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EPS 95 पेंशन को लेकर EPFO-सरकार पर भयंकर गुस्सा, खुद को भिखारी से गैर-गुजरे बोल गए पेंशनभोगी

EPS 95 पेंशन को लेकर EPFO-सरकार पर भयंकर गुस्सा, खुद को भिखारी से गैर-गुजरे बोल गए पेंशनभोगी
  • पेंशनर्स ने कहा-“दे दे राम-दिला दे राम” चिल्ला-चिल्ला कर मरते भी जा रहे हैं,पर सरकार की ओर से दया की एक बूंद भी देना मयस्कर न हुआ।

सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees Provident Fund Organisation) और केंद्र सरकार को लेकर बड़ा दावा किया जा रहा है। यह बात हम नहीं, बल्कि पेंशनर्स खुद कर रहे हैं। ईपीएफओ (EPFO) पर दबाव है कि वह न्यूनतम पेंशन का रास्ता साफ करे। सरकार तक मजबूती से बात रखे।

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पेंशनर्स को जागरुक करने वालों में शामिल Anil Kumar Namdeo ने सोशल मीडिया पर EPS 95 पेंशन को लेकर पोस्ट किया। लिखा-सरकार की निगाह में शायद पेंशनर्स पर खर्च करना पैसे की बर्बादी है। भिखारी की भी औकात नहीं…। कोई भिखारी तीन चार बार आता है तो हार कर उसकी झोली में लोग एकाध सिक्का पुण्य कमाने के लिए डाल ही देते हैं। यहां तो सैंकड़ों भिखारी रोज रोज सालों सालों से “दे दे राम-दिला दे राम” चिल्ला चिल्ला कर मरते भी जा रहे हैं,पर सरकार की ओर से दया की एक बूंद भी देना मयस्कर न हुआ।

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जब खुद के पेंशन-वेतन की बारी आती है तो सरकार की एक ही बैठक में सब हल

अनिल कुमार ने लिखा-जब खुद के पेंशन-वेतन की बारी आती है तो एक ही बैठक में, एक ही स्वर से बेहिसाब बढोतरी कर लेते हैं और पेंशनरों के लिए पिछले 7 सालों से कुछ नहीं किया। पिछली सरकार की कोई मजबूरी रही हो,ये तो जान नहीं पाए पर अब जो नव गठित सरकार है,लगता है इसकी मजबूरी भी खास हो सकती है। जब तक सरकार के दूसरे प्रतिभागी नहीं चाहेंगे, तो कहना मुश्किल होगा कि “मोदी है तो मुमकिन है।”

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कानूनी लड़ाई का भी अंत क्या है…

यही हाल कानूनी प्रक्रिया का है,वहां भी पेंशनरों की कोई सुनवाई नहीं,बस इधर से उधर,एक पेशी से दूसरी पेशी,फैसले जो लिए गए उस पर अमल नहीं। वरिष्ठ नागरिकों के प्रकरण को सुनवाई की कोई वरीयता क्रम में नहीं रखा जाना। जानते हुए भी वे सभी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,अनेक याचिकाकर्ता दिनों दिन भगवान को प्यारे होते जा रहे हैं…।

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राजनैतिक दृश्य में बदलाव आपकी किस्मत में भी बदलाव ला सकेगी?

ये नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की भी किसी को चिंता नहीं। धन्य है प्रजातंत्र कही जाने वाली सरकार और संवेदनशील न्यायिक व्यवस्था। हमारा उन्हें शाश्वत प्रणाम…। इसके आगे कोई क्या कह सकता है। हम तो आवाज उठाते रहेंगे…आप मित्रवर क्या सोचते हैं? क्या राजनैतिक दृश्य में बदलाव आपकी किस्मत में भी बदलाव ला सकेगी? कुछ कहना चाहोगे मित्रों?

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