सूचनाजी न्यूज, भिलाई। भिलाई स्टील प्लांट के अंदर स्वच्छता की धज्जियां उड़ती आप देख सकते हैं। पिछले कई महीनों से संयंत्र के विभिन्न विभागों के टॉयलेट यूरिनल की हालत बहुत ही खराब है और उनकी रेगुलर सफाई नहीं हो रही है। और अभी ताजा घटना है, रेल मिल की।
कई-कई दिनों तक यूरिनल की सफाई नहीं हो रही थी, उसके बाद कर्मियों ने बदबू से परेशान होकर पुलपिट में चढ़ने से मना कर दिया, क्योंकि यूरिनल से लगे हुए पुलपिट में बदबू के कारण बैठना दूभर हो गया था। इसीलिए कर्मी कह दिए कि हम पुलपीट नहीं चलाएंगे। विभागीय प्रतिनिधि को भी कह दिए कि हम पुलपिट में नहीं चढ़ेंगे। इसकी जानकारी जैसे ही आईआर को दी गई, उसके बाद आईआर ने हस्तक्षेप कर तुरंत कार्यवाही करवाई।
ऐसे विषयों में आईआर दखल देने को है मजबूर
10-15 दिनों तक सफाई ना होता देख पिछले दिनों रेल मिल के कर्मियों ने सीटू के पदाधिकारियों को इसकी शिकायत की थी। सीटू के पदाधिकारी ने HOD तक इस बात को पहुंचा दिया था और उसकी शिकायत रेल मिल के कार्मिक अधिकारी से भी की गई।
लेकिन उसके बाद भी सफाई नहीं होने पर संयंत्र के औद्योगिक संबंध से जुड़े मुद्दों में व्यस्त रहने वाले आईआर के अधिकारियों से इसकी शिकायत करना पड़ा, जिसके बाद सफाई कार्य किया गया। लेकिन सवाल यह है कि आईआर के पास क्या यही काम है। विभाग के लेबर ऑफिसर क्या कर रहे हैं, कार्मिक अधिकारी क्या कर रहे हैं।
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सीटू का मानना है कि एक व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें रेगुलर सफाई हो सके और नहीं होने पर उसकी लेबर ऑफिसर या पर्सनल विभाग रेगुलर मॉनिटरिंग करें। लेकिन ऐसा होता नहीं है। न हीं जिम्मेदारों पर कार्यवाही की जाती है, जिससे उनके हौसले बुलंद रहते हैं।
संयंत्र के भीतर की यूरिनल टायलेट की हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं। ना तो लेबर ऑफिसर ध्यान देते हैं। न PO ध्यान देते हैं। ना उच्च अधिकारी ध्यान देते हैं। कर्मचारी परेशान आखिर करें तो क्या करें।
टालमटोल की नीति के भरोसे चल रहा है सफाई का काम
यूरिनल-टॉयलेट सफाई की जब भी शिकायत की जाती है। तब अक्सर जिम्मेदार लोग इसको बोलो तो उसको बोलने को कहते हैं। उसको बोलो तो दूसरे को बोलने को कह देते हैं और तो और कभी-कभी तो शिकायत करने वाले करने का मोबाइल नंबर सीईडी के ठेकेदार के सुपरवाइजर को दे देते हैं। लेकिन कार्मिक बदबू और दुर्गंध वाले टॉयलेट में जाने को मजबूर हैं। 10-10 दिन तक टॉयलेट यूरिनल की सफाई नहीं होती हैं। इसकी शिकायत कई बार उच्चाधिकारियों तक की गई है।
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इस दुर्दशा पर सांसद भी उठाए थे सवाल
कुछ माह पूर्व इन्हीं सब मुद्दों को लेकर सांसद विजय बघेल भी संयंत्र का दौरा कर देख चुके हैं। रेस्ट रूम, टायलेट, कैंटीनों की दुर्दशा को प्रबंधन एवं आईआर के उच्च अधिकारियों को साथ दिख चुके हैं। इसे ठीक-ठाक रखने की बात कह चुके हैं। लेकिन इन सब के बाद भी प्रबंधन गहरी नींद सो रहा है और कर्मचारी गंदे टॉयलेट में जाने को मजबूर हैं।
अधिकारियों के टॉयलेट बाथरूम रहते हैं चकाचक
सीटू नेताओं का कहना है कि यह बात सर्वविदित है कि है जितने भी वर्क्स बिल्डिंग है। जहां अधिकारी बैठते हैं, संयंत्र भवन, इस्पात भवन, जहां पर बड़े अधिकारी बैठते हैं। वहां के टॉयलेट यूरिनल चकाचक रहते हैं। जहां पर नियमित रूप से सफाई होती है।
सफाई करने वाले कर्मी दरवाजे में लगे सीट को भी भरते हैं। लेकिन कर्मचारियों के जहां काम करते हैं। वहां की स्थिति को लेकर कोई भी ध्यान नहीं देता और शिकायत करने पर एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के जिम्मेदार होने की बात कहते हैं।
सीजीएम पर्सनल से भी कर चुके हैं शिकायत
2 मार्च को सीटू प्रतिनिधिमंडल जब सीजीएम पर्सनल संदीप माथुर से मिलने गया था, तब उनको भी इस विषय में विस्तार से अवगत कराया गया था। सीजीएम पर्सनल ने कहा था कि विभागों में पूर्व सूचना दिए बिना मैं स्वयं जाकर कुछ विभागों का दौरा करूंगा और आवश्यक कदम उठाउंगा। लेकिन अभी तक ऐसी कोई पहल होती दिख नहीं रही है।
पिछले 6 वर्षों से कह रहे हैं सुलभ आएगा।
सीटू नेताओं ने कहा कि जब भी पूरे संयंत्र के यूरिनल टॉयलेट की सफाई की बात गंभीरता से उठाता है, तो प्रबंधन कहता है सुलभ आ रहा है। सुलभ आने से उसकी सफाई की जिम्मेदारी भी अलग से तय हो जाएगी। ऐसा कहते-कहते 6 साल से ज्यादा समय बीत चुका है। ना तो सुलभ आया है। न ही यूरिनल टॉयलेट की सफाई की ठीक-ठाक व्यवस्था हो पाई है।
सीटू ने यूरिनल-टॉयलेट सफाई को लेकर पहले ही यह प्रस्ताव दे चुका है कि साफ-सफाई का ठेका सीईडी विभाग को ना देकर सभी विभागों के सामान्य सफाई ठेका के साथ जोड़ दिया जाए। जिसकी देख-रेख की जवाबदारी विभागीय लेबर अधिकारी को दिया जाए। प्रबंधन ने इस पर भी सहमति तो व्यक्त किया, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में है।