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कांग्रेस-भाजपा में नूरा कुश्ती: लीज धारक पूछ रहे रजिस्ट्री कराना उचित है या नहीं, याद आए रामविलास पासवान

कांग्रेस-भाजपा में नूरा कुश्ती: लीज धारक पूछ रहे रजिस्ट्री कराना उचित है या नहीं, याद आए रामविलास पासवान

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। लगभग 22 वर्ष पूर्व सेल मैनेजमेंट 5 चरणों में भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मचारियों के लिए लीज योजना लेकर आई थी। और यह योजना कई दौर के बाद भी अनसुलझी पहली की तरह बनी हुई है।

तो क्या इसलिए नहीं आया लीज का छठा चरण
पिछले तीन-चार दिनों में लीज रजिस्ट्री, डीड रजिस्ट्री कई तरह के अनसुलझे तकनीकी शब्द और अपने अपने तरीके से नेताओं द्वारा की जा रही कानूनी व्याख्या और यह दौर उस समय की याद दिला रहे हैं। जब धीरे-धीरे लीज पांच चरणों में आई, उसके बाद छठे चरण का दर्शन नहीं हो रहा। कारण भी यही था भिलाई में हमेशा से ही खासकर टाउनशिप और बीएसपी के मुद्दे को लेकर जरूरत से ज्यादा नेतागिरी होती है।

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बीएसपी प्रबंधन एवं टाउनशिप के प्रभारी पर जरूरत से ज्यादा दबाव और वहां बैठा अधिकारी किसी तरह अपने समय काटने की फिराक में रहता है। और कई लोग राजनीतिक दबाव एवं उच्च प्रबंधन के दिशा-निर्देशों के बीच पीसते हैं। ना टाउनशिप संभल रहा है, ना नेतागिरी थम रही है। ना कर्मियों को बेहतर आवास मिल रहे हैं। ना उनका बेहतर रखरखाव हो रहा है। हर तरफ नेतागिरी और वर्चस्व की राजनीति में कर्मचारी सेवानिवृत्त कर्मचारी एवं टाउनशिप के व्यापारी पीस रहे हैं।

रामविलास पासवान को याद किया जा रहा

कभी इस्पात मंत्री रामविलास पासवान जयंती स्टेडियम ग्राउंड से तत्कालीन एमडी रामा राजू की ओर देखते हुए कहे थे लीज का छठवां चरण लेकर आइए, लेकिन शुरू से ही तमाम तरह की पेंच में उलझा रहा यह मामला।

सेल के दूसरे यूनिट में लीज का छठा चरण आया और भिलाई में नहीं आया। कईयों ने इसी आस में क्वार्टर खाली नहीं किया। कभी 32 गुना, कभी 64 गुना किराए देते रहे, पेनाल्टी भरते रहे। और लीज आएगा करके कई लोग मकान खाली नहीं किए…।

आंदोलन करते रहे। लेकिन अंत: लीज नहीं आया। कुछ लोग नेता बने और उनके पास करोड़ों के मकान थे। इसी बीच लोग अपना सीपीएफ का पैसा छोड़ धीरे-धीरे बीएसपी को किराया पेनाल्टी देते रहे, उनका पैसा भी खत्म हो गया। घर भी नहीं मिला। फिर प्रबंधन ने इस आंदोलन को ठंडा करने के लिए लाइसेंस एवं रिटेंशन स्कीम लेकर आई और पूरा मामला धीरे-धीरे ठंडा ही हो गया। लीज के छठे चरण के लिए कई आंदोलन हुए। और यह मुद्दा चुनाव में आग में घी का काम करता है।

बीएसपी कर्मचारी कभी हराकर तो कभी जीताकर होते रहे खुश

कभी इसको हराकर, कभी उसको जीता कर बीएसपी कर्मचारी-अधिकारी खुश होते रहे और अपनी राजनीतिक पकड़ खोते रहे। लीज का एक जिन बाहर आया। रजिस्ट्री, बीएसपी प्रबंधन के पत्र, 22 साल पुराने दर पर रजिस्ट्री, वर्तमान दर पर रजिस्ट्री, 2100 की चपत, तो कहीं फ्री में पेपर बनाने का दौर आया। पहले दिन जिन लोगों ने रजिस्ट्री कराई मुख्यमंत्री ने मुलाकात की। फिर विपक्षी दलों के साथ नूरा कुश्ती का जमाना आ गया।

भिलाई टाउनशिप के आम नागरिक यहां तक बोल रहे हैं कि ऐसा लग रहा कांग्रेस और भाजपा के लोग ही भिलाई में रहते हैं, बाकी यहां कोई रहता नहीं है और ना ही किसी को इसके बारे में कोई जानकारी है।
पूर्व राजस्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे के सुलझे हुए बयान ने लीज धारकों को यह संकेत तो दिया है कि यह एक प्रक्रिया में आगे बढ़ रहा है। जिन लोगों ने लीज रजिस्ट्री कराने का जिम्मा लिया, उन्हें ही नहीं पता इनके फायदे क्या है और जो इसका विरोध कर रहे थे, उन्हें यह नहीं पता कि इसका विरोध में क्यों कर रहे हैं।

हुडको रजिस्ट्री का भी चला था एक मैराथन एपिसोड

कुल मिलाकर भाजपा-कांग्रेस की नूरा कुश्ती और 4500 लीज धारक आशंकित हैं कि हम लीज रजिस्ट्री कराएं कि नहीं कराएं, और इसके क्या फायदे भविष्य में होंगे। क्योंकि इसी तरह से भिलाई में हुडको रजिस्ट्री का भी एक मैराथन एपिसोड चला और विधायक महोदय की छुट्टी हो गई। ये पब्लिक है सब जानती है।

लेकिन एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट हो गई बीएसपी मैनेजमेंट, बीएसपी कर्मचारी, बीएसपी की ट्रेड यूनियनें आदि एसोसिएशन की निष्क्रियता, आपसी खींचतान और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की गला काट प्रतिस्पर्धा में इनके ऊपर बाहरी राजनीति जबरदस्त तरीके से हावी हो गई है।

मामला बीएसपी कर्मचारी, सेवानिवृत्त कर्मचारी, बीएसपी प्रबंधन या सेल प्रबंधन के बीच का है। लेकिन न ही प्रबंधन कुछ बोल रहा है, न ही कर्मचारियों के प्रतिनिधि ट्रेड यूनियन कुछ बोल रहे हैं। ऐसे में तीसरा विकल्प भी लाने की सुगबुगाहट से इन्कार नहीं किया जा सकता है।