सूचनाजी न्यूज, भिलाई। आज @Suchnaji.com News पर आपको ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस 2024’ के बारे में बताएंगे। साथ में यह भी बताएंगे कि यह चर्चा में क्यों है ? इसके इतिहास के संदर्भ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में भी बात किया जाएगा। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में भी विस्तार से चर्चा की जाएगी। साथ ही इस दिन की महत्ता पर भी प्रकाश डाला जाएगा।
-: चर्चा में क्यों
-अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस प्रतिवर्ष दो अक्टूबर को हर साल मनाया जाता हैं।
-आपको बता दें कि यह दिवस महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जो समाज में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में अहिंसा के प्रति उनके दर्शन और प्रतिबद्धता को दर्शाता हैं।
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-: ऐतिहासिक संदर्भ
– अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस महात्मा गांधी की जयंती का प्रतीक है।
– अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस का विचार वर्ष 2004 में ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन इबादी के प्रस्ताव से उत्पन्न हुआ था।
– संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून 2007 को इस दिन को आधिकारिक रूप से घोषित किया, ताकि महात्मा गांधी के सिद्धांतों और विचारों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी जा सकें।
-गौरतलब है कि मुम्बई में विश्व सामाजिक मंच पर हुई चर्चाओं के माध्यम से इस दिवस को गति मिली और बाद में प्रमुख भारतीय नेताओं ने इसका समर्थन किया।
:- जानिए इस दिन का महत्व
-अंरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने के लिए शांतिपूर्ण साधनों की शक्ति की याद दिलाता है।
-इस दिवस का उद्देश्य लोगों को अहिंसा और शांतिपूर्ण तरीकों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करना है।
-साथ ही समाज में हिंसा और संघर्ष को कम करना और सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देना है।
-यह दिवस हमें याद दिलाता है कि अहिंसक तरीकों से विरोध, अनुनय और सविनय अवज्ञा में सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने की शक्ति है।
-कई राष्ट्रों के अस्थिरता का सामना करने के कारण, अहिंसा का संदेश फैलाना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
-: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका
-असहयोग आंदोलन में नेतृत्व (1920-22)
-गांधीजी ने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया और भारतीयों से ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थाओं और उपाधियों का बहिष्कार करने का आग्रह किया, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण जन-आंदोलन का प्रतीक था।
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सत्याग्रह का परिचय
गांधीजी का अहिंसक प्रतिरोध (सत्याग्रह) का सिद्धांत सविनय अवज्ञा के लिए एक शक्तिशाली साधन बन गया, जिसकी शुरुआत चंपारण और खेड़ा आंदोलनों से हुई, जिसने किसानों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया।
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जन आंदोलन में परिवर्तन
गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम को एक अभिजात वर्ग के आंदोलन से एक जन आंदोलन में बदल दिया, जिसमें किसानों, श्रमिकों और महिलाओं को शामिल किया गया, जिससे यह वास्तव में एक राष्ट्रीय प्रयास बन गया।
दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)
-नमक मार्च अन्यायपूर्ण ब्रिटिश कानूनों के खिलाफ सविनय अवज्ञा का प्रतीक था और इसके बाद हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में ब्रिटिश नीतियों की व्यापक अवज्ञा देखी गई।
रचनात्मक कार्यक्रम
गांधीजी ने खादी कटाई, अस्पृश्यता निवारण और ग्रामीण भारत के उत्थान जैसे रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा दिया, जो स्वतंत्रता संग्राम के मूल का हिस्सा बन गए।
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गांधी-इरविन समझौता (1931)
सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की भागीदारी के लिए समझौते पर बातचीत की।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीजी के ‘करो या मरो’ के आह्वान से व्यापक भागीदारी हुई और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग तीव्र हो गई।
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भारतीय आकांक्षा का प्रतीक
गांधीजी स्वतंत्रता के लिए भारतीय आकांक्षाओं के प्रतीक के रूप में उभरे, उन्होंने संघर्ष के नैतिक और आचारिक आयाम को मूर्त रूप दिया तथा नेतृत्व और जनता दोनों को प्रभावित किया।
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