ओडिशा में जगन्नाथ भगवान के ऊपर जितने भी गीत-भजन इत्यादि गाए जाते हैं, सारे के सारे भक्त सालबेग के द्वारा रचित है। प्रत्येक भजन के अंतिम लाइन में भक्त सालबेग का नाम जरूर आता है।
अज़मत अली, भिलाई। Jagannath Mela 2023: भगवान जगन्नाथ मेला 2023 के रंग में हर कोई रंगा हुआ है। भक्ती का सैलाब मंदिरों में उमड़ रहा है। आस्था की चौखट पर हर कोई सच्चा भक्त साबित करने में लगा है। क्या आप जानते हैं कि भक्तों की फेहरिस्त में धर्म की दीवार टूटती है। जी हां, भगवान जगन्नाथ जी के साथ भी ऐसा ही है। मुस्लिम भक्त के लिए भगवान जगन्नाथ ने अपना रथ ही रोक दिया था। आज भी जगन्नाथ पुरी में मुस्लिम भक्त सालबेग की मजार धार्मिक ताने-बाने की नजीर है।
भगवान जगन्नाथ के प्रिय भक्त हुआ करते थे, जो जाति से मुसलमान थे। उनका नाम सालबेग था। अभी भी ओडिशा में जगन्नाथ भगवान के ऊपर जितने भी गीत-भजन इत्यादि गाए जाते हैं, सारे के सारे भक्त सालबेग के द्वारा रचित है। प्रत्येक भजन के अंतिम लाइन में भक्त सालबेग का नाम जरूर आता है। यह सामाजिक समरसता और हिंदू-मुस्लिम ताने-बाने का जीता-जागता सबूत है।
श्री जगन्नाथ समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र सतपथी ने कहा कि भगवान जगन्नाथ जी के सबसे सच्चे भक्त सालबेग थे। धार्मिक एकता का इससे बेहतर और क्या सबूत हो सकता है। जिसे आज लोग मान नहीं रहे हैं। ऐसे में कुमार विश्वास की वह पक्ति याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा है कि लोग धर्म को तो मानते हैं, पर धर्म की नहीं मानते हैं। धर्म में क्या कहा गया है, अगर, उसको मान लें तो इंसानियत का संदेश दुनिया तक पहुंच जाएगा।
भक्त और भगवान के बीच का रिश्ता आज भी जिंदा है। आज भी जगन्नाथ पुरी में रथ जिस रास्ते से गुजरता है, उसे बड़दांड़ कहा जाता है। इसी मार्ग में भक्त सालबेग की मजार है। मजार के सामने रथ अवश्य रूप से कुछ देर के लिए रुकता है। इसे यह माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ भक्त सालबेग को अंतरमन से दर्शन देते हैं।
समिति के महासचिव सत्यवान नायक ने कहा कि भक्त सालबेग के बारे में कहा जाता है कि उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था। जिस कारण वह मंदिर के बाहर ही बैठ गए। और वहीं से ही भजन करने लगे। इसके बाद भक्त सालबेग लौट गए और कहा-जब भगवान मंदिर से बाहर आएंगे, तभी मैं दर्शन करूंगा। जगन्नाथ मेला में ही भगवान मंदिर से बाहर आते हैं।
आखिरकार वह दिन आ ही गया। मेला के दौरान भक्त सालबेग पदयात्रा करते हुए जगन्नाथ पुरी पहुंच रहे थे, लेकिन सूरज डूबने लगा था। मान्यता के मुताबिक सूरज डूबने के बाद रथयात्रा नहीं निकाली जाती है।
इधर-भक्त सालबेग ने अंतरध्यान किया कि प्रभु अगर, मेरी सच्ची आस्था है और मैं आपका सच्चा भक्त हूं तो रथ रोके रखना। और हुआ भी ऐसा। मंदिर के बाहर लोग रथ खींचते रहे, लेकिन वह आगे बढ़ ही नहीं रहा था। लोग परेशान रहे। इसी बीच भक्त सालबेग पहुंचे और देखा कि सूरज डूबने के बाद भी रथ वहीं खड़ा है। यह देख सालबेग की आंखों से आंसू फूट पड़ा। और रथ के रस्सी में सालबेग का हाथ लगते ही रथ आगे चलने लगा। आज भी सालबेग की मजार बड़दांड़ रोड़ पर है।