27 राज्यों में पेंशनर्स संगठित, 7500+डीए संग 15000 पेंशन की आवाज

Pensioners organized in 27 states, voice for 15000 pension with 7500+DA
पेंशन संघर्ष में 78 लाख ईपीएस 95 पेंशनर्स होने के बावजूद एक लाख भी पेंशनर्स दिल्ली रामलीला मैदान या जन्तर-मन्तर नहीं पहुंचते हैं।
  • ईपीएस 95 न्यूनतम पेंशन को बढ़ाने की मांग की जा रही है।

सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। पेंशनभोगी Tapan Datta ने राष्ट्रीय संघर्ष समित और ईपीएस 95 पेंशन (EPS 95 Pension) पर बहुत ही सटिक बात कही है। उनका कहना है कि विगत आठ वर्ष में यह आन्दोलन 27 राज्यों में पेंशनर को संगठित करने मे सफल होकर केन्द्र सरकार पर दबाव बनाए हुए है कि ईपीएस 95 पेंशनर्स परेशान हाल है।

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पेंशन मात्र एक हजार मासिक जो बहुत कम है। कोश्यारी कमेटी के आधार पर पेंशन को आज कम से कम 7500+डीए=15000/मासिक पेंशन मिलना चाहिए। न्यायालय भी यही बात दोहरा रहा है। ईपीएफओ टाल-मटोल कर रहा है। ईपीएस 95 पेंशनर्स के उपचार की उचित व्यवस्था हो। दुर्भाग्य है कि पेंशन संघर्ष में 78 लाख ईपीएस 95 पेंशनर्स होने के बावजूद एक लाख भी पेंशनर्स दिल्ली दरबार के रामलीला मैदान या जन्तर-मन्तर नई दिल्ली आन्दोलन में नहीं पहुंचते हैं।

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केवल और ज्ञान देते रहते हैं। कोर्ट में क्या हुआ? सरकार को मानना पड़ेगा। आश्वासन पर इतना बिलम्ब क्यो? हम सब पेंशनर भाई-भाई,बिना लड़ाई नही मिलेगा भाई।

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उनका कहना है कि कमान्डर अशोक राउत टीम सहित देश भर को अधिकार की लड़ाई में साथ लेकर संघर्ष कर रहे है। हमारी एकता हमे विजय दिलाएगी।

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भगवान सरकार को न्यूनतम पेंशन मंजूर करने की सद्बुद्धि दे

एक अन्य पेंशनर्स सनत रावल ने कहा-भगवान सरकार को एनएसी की मांग के अनुसार दिवाली से पहले न्यूनतम पेंशन मंजूर करने की सद्बुद्धि दे ताकि, ईपीएस-95 पेंशनभोगी/वरिष्ठ नागरिक दिवाली को मुस्कुराहट के साथ मना सकें। कमांडर अशोक राउत और एनएसी की टीम जिंदाबाद।

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पेंशन बढ़ाओ वर्ना गद्दी छोड़ो…

Kumar Brajesh ने लिखा- “जो हमारा काम करेगा , वही देश पर राज करेगा।” क्या यह अंधेरे में तीर मारने वाला नारा नहीं लगता? यदि नारा ही देना है तो ये बोलो-” पेंशन बढ़ाओ वर्ना गद्दी छोड़ो।”नरेंद्र मोदी दिल्ली छोड़ो।” 8 वर्षों से चल रहा ये आंदोलन राजनीति से प्रभावित तो है, पर राजनीति को प्रभावित करने में अब तक विफल रहा है। क्योंकि हम स्वयं को एक गैर राजनीतिक बताते हैं और राजनेताओं का ही समर्थन लेते हैं।

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कभी तो इतने बड़े आंदोलन का सिर या पैर का पता ही नहीं लगता। सरकार तो तोड़ जोड़ में काफी माहिर है तो आपका स्टैंड अब कहां है? अब आप स्वयं ही अपना मूल्यांकन कर लें।

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