सेल कर्मचारियों का कहना है कि सबसे बड़ी विडंबना यह है कि 2014 में एनजेसीएस के नव सदस्य बन श्रमिकों में एक उम्मीद की किरण बनने वाले नेता के भी बोल लाल/पीले/हरे झंडो में समाहित हो गए।
सूचनाजी न्यूज, बोकारो। जुलाई माह आते ही एक स्वस्थ प्रबंधन तथा यूनियन के मध्य वार्षिक लाभ के आधार पर बोनस के लिए पत्राचार किया जाता है। जैसा कि कई वर्षों से टाटा स्टील में देखने-सुनने को मिलता है। पिछले कुछ सालों में टाटा स्टील बोनस के विषय पर ऐतिहासिक बोनस समझौता करता आया है। वह भी अपने ही कर्मचारियों के द्वारा संचालित यूनियन के साथ बैठक कर।
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इस हालात के बीच सेल के कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर शब्दबाण छोड़ना तेज कर दिया है। यूनियन नेताओं को झकझोरने का अभियान शुरू किया जा रहा है। कर्मियों का कहना है कि सेल में पूर्ण वेतन समझौता तो अब तक लोग करवा ही नहीं पाए। यह वेतन समझौता सेल के इतिहास में लंबे समय तक लटके रहने वाला सबसे लंबा लंबित समझौता बन रहा है। बोनस समझौता के तर्ज पर अधूरा वेतन समझौता को भी पूर्ण करने का कुंठित प्रयास प्रबंधन और नेताओं ने किया।
बोकारो के एक भावी कर्मचारी ने कहा-आप क्रोनोलॉजी को समझिए। पिछले वर्ष हुए वेतन समझौता और बोनस समझौता में एक बात कॉमन है। और वो है बहुमत के आधार पर होने वाली सहमति,जबकि एनजेसीएस के क्लॉज 5.0 के अनुसार सारे के सारे निर्णय सबकी सहमति से ही होना है। न की बहुमत के आधार पर…। जब बोनस समझौता ही अवैध है तो फिर अब तक उसमे भी साइन नहीं करने वाली दो यूनियन कहां गायब हो गई है। बेतुका फॉर्मूला बनाने वाले, उसे समझ कर साइन करने वाले गणितज्ञ नेताओं के अवतरित होने का समय आ गया है।
सेल कर्मचारियों का कहना है कि सबसे बड़ी विडंबना यह है कि 2014 में एनजेसीएस के नव सदस्य बन श्रमिकों में एक उम्मीद की किरण बनने वाले नेता के भी बोल लाल/पीले/हरे झंडो में समाहित हो गए। सेल से विलुप्ति होने के कगार पर यूनियन खड़ी है। फिर भी इनके इस्पात प्रभारी नेताओं को अगर किसी विषय की चिंता है तो वो है निजी स्वार्थ सिद्धि की कामना की।
न तो इन्हे अपने संगठन की चिंता है। न इस्पात श्रमिकों के हितों की। न ही भारत माता जय के उद्घोष लगा देश की उद्योग की ही चिंता है। परम पूज्यनीय…ने ऐसी यूनियन की परिकल्पना तो नहीं की होगी, ये पूर्ण विश्वास है मुझे…।
कर्मचारियों का तर्क है कि आखिर जिस प्रकार से वेतन समझौता गैरकानूनी है। ठीक उसी प्रकार बोनस समझौता भी गैर कानूनी है,तो आखिर राष्ट्रीय/अंतराष्ट्रीय यूनियन का सेल में होने का क्या ही औचित्य बचा है? हम कर्मियों को एक बार पुनः अपने कुंभकर्णी नींद में सोए हुए नेताओं को झकझोरना होगा तो ही कुछ संभव है।
वरना हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम सभी को ऐतिहासिक बोनस के बदले चूरन रूपी बोनस मिलना तय ही है। अभी भी समय है वीर नेताओं जागो…क्योंकि आप सब में से अधिकतर के जीवन में कम ही समय शेष हैं,तो अपने जीवन के अंतिम काल में “अंत भला तो,सब भला” इस वाक्य को चरितार्थ कर सकें तो अवश्य ही करें।