीब 85 फीसदी है। इसका मतलब ये है कि अगर सौ बच्चों को ये बीमारी होती है तो 15 ही बचाए जा सकते हैं। आमतौर पर इस बीमार की चपेट में 14 साल तक के ही बच्चे आते है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
ये है बीमारी का लक्षण
इस बीमारी के कुछ लक्षणों में तेज बुखार, दस्त, उल्टी आना, नींद न आना और बेहोश होते रहना आदि शामिल है। कुछ घंटों के बाद संक्रमित बच्चा कोमा में भी जा सकता है। चांदीपुरा वायरस से इन लक्षणों के अलावा चमड़ी पर धब्बे भी पड़ जाते है।
डॉक्टरों के मुताबिक फिलहाल इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। केवल लक्षणों का ही इलाज हो पा रहा है। अभी तक इसके लिए वैक्सीन भी नहीं बनी है।
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ऐसे कर सकते हैं बचाव
घरों और आसपास के इलाकों में साफ-सफाई रखें। कूड़ा-कचरा दूर रखें। दीवारों में आई दरार और छोटे गड्ढों को जल्द से जल्द ठीक करें। कमरे के अंदर सूरज की रौशनी लाने का प्रबंध करें।
बच्चों को मच्छरदानी में सुलाने का प्रबंध करें। अगर हो सके तो बच्चों को धूल में, खुले में खेलने से रोंके। कही भी पानी को जमने न दें। कही भी मच्छर या मक्खी को पैदा होने से रोंके। अगर इनमें कोई भी लक्षण आते है तो तुरंत डॉक्टर से मिले।