कर्मचारी पेंशन योजना 1995: ईपीएस 95 हायर पेंशन पर पेंशनर ने कही बड़ी बात, यूनियन, सीबीटी पर गुस्सा

Employee Pension Scheme 1995 Pensioner said big thing on EPS 95 higher pension angry at union and CBT
  • केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके औद्योगिक महासंघों, सीबीटी पर भी पेंशनर ने बड़ी बात कही।

सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। कर्मचारी पेंशन योजना 1995: ईपीएस 95 हायर पेंशन (EPS 95 Higher Pension) की वकालत की जा रही है। इस मांग को लेकर आंदोलन जारी है। बावजूद, केंद्र की मोदी सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन-ईपीएफओ पर सवाल दागे जा रहे हैं। वहीं, यूपीए शासनकाल पर भी तंज कसा गया है।

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पेंशन आंदोलन पर पकड़ रखने वाले मधुसूदन सोम कहते हैं इससे किसे फर्क पड़ता है? 2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए वालेस मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव सेवानिवृत्त कर्मचारियों को धीरे-धीरे एक के बाद एक उच्च ईपीएस पेंशन मिल रही है। जिन लोगों ने आवेदन किया है, उनमें से प्रत्येक को निश्चित रूप से उच्च पेंशन मिलेगी।

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शुरू में जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि उनके जीवनकाल में ऐसा होगा। वे अपने पूर्ववर्ती यूनियनों के पदों पर आसीन हो गए। कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया, बल्कि उनके परिषद के नेताओं ने उन्हें निराश किया और खासकर उन नेताओं ने जो दशकों तक यूनियनों पर राज करते रहे और अपने पद को सिंहासन मानते रहे।

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यह न केवल उनके लिए शर्म की बात है, बल्कि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके औद्योगिक महासंघों और उनके संरक्षक सीबीटी के लिए भी है, जिन्होंने ईपीएस 95 की शुरुआत से ही कुछ नहीं किया। एक बार उन्होंने शुरुआती चरण में हड़ताल की और फिर उन्होंने ईपीएस पेंशन को और बिगड़ने दिया।

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वर्ष 2008 में जब यूपीए सरकार वामपंथी दलों के समर्थन में पूरी तरह से सक्रिय थी, तब ईपीएफओ ने नियोक्ता के हिस्से के 8.33% के बराबर श्रमिकों द्वारा योगदान किए गए पूरे ईपीएस कोष को चूस लिया और पेंशनभोगियों की मृत्यु के बाद नामित व्यक्ति को मासिक पेंशन के दस गुना की दर से पूंजी का भुगतान करना बंद कर दिया और नामित व्यक्ति को उनके वैध दावे से धोखा दिया।

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मधुसूदन सोम आगे लिखते हैं अंततः जो भी लाभ हुआ वह केवल परवीन कोहली और ईपीएस सेवा समूह के नेतृत्व वाले संगठनों और एनएसी आदि अन्य संगठनों से आया। लाखों पेंशनभोगी आवेदन नहीं कर सके और कई अन्य को उच्च पेंशन नहीं मिली और उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है।

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अब सवाल यह है कि ये नेता अपना चेहरा कहां छिपाएंगे, जब उन्हें गर्मियों के अंत और आने वाले बरसात में कोई कंबल नहीं मिलेगा। उच्च पेंशन की मांग मुट्ठी भर पेंशनभोगियों की मांग नहीं थी, यह पूरे श्रमिक वर्ग की मांग थी

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