- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में अपना सातवां बजट पेश किया है।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई/वाराणसी। केंद्रीय बजट 2024 (Union Budget 2024) पर श्रमिक संगठनों की भी प्रतिक्रिया आ गई है। रेल और सेल का कारोबारी रिश्ता है। सेल का भिलाई स्टील प्लांट (SAIL – Bhilai Steel plant) रेलवे को रेल पटरी सप्लाई करता है। इसलिए दोनों सेक्टर के प्रतिनिधियों की बजट पर प्रतिक्रिया भी जरूरी है।
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पूर्वोत्तर रेलवे वाराणसी मंडल के श्रमिक संगठन को मायूसी हुई है। एनईरेलवे मजदूर यूनियन मंडल उपाध्यक्ष/शाखा मंत्री बनारस के राणा राकेश रंजन कुमार का कहना है कि भारतीय रेल एक लोक कल्याणकारी के साथ साथ कमाऊ संस्था है। भारत के आर्थिक प्रगति में रीढ़ की हड्डी साबित हो रही है। लेकिन इस प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ाने वाले रेलवेमैन की दशा और दिशा के बारे में कोई स्पष्ट खाका नहीं खिंचा गया है।
न तो पुरानी पेंशन के बारे में कोई स्पष्ट जिक्र किया गया है। और न ही 8वें वेतन आयोग के बारे में कोई चर्चा की गई है। इनकम टैक्स के मामले में आंकड़े एवं शब्दों की जादूगरी दिखाने कि असफल कोशिश की गई है। भारतीय रेल में लाखों की संख्या में रिक्तियां पड़ी हुई है, जिसके पूरा होने से बेरोजगार युवाओं को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है।
इसके उपर भी कोई ठोस पहल नहीं किया गया है। इस केन्द्रीय बजट में सरकारी कर्मचारियों (Govt Employees) एवं उनके आश्रितों तथा सम्माननीय पेंशनधारकों के लिए के हितों की अनदेखी की गई है। इस बजट में विगत कई वर्षों से लंबित पड़े रेलकर्मियों के एजेंडे पर को फोकस नहीं किया गया है।
फिर पेश हुआ जुमलेबाजी वाला बजट-डीवीएस रेड्डी
भिलाई स्टील प्लांट (Bhilai Steel Plant) की पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन सीटू के उपाध्यक्ष व माकपा के जिला सांगठनिक समिति सचिव डीवीएस रेड्डी भी बजट पर भड़के हुए हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के रेड्डी ने कहा कि यह बजट दिशाहीन एवं निराशाजनक है। इस बजट में आम जनता की बुनियादी समस्यों के समाधान की दिशा में कुछ भी नहीं है। बजट से ऐसा प्रतीत होता है जैसे मोदी सरकार को सिर्फ अपनी सत्ता बचाए रखना ही एकमात्र उद्देश्य है।
नहीं है रोजगार सृजन की कोई योजना
माकपा नेता ने कहा कि आज देश के युवाओं के सामने बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या बनी हुई है,बेरोजगारी समस्या के समाधान के लिए नए रोजगार सृजन की कोई भी बातें इस बजट में दिखाई नहीं पड़ती है।कल संसद में पेश आर्थिक सर्वे ने इस भयंकर स्थिति का जिक्र करते हुए कहा गया कि आज महाविद्यालयों से उत्तीर्ण होने वाले हर दो युवाओं में एक युवा के पास कोई रोजगार नहीं है।
देश में इस भीषण बेरोजगारी का दंश झेल रहे लोग आज मनरेगा में अपना नाम पंजीयन कर काम की मांग कर रहे है लेकिन वित्त मंत्री के बजट में मनरेगा का कोई जिक्र ही नहीं है।
कॉर्पोरेट घरानो से अधिक कर वसूली की नहीं है कोई योजना
रेड्डी ने कहा कि आयकर के स्लैब में परिवर्तन कर कर्मचारियों और मध्यमवर्ग के खुश करने का प्रयास दरअसल आंखों में धूल झोंकना है क्योंकि हमारे देश में सबसे अधिक कर गरीब और मध्यमवर्ग के लोग ही अदा करते है।
कॉरपोरेट घरानों से अधिक करों की वसूली की कोई इच्छा सरकार की नहीं है। आज देश में आवश्यक वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही है इस महंगाई पर लगाम लगाने सम्बंधित कोई प्रावधान इस बजट में नहीं है।
मामूली कर वृद्धि से शिक्षा एवं स्वास्थ्य में दे सकते थे दोगुना बजट
किसी भी देश के विकास के लिए उसे देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने एवं स्वास्थ्य व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करना सबसे महत्वपूर्ण होता है।
गौरतलब बात यह है कि आज हमारे देश में शिक्षा और स्वास्थ मद पर सकल घरेलू उत्पाद के सिर्फ 4.3,%राशि ही खर्च किया जाता है अगर देश के सबसे अधिक धनी वर्ग जो आबादी का 0.04%है। सिर्फ उनके करों में मामूली सी वृद्धि कर दिया जाए तो शिक्षा और स्वास्थ्य मद पर सरकार दोगुना अधिक खर्च कर सकती है।
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आदिवासी एवं दलितों का जिक्र तक नहीं है बजट में
न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा सिरे से गायब
बजट में किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी,किसानों के कर्जमाफी का मुद्दा भी नदारत है। किसानों की समस्याओं का निराकरण की कोई भी बातें बजट में नहीं है।किसानों की आय दोगुना कर देने की वायदा कर सत्ता में आने वाली सरकार किसानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। यह बजट समाज के आम नागरिक के हितों में नही बनाई गई है।
इनकम टैक्स स्लैब में एक छोटा सा झुनझुना
केंद्रीय बजट पर भिलाई स्टील मजदूर सभा (एटक) (Bhilai Steel Mazdoor Sabha (AITUC)) के महासचिव विनोद कुमार सोनी ने कहा कि बजट 2024-25 एक विश्वासघात का दस्तावेज है। बजट से मजदूरों, किसानों, बेरोजगारों और वंचितों को कोई उम्मीद नहीं मिलती है।
यह छात्रों, महिलाओं और बुजुर्गों को धोखा देता है। यह एक और अमीरों और कॉर्पोरेट के पक्ष में बजट है। एक खोखला बजट है। कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कोई रोडमैप या प्रतिबद्धता नहीं है।
श्रमिकों के वेतन वृद्धि या गारंटीकृत मजदूरी की कोई बात नहीं की गई है। उनके सुरक्षा उपायों या सामाजिक सुरक्षा कवरेज के बारे में कुछ नहीं कहा गया। बजट असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए कुछ भी नहीं देता है जो कार्यबल का 90% से अधिक हिस्सा हैं। इनकम टैक्स स्लैब में एक छोटा सा झुनझुना पकड़ा कर कर्मचारियों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है।