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EPS 95: EPFO के डिमांड नोट पर बड़ा सवाल, एफडी तोड़ने की नौबत, इन सवालों का चाहिए जवाब

EPS 95: EPFO के डिमांड नोट पर बड़ा सवाल, एफडी तोड़ने की नौबत, इन सवालों का चाहिए जवाब
  • श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय भविष्य निधि संगठन के आयुक्त को छत्तीसगढ़ के पेंशनर्स ने लिखा पत्र। मांगे कई सवालों के जवाब।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय भविष्य निधि संगठन के आयुक्त को एक बार फिर पत्र लिखने की जरूरत पड़ गई। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त छत्तीसगढ़ द्वारा भेजे जा रहे डिमांड नोट के अनुसार राशि का भुगतान को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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ईपीएस 95 (EPS 95) पेंशनर्स राष्ट्रीय संघर्ष समिति के छत्तीसगढ़ अध्यक्ष एलएम सिद्दीकी की तरफ से पत्र लिखा गया है। पत्र में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन द्वारा भेजे जा रहे मांग पत्र (डिमांड नोट) में, पेंशनर द्वारा, अंतर की राशि + ब्याज, जमा करने के निर्देश के साथ, उनके गणना का विवरण भी उल्लेख किया जा रहा है। डिमांड नोट में मांगी गई राशियां लाखों रुपयों में है और बरसों पूर्व सेवानिवृत्त हो गए कर्मियों के लिए इस भारी भरकम राशि की व्यवस्था करके जमा करना उनके लिए लगभग असम्भव है।

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फिर भी जो सेवानिवृत्त कर्मचारी (Retired Employee) उच्च पेंशन के इच्छुक हैं और उच्च पेंशन लेकर, जीवन के अंतिम दिन अच्छी तरह गुजारना चाहते हैं, वे, अपनी जमा पूंजी के एफडी को तोड़ कर डिमांड नोट के अनुसार लाखों रुपए जमा करने का दुस्साहस करने को तैयार है, लेकिन वे चाहते हैं कि उन्हें निम्न सूचनाएं डिमांड नोट के साथ दिए जाएं या जिन्हें डिमांड नोट दिया जा चुका है। उन्हें भी निम्न जानकारी अविलंब दिया जाए ताकि वे प्राप्त सूचनाओं के संदर्भ में उच्च पेंशन लेने या नहीं लेने का उचित निर्णय ले सकें।

-उनका रिवाइज उच्च पेंशन कितना बनेगा।
-पेंशन का एरियर्स कितना होगा और उनके द्वारा अंतर की राशि + ब्याज के भुगतान के कितने समय के बाद, ईपीएफओ (EPFO) द्वारा एरियर्स दिया जाएगा।
-इसके पूर्व 4 अक्टूबर 2016 के जजमेंट के क्रियान्वयन के तारतम्य में प्रत्येक पेंशनर को उक्त सभी सूचनाएं मुहैया कराई गई थीं। दस जुलाई 2019 का एक पत्र जो किसी श्री हिंदूराव नारायण पाटिल को समस्त विवरण के साथ, क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त कोल्हापुर, द्वारा भेजा गया था।
ईपीएफओ द्वारा अंतर की राशि के साथ ब्याज भी लिया जा रहा है जो अपने आप में काफी बड़ी रकम है। नैसर्गिक न्याय की मांग यही है कि ईपीएफओ भी पेंशन के एरियर्स के साथ ब्याज का भुगतान करे।
-यह क्यों संभव नहीं है कि अंतर की राशि+ब्याज जिसका ईपीएफओ द्वारा मांग किया जा रहा है, उस राशि को पेंशनर को दिए जाने वाले पेंशन एरियर्स के साथ, फाइनेंस के खातों में समायोजित कर लिया जाए। अगर अंतर की राशि+ब्याज अधिक हो तो ईपीएफओ पेंशन एरियर्स समायोजित कर बकाया राशि पेंशनर से वसूले और कम हो, तो एरियर्स की बकाया राशि स्वयं भुगतान करे, जो कि पेंशनर के लिए सुविधाजनक होगा।

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बहुत से पेंशनर्स ने छोड़ दिया हॉयर पेंशन

कहने की जरूरत नहीं कि जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में प्रत्येक पेंशनर के पास ईपीएफओ को भुगतान करने के लिए लाखों रुपए उपलब्ध नहीं होंगे। बहुत से पेंशनर्स ने तो इसलिए भी उच्च पेंशन की उम्मीदें छोड़ दी हैं, क्योंकि उनके पास डिमांड नोट के अनुसार लाखों रुपए जमा करने के लिय उपलब्ध नहीं है।

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केंद्रीय भविष्य निधि संगठन को निर्देशित करें कि…

-डिमांड नोट के साथ संभावित रिवाइज उच्च पेंशन का उल्लेख करें और यह भी बताएं कि मांगी गई राशि जमा कर देने के कितने समय के बाद रिवाइस्ड पेंशन देना प्रारंभ किया जाएगा।
-यह भी सूचित करें कि पेंशनर को पेंशन का एरियर्स कितना और कब मिलेगा।
-अंतर की राशि+ब्याज जो पेंशनर से ई पी एफ ओ को लिया जाना है और पेंशनर को दिए जाने वाले पेंशन एरियर्स को फाइनेंस के खातों में समायोजित करवाएं ताकि वृद्ध पेंशनर्स के ऊपर अनावश्यक आर्थिक बोझ ना पड़े।
-अंतर की राशि के साथ जब ब्याज लिया जा रहा है तो पेंशन एरियर्स के ऊपर भी ब्याज दिया जाए। यही न्याय होगा
-जैसा कि ज्ञात हुआ है, 31 अगस्त 2014 तक के पेंशन की गणना के लिए पेंशनर्स के सेवाकाल के अंतिम 12 महीनों और 1 सितंबर 2014 से अंतिम 60 महीनों के सेवाकाल के वेतन का औसत , उच्च पेंशन बनाए जाने हेतु, फार्मूले में “पेंशनैबल सैलरी” के रूप में लिया जाएगा।
-इस पर भी संशय है कि भविष्य में पेंशनबल सैलरी का फॉर्मूला कहीं फिर से बदल न दिया जाए? इस पर भी पेंशनर्स को स्पष्टीकरण की नितांत आवश्यकता है।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उल्लंघन न करें

पेंशन की तरफ से लिखे गए पत्र में उल्लेख किया गया है कि समस्त सूचनाएं मिलने के बाद ही उच्च पेंशन के इच्छुक सही निर्णय ले सकेंगे। अगर उक्त बिंदुओं पर विचार नहीं किया गया तो वृद्ध पेंशनर्स के साथ अन्याय होगा और सही मायनों में सुप्रीम को र्ट के जजमेंट दिनांक 4 नवंबर 22 के क्रियान्वय का जानबूझ कर उल्लंघन समझा जाएगा।

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