एक अनुमान के अनुसार लगभग 40 हजार से 45000 तेलुगू मतदाता भिलाई क्षेत्र एवं आसपास के क्षेत्रों में निवासरत हैं।
अज़मत अली, भिलाई। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव साल पलटने से पहले होने वाला है। युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही है। कांग्रेस और भाजपा ने बूथ मैनेजमेंट पर फोकस शुरू कर दिया है। एक-एक वर्ग के वोटरों को साधने के लिए आंध्र प्रदेश तक की दौड़ लगाई जा रही है। तेलुगू समाज पर जिस तरह से कांग्रेसी और भाजपाई फिदा हुए हैं, उससे इस समाज का मनोबल काफी बढ़ गया है।
अब ये बात भी सामने आ रही है कि क्यों न समाज अपने बीच से एक प्रत्याशी खड़ा कर दे। भिलाई नगर विधानसभा क्षेत्र पर सबकी नजर है। वोट बैंक को देखते हुए समाज अपनी ताकत का एहसास भी कराना चाहता है। तेलुगू समाज से आने वाले एक समाजसेवी का कहना है कि अगर, हम चुनाव जीत नहीं सकते, तो हराने की ताकत रखते ही हैं…।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 40 हजार से 45000 तेलुगू मतदाता भिलाई क्षेत्र एवं आसपास के क्षेत्रों में निवासरत हैं। खुर्सीपार में तेलुगू समाज की बड़ी आबादी है। यह चिंतन उनके बीच लगातार सामाजिक बैठकों में होती रही है कि हमारा प्रतिनिधि क्यों नहीं? भिलाई का इतिहास रहा है कभी भी भाजपा एवं कांग्रेस को छोड़कर कोई भी नहीं जीता है।
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एक चुनाव ऐसा आया था, जिसमें रवि आर्या और पीके मोइत्रा के बीच कांटे की टक्कर हुई। यूनियन नेता रवि आर्या चुनाव जीते बतौर कांग्रेस उम्मीदवार। लेकिन उसके बाद इंटक के ही कद्दावर नेता कांग्रेस से टिकट ना मिलने पर गजेंद्र सिंह ने बदरूद्दीन कुरैशी के विरुद्ध अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों का प्रभाव न सिर्फ भिलाई एवं उनके आसपास के गांव में भी रहा है और बड़ी संख्या से ठेका मजदूर भी दूर-दराज के गांव से यहां काम करने आते हैं।
दूसरी ओर यह भी देखा गया कि पिछले दिनों टाउनशिप में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घटी। इसके बाद कर्मियों एवं यूनियन नेताओं ने नजदीक से यह महसूस किया कि दोनों ही दल कहीं ना कहीं उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं कर रहे हैं।
खासकर टाउनशिप के भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों का और सेक्टर-9 की घटना के बाद कर्मचारियों-अधिकारियों ने विरोध किया एवं एकजुटता दिखाई। एक बात यह भी सामने खुलकर आई कि हम किसी को जीता नहीं सकते। लेकिन हम जिसको चाहें, उसको हरा सकते हैं…। इस चुनाव में कई एंगल सामने आ रहे हैं और उसमें से यह भी एक एंगल है…।
सीटू यूनियन से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी ने कहा कि कैंटीन कर्मियों की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट तक गए थे। लगभग 500 कैंटीन कर्मियों को भिलाई इस्पात संयंत्र में नौकरी का मामला था। इनमें से ज्यादातर कर्मचारी तेलुगु एवं श्रीकाकुलम डिस्टिक के ज्यादातर लोग थे। और कहीं ना कहीं यह भी महसूस किया जा रहा है कि तेलुगू वोटरों पर कुछ हद तक इनका भी प्रभाव हो सकता है। लेकिन पिछली बार इनके प्रत्याशी खड़े हुए तो उन्हें लगभग 1400 से वोट मिला था।
लेकिन, इसके उलट जब यूनियन चुनाव हुए तो तीनों यूनियनों को लगभग सो डेढ़ सौ वोटों के अंतर से हार जीत का फैसला हुआ। लेकिन, चुनाव के बाद संयंत्र में खासकर कर्मियों ने इस बात को महसूस किया, जिसे हराना नहीं चाहिए था उसे ही हम हरा बैठे। कहीं ऐसा ना हो इस विधानसभा चुनाव में जिसकी कल्पना अभी तक नहीं की गई है, कहीं ऐसा कुछ होने की दिशा में भिलाई विधानसभा क्षेत्र बढ़ तो नहीं रहा है।
यह भी देखा गया है कि दक्षिण भारतीय वोटर अक्सर बंटे हुए दिखते थे। लेकिन उनकी सामाजिक बैठकों में अब एकता की गुहार होने लगी ।सुलझे एवं सीनियर सामाजिक कार्यकर्ता बार-बार एकता पर बात उठा रहे हैं। आने वाला समय ही इन पर से पर्दा उठा सकता है। बता दें के पिछला चुनाव पूर्व मंत्री भाजपा प्रत्याशी प्रेम प्रकाश पांडेय कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र यादव से करीब ढाई हजार वोटों से चुनाव हार गए थे।