इस घटना ने प्रदेश के निरंकुश माफिया राज और शासन प्रशासन के भ्रष्ट गठजोड़ को बेकानब कर दिया है।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्या कांड पर देशभर में रोष है। हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है। भिलाई में भी विरोध प्रदर्शन किया गया है।
भिलाई के जनवादी संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति, महिला मुक्ति मोर्चा, CPM, CITU, ज़न संघर्ष मोर्चा, CPI ML लिब्रेशन, ERID, Durg मसीह विकास समिति, मुस्लिम फोरम, जनवादी महिला समिति, हसदेव बचाओ समिति द्वारा सिविक सेंटर चौक में विरोध प्रदर्शन कर पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है।
पत्रकारों की सुरक्षा के कड़े प्रावधान के साथ पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हो
छत्तीसगढ़ पीयूसीएल के अध्यक्ष जूनस तिर्की और महासचिव कलादास डहरिया का कहना है कि बस्तर के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या जन पत्रकारिता पर गहरा आघात है। छत्तीसगढ़ पीयूसीएल अपनी संवेदना और दुख व्यक्त करते हुए इस हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करता है।
इस घटना ने प्रदेश के निरंकुश माफिया राज और शासन प्रशासन के भ्रष्ट गठजोड़ को बेकानब कर दिया है। बस्तर जहां पर पत्रकारिता एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, वहां मुकेश चंद्राकर बहुत ही कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवार से निकलकर जन पत्रकारिता कर रहे थे। बस्तर में फर्जी मामलों में आदिवासियों की गिरफ्तारियों से लेकर फर्जी मुठभेड़ के मामलों को प्रमुखता से उन्होंने उठाया है।
पीयूसीएल ने अपने बयान में कहा है कि हालांकि इस घटना के तात्कालिक कारण के रूप में मुकेश की वह रिपोर्टिंग सामने आई है, जिसमें अरबों की लागत से बन रहे गंगालूर से लेकर मिरतुल तक के सड़क निर्माण की घटिया गुणवत्ता को उजागर किया गया था, लेकिन सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद भी आज तक इसके खिलाफ कोई कार्यवाही शुरू नहीं हुई है।
यह भ्रष्टाचारियों और इसे दबाने-छुपाने के खेल में लगे राजनेताओं और प्रशासन की मिलीभगत को उजागर करता है। इस बर्बर हत्याकांड में जिन लोगों के नाम सामने आए हैं, उनका कांग्रेस-भाजपा के नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध भी किसी से छुपा हुआ नहीं है और हत्यारों का राजनैतिक गमछे बदलकर अवैध तरीकों से पैसा बनाना भी सबकी नजरों में है। इसलिए सीबीआई जांच के जरिए इस पूरे माफिया गिरोह और उनके आकाओं को बेनकाब करना जरूरी है।
यह दुखद है कि छत्तीसगढ़ निर्माण के 24 साल बाद भी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस-भाजपा एक प्रभावशाली कानून बनाने में विफल रही है, तो इसलिए कि न तो कांग्रेस की, और न ही भाजपा की पत्रकारों को सुरक्षा देने में कोई दिलचस्पी रही है।
एक विपक्षी पार्टी के रूप में उन्होंने केवल पत्रकारों को भरमाने का और गोदी-भोंपू मीडिया पनपाने ही काम किया है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। कुछ महीने पूर्व ही बस्तर के ही बाप्पी राय सहित कुछ पत्रकार साथियों पर गांजा तस्करी का फर्जी अपराध दर्ज किया गया था, जिसमें एक थाना इंचार्ज सीधे तौर पर षड्यंत्रकारी था।
बस्तर में प्रशासन द्वारा जनता के लिए पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को डराना-धमकाना आम बात है और अब नौबत माफियाओं द्वारा पत्रकारों की हत्या तक पहुंच गई है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2016 में पीयूसीएल ने संवेदनशील खबरों को उजागर करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा के लिये एक कानून की मांग उठाई थी। और ऐसे ही कानून का मसौदा भी तैयार किया था।
भूपेश बघेल की सरकार ने ऐसे ही कानून को बनाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आफताब आलम के नेतृत्त्व को यह काम सौंपा था, जिन्होंने कई सार्वजनिक चर्चाओं और विभिन्न पत्रकारों से बातचीत के बाद एक कानून और उसकी नियमावली भी प्रस्तावित की थी।
परन्तु इस कानून के क्रियान्वयन के बजाय, कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बिना किसी चर्चा के और छत्तीसगढ़ पत्रकारों के विरोध के बावजूद विधान सभा नें एक “छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक, 2023” पारित किया, जिसे भी आज दिनांक तक क्रियान्वित नहीं किया गया है।
छत्तीसगढ़ पीयूसीएल ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना का इजहार किया है। सभी संगठन ने मुकेश चंद्राकर के हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा की मांग के साथ पूरे मामले में इसके पीछे की राजनीतिक गठजोड़ का भी पर्दाफाश होना चाहिए।
सभा को जय प्रकाश नायर, वीएन प्रसाद राव, नीरा, सुरेंद्र मोहंती, सज्जाद हुसैन, बिशप MKP समनाथन, पास्टर चावराम साहू, अब्दुल अजीम, एसपी डे, डीवीएस रेड्डी, शांत कुमार, देवानंद चौहान, दिलीप उमरे, वकील भारती, अर्चना ध्रुव, संदीप पाटिल, रंगा भारती, महेश, कल्याण पटेल आदि शामिल थे।