- EPFO हर साल सीपीएफ ट्रस्ट के खाते-रिकॉर्ड की करता है जांच, लेता है शुल्क, पेंशन फॉर्म कैंसिल करने का दांव पड़ा उल्टा।
- एलएम सिद्दीकी ने कहा-ट्रस्ट रूल्स का हवाला देकर सदस्यों को उच्च पेंशन से वंचित करने का प्रयत्न महज़ एक साजिश।
सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees Provident Fund Organization) बुरी तरह से फंसता दिख रहा है। ईपीएस 95 हायर पेंशन को लेकर ईपीएफओ (EPFO) का घेर लिया गया है। पेंशनर्स ने तर्क के साथ ऐसी बात बोल दी है कि कानूनी नजर से ईपीएफओ का बचना नामुमकिन दिख रहा है।
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सेल (SAIL) के भिलाई स्टील प्लांट (Bhilai Steel Plant) समेत कई प्लांट के कार्मिकों का ज्वाइंट ऑप्शन फॉर्म निरस्त करने का मामला सामने आ चुका है। डिमांड लेटर को वापस लेने और जमा चेक को वापस करने से हड़कंप मचा हुआ है। पूरी जिम्मेदारी और आरोप सेल के सीपीएफ ट्रस्ट पर लगते रहे। अब ईपीएफओ ही फंसता दिख रहा है।
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ईपीएस 95 पेंशनर्स राष्ट्रीय संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष एलएम सिद्दीकी ने Suchnaji.com को बताया कि एक गैरकानूनी परिपत्र 31 मई 2017 के द्वारा Exempted Establishments में कार्यरत अथवा रिटायर्ड इम्प्लाइज को इस लाभ से वंचित कर दिया गया था।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के जांच अधिकारी पर सवाल
Exempted, Unexempted Establishments पर ईपीएफओ घेरते हुए एलएम सिद्दीकी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि Exempted Establishments के सभी खातों और रिकॉर्ड्स की जांच समय- समय पर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के जांच अधिकारी द्वारा किया जाता है। और इसका प्रशासनिक शुल्क भी वास्तविक वेतन के आधार पर इम्प्लायर से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा वसूला जाता है।
आपत्ति क्यों नहीं की?
अगर नियोक्ता द्वारा, सीमित वेतन से अधिक वेतन हो जाने पर भी, पेंशन फंड में वर्षों से लगातार अंशदान किया गया तो उस समय उन्होंने आपत्ति क्यों नहीं की?
जाहिर है कि इसे कभी भी भविष्य निधि संगठन द्वारा आपत्ति योग्य समझा ही नहीं गया और बाद में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी 4 नवंबर 2022 को आ गया।
वास्तविक वेतन पर पीएफफंड के लिए अंशदान किया गया
भविष्य निधि संगठन ने अपने परिपत्र 22-1-2019 द्वारा अपने क्षेत्रीय कार्यालयों को निर्देशित किया था कि कर्मचारी और नियोक्ता द्वारा जहां वास्तविक वेतन पर पीएफफंड के लिए अंशदान किया गया है और जिसे भविष्य निधि संगठन ने स्वीकार भी कर लिया है।
ऐसे हालात में यह मान लेना चाहिए कि ईपीएफ एक्ट 1952 के अंतर्गत पैरा (26) का अनुपालन कर लिया गया है।
इसलिए ट्रस्ट रूल्स का हवाला देकर सदस्यों को उच्च पेंशन से वंचित करने का प्रयत्न महज़ एक षड़यंत्र प्रतीत होता है, जो अन्यायपूर्ण और असंगत है।