
- सरकारी खरीद के लिए ‘मेड इन इंडिया’ इस्पात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से घरेलू स्तर पर निर्मित लौह एवं इस्पात उत्पाद (डीएमआईएंडएसपी) नीति का कार्यान्वयन किया गया है।
सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। इस्पात एक विनियमन-मुक्त क्षेत्र है और केंद्र सरकार इसमें सुविधा प्रदाता की भूमिका निभा रही है। इस्पात का निर्यात वैश्विक बाजार की स्थिति, मांग एवं आपूर्ति, लौह अयस्क तथा बुझे हुए पत्थर के कोयले आदि जैसे कच्चे माल की लागत जैसे कारकों पर निर्भर करता है, जो सीधा बाजार से जुड़े हुए होते हैं।
इस्पात एवं भारी उद्योग राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा ने लोकसभा एक लिखित उत्तर में कहा कि सरकार निर्यात, आयात, कीमतों आदि सहित समग्र इस्पात परिदृश्य पर नियमित रूप से निगरानी रखती है।
सरकार ने भारतीय इस्पात उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए हैं: –
i. केंद्रीय बजट 2024-25 में फेरो-निकेल और मोलिब्डेनम अयस्कों तथा गाढ़े घोल जैसे घटकों, जो कि इस्पात उद्योग के लिए कच्चे माल की श्रेणी में हैं, उन पर मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) को 2.5% से घटाकर शून्य कर दिया गया है।
ii. कोल्ड रोल्ड ग्रेन ओरिएंटेड स्टील के विनिर्माण के लिए फेरस स्क्रैप और निर्दिष्ट कच्चे माल पर मूल सीमा शुल्क छूट 31.03.2026 तक जारी रखी गई है।
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iii. देश के भीतर ‘विशिष्ट इस्पात’ के विनिर्माण को बढ़ावा देने और पूंजी निवेश को आकर्षित करके आयात पर निर्भरता कम करने के लक्ष्य के साथ विशिष्ट इस्पात के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का कार्यान्वयन हुआ है।
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विशिष्ट इस्पात के लिए पीएलआई योजना के तहत अनुमानित अतिरिक्त निवेश 27,106 करोड़ रुपये है, जिसमें विशिष्ट इस्पात हेतु लगभग 24 मिलियन टन (एमटी) की डाउनस्ट्रीम क्षमता सृजन शामिल है।
iv. सरकारी खरीद के लिए ‘मेड इन इंडिया’ इस्पात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से घरेलू स्तर पर निर्मित लौह एवं इस्पात उत्पाद (डीएमआईएंडएसपी) नीति का कार्यान्वयन किया गया है।
पिछले दो वर्षों और अप्रैल-नवंबर 2024-25 (अनंतिम) में कुल तैयार इस्पात के समग्र निर्यात का विवरण नीचे दिया गया है:-
तैयार इस्पात निर्यात | |
वर्ष | मात्रा (मिलियन टन में) |
2022-23 | 6.72 |
2023-24 | 7.49 |
अप्रैल से नवंबर 2024-25* | 3.15 |
स्रोत: संयुक्त संयंत्र समिति (जेपीसी); एमएनटी=मिलियन टन; *अनंतिम |