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मुहर्रम 2024: गूंज उठी सदा, या हुसैन अलविदा…

मुहर्रम 2024: गूंज उठी सदा, या हुसैन अलविदा…
  • इमाम हुसैन और उनके कुनबे के 72 साथियों की शहादत पर अकीदतमंदों ने गम का किया इजहार।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके कुनबे 72 साथियों की शहादत का गम एक बार फिर मनाया गया।

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हर साल की तरह अकीदत पेश करने के लिए ताजिया का जुलूस निकाला गया। शहर के विभिन्न इलाकों से होते हुए जुलूस सुपेला कर्बला मैदान पहुंच रहा है। रात 9.30 बजे तक मुर्गा चौक पर ही ताजिया का जुलूस पहुंच सका था।

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मंगलवार को दुनिया भर में मुहर्रम मनाया जा रहा है। शिया समुदाय घरों और इमामबाड़ों में मातम करता रहा। सुन्नी समुदाय शोक व्यक्त करने के लिए इमाम चौक पर बैठाए गए ताजिया के पास रस्म-अदायगी की। वहीं, लोगों ने रोजा भी रखा। शहादत के गम में रोजेदार दिनभर इबादत करते रहे।

घरों और मस्जिदों में इबादत का दौर चला। शाम को जगह-जगह रोजा इफ्तार का आयोजन किया गया था। जामा मस्जिद सेक्टर 6 में भी रोजा इफ्तार और जलसे का आयोजन किया गया।

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शहर के तमाम इमाम चौक से ताजिया का जुलूस पॉवर हाउस पहुंचा। यहां से एक साथ सभी ताजिया का जुलूस मुर्गा चौक, 25 मिलियन चौक सेक्टर 5 होते हुए सुपेला कर्बला मैदान पहुंच रहा। यहां ताजिया पर चढ़ाए गए फूलों को दफ्न किया जाएगा। फातिहा पढ़ी जाएगी। शहीदों को याद किया जाएगा।

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जुलूस के साथ महिलाएं और बच्चे भी चल रहे थे। युद्ध कला का प्रदर्शन करते हुए अखाड़ा के खिलाड़ी चल रहे थे। कोई आग से खेल रहा था तो कोई तलवार से। इस दौरान भारी पुलिस बल भी तैनात किया गया था। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए शहर के गणमान्य नागरिक खुद मोर्चा संभाले हुए थे।

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दूसरी तरफ शहर के कई स्थानों पर मुहर्रम और कर्बला के वाक्या पर तकरीरी प्रोग्राम होते रहे। इस्लाही जलसे में इमाम हुसैन और इंसानियत पर तकरीर होती रही। उलेमा दीन और समाज को लेकर इस्लामी आइने में अपनी बात रखते रहे।

बादशाह यजीद के जुल्म-ओ-सितम को बर्दास्त करने के बजाय उसके खिलाफ आवाज उठाई। बादशाह ने इमाम हुसैन समेत कुनबे को शहीद कर दिया, लेकिन किसी ने बादशाह के आगे सिर नहीं झुकाया।

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दूसरी तरफ शिया समुदाय के लोग काला लिबास पहने नजर आए। सुपेला इमामबाड़ा में मजलिस की गई। शाम-ए-गरीबां मनाया गया।

इसमें उस मंजर को याद किया गया, जब शहादत के बाद बची हुईं महिलाएं रात के अंधेरे में बिलख-बिलख कर रो रही थीं। लोग अपने घरों की लाइट को बंद करके अंधेरे में मामत करते रहे और रोते रहे।

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