जबरिया सेवानिवृत्ति की साजिश को SAIL में दिया जा रहा मूर्त रूप, CITU ने मोदी सरकार पर फोड़ा ठीकरा

Forced retirement conspiracy being implemented in SAIL, CITU blames Modi government 3 (1)
पिछले 10 सालों से चर्चा में था। अब ऐसा प्रतीत होता है कि जबरिया सेवानिवृत्ति प्लान को सार्वजनिक उद्योगों में लागू किया जा रहा है।
  • मौजूदा केंद्र सरकार सार्वजनिक उद्योगों को खत्म करने की दिशा में तेजी से काम करते हुए कंपलसरी रिटायरमेंट प्लान लेकर आया है।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। सीटू का कहना है कि आखिरकार कंपलसरी रिटायरमेंट अर्थात जबरिया सेवानिवृत्ति के साजिश को उच्च प्रबंधन द्वारा मूर्तरूप देना शुरू कर दिया गया है, जिसके तहत कामगारों का मूल्यांकन कर रिपोर्ट बनाया जाता है कि अमुक कर्मी अथवा अधिकारी का प्रदर्शन संयंत्र के लिए ठीक नहीं है।

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अर्थात उस कर्मचारी अथवा अधिकारी का संयंत्र के उत्पादन में कोई भूमिका नहीं है। अतः उसे संयंत्र में रखने का कोई औचित्य नहीं है। इसीलिए उसे रिटायर कर दिया जाए उसके बाद उसे नोटिस देकर नोटिस पे के साथ संयंत्र से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, जो अब हमारे सार्वजनिक उद्योग अर्थात सेल में उच्च प्रबंधन द्वारा शुरू किया जा रहा है। इसके खिलाफ हर स्तर पर प्रतिकार किया जाना जरूरी है।

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क्या मतलब होता है परफॉर्मेंस का

परफॉर्मेंस का हिंदी में मतलब होता है प्रदर्शन, कार्य-निष्पादन, कार्य-संपादन, करतूत, अभिनय, अदायगी, निष्पादन, व्यवहार, उपलब्धि, पालन आदि। अलग-अलग संदर्भ में परफॉर्मेंस का अलग-अलग हिंदी शब्दावली का इस्तेमाल किया जाता है। किंतु कुल मिलाकर जबरिया सेवानिवृत्ति करने के मामले में परफॉर्मेंस का मतलब है काम करने वाले कामगार को संयंत्र के लिए बेकार बताकर किसी भी तरह से नौकरी से बाहर निकलना।

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मौजूदा केंद्र सरकार लाई है कंपलसरी रिटायरमेंट प्लान

1991 में तत्कालीन केंद्र सरकार नई आर्थिक एवं औद्योगिक नीतियों को लाते हुए वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम लेकर आया था, जिसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्लान कहते थे।

अब मौजूदा केंद्र सरकार सार्वजनिक उद्योगों को खत्म करने की दिशा में तेजी से काम करते हुए कंपलसरी रिटायरमेंट प्लान लेकर आया है, जो पिछले 10 सालों से चर्चा में था। अब ऐसा प्रतीत होता है कि जबरिया सेवानिवृत्ति प्लान को सार्वजनिक उद्योगों में लागू किया जा रहा है।

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निजी उद्योगों में होता है परफॉर्मेंस के आधार पर कंपनी से निकाल देने की पॉलिसी

सीटू के महासचिव जेपी त्रिवेदी ने कहा-अक्सर निजी उद्योगों में यह सुनने को मिलता है कि परफॉर्मेंस के आधार पर अधिकारियों अथवा कर्मचारियों को कंपनी में रखा अथवा निकाल दिया जाता है। सार्वजनिक उद्योगों में नौकरी पाने के लिए जितने कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, उससे कहीं ज्यादा कठिन नौकरी से निकलने का है।

किंतु मौजूदा केंद्र सरकार जो न केवल सार्वजनिक उद्योगों को अपने कॉर्पोरेट मित्रों को दे देना चाहता है, बल्कि वह सारे नीतियां जल्द से जल्द सार्वजनिक उद्योगों में लागू भी कर देना चाहता है, जो नीतियां निजी उद्योगों में श्रम विरोधी कानून के रूप में लागू है।

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ग्रेडिंग सिस्टम कर्मियों के लिए खतरे की घंटी

सीटू के उपाध्यक्ष डीवीएस रेड्डी ने कहा-पिछले दिनों भिलाई इस्पात संयंत्र में कर्मियों को भी ग्रेडिंग सिस्टम के दायरे में लाने के लिए न केवल समझौता किया गया, बल्कि उसे लागू भी कर दिया गया।

अब इसका असर धीरे-धीरे दिखने लगा है। आने वाले दिनों में इसका बुरा प्रभाव और तेजी से दिखने लगेगा यदि इस पर रोक नहीं लगाया गया तो यह मामला जबरिया सेवानिवृत्ति तक पहुंच सकता है। इसीलिए इस तरह के निर्णयों को हर हाल में रोकना होगा।

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एक प्रतिष्ठित निजी उद्योग में बाउंसर लगाकर खाली कराया गया कर्मियों को

सीटू के सहायक महासचिव टी जोगा राव ने कहा-यह बात तेजी से वायरल हो रही है कि इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी क्षेत्र की एक नामी कंपनी ने अपने 400 ट्रेनिंग को नौकरी से निकालने के बाद बाउंसर बुलाकर शाम 6:00 तक कैंपस को खाली करवाया, जिस पर सवाल उठ रहे हैं।

यह वही कंपनी है जिसके प्रमुख ने 70 घंटा काम करने को कानून बनाने की पैरवी की थी और मौजूदा केंद्र सरकार कह रही है कि हमने बेरोजगारी दर कम किया है। निजी उद्योगों में नौकरी बढ़ाने के लिए उन्हें टैक्स एवं अन्य दूसरे किस्म की छूट दी है।

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