रिटायरमेंट के बाद साहब भी फ्यूज बल्ब के गिरोह में, काहे का घमंड

  • कुछ अधिकारी जब पद और भौकाल के चक्कर में सामने वाले को समझ बैठता है कमजोर और करता है नजर अंदाज।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। जिंदगी की सच्चाई क्या है, इसे जितनी जल्दी आप समझ लें, उतना बेहतर है। पद पर रहते हुए घमंड में रहने  वालों की कमी नहीं होती है। रिटायरमेंट के बाद हालात बदतर हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी आप पढ़ने जा रहे हैं। एक पेंशनर्स ने रिटायरमेंट के बाद घमंड में रहने वाले कुछ अधिकारी की जिंदगी क्या होती है, उसकी झलक अपने शब्दों में पेश की है।

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सोशल मीडिया पर वायरल स्टोरी को पेंशनर्स ने साझा किया है। लिखा-एक वरिष्ठ अधिकारी सेवानिवृत्त हो गए और अपने सरकारी क्वार्टर से सोसायटी में स्थानांतरित हो गए, जहां उनके पास एक फ्लैट था। खुद को बड़ा समझा और किसी से बात नहीं की। रोज शाम को सोसाइटी पार्क में टहलते हुए भी दूसरों को नज़र अंदाज़ करते हुए, अपमान की नज़र से देखते रहे।

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एक दिन कुछ पता चला कि पास बैठे एक बुजुर्ग ने बातचीत शुरू की। बोलना शुरू हुए। कहा-रिटायर होने से पहले मेरे बड़े पद और उच्च पद की कोई कल्पना नहीं कर सकता था। मजबूरियों की वजह से आया हूं मैं…। और इसी तरह… और दूसरा बुजुर्ग चुपचाप उसकी बात सुनता रहा।
बहुत दिनों बाद सेवानिवृत्त कार्यकारी दूसरों के बारे में पूछताछ की तो बुजुर्ग श्रोता ने मुंह खोला और कहा, रिटायरमेंट के बाद हम सब फ्यूज बल्ब की तरह हैं।

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बल्ब का वाटज क्या था, कितना लाइट या ग्लिटर दिया, फ्यूज होने के बाद। उन्होंने कहा-“मैं इस समाज में पिछले 5 वर्षों से रह रहा हूं और मैंने किसी को नहीं बताया कि मैं दो बार संसद का सदस्य हूं।

आपके दायीं ओर वर्मा जी हैं, जो भारतीय रेल में जनरल मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उधर सिंह साहब हैं, जो आर्मी में मेजर जनरल थे। बेदाग सफेद ड्रेस में बेंच पर बैठा वो शख्स मेहराजी है, जो रिटायर होने से पहले इसरो में थे। उसने किसी पर भी जाहिर नहीं किया, मुझ पर भी नहीं, लेकिन मुझे पता है।

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सारे फ्यूज बल्ब अब एक जैसे हो गए हैं। इसका वाट जो भी था-0, 10, 40, 60, 100 वाट अब कोई फर्क नहीं पड़ता। न ही इससे कोई फर्क पड़ता है कि फ्यूज होने से पहले यह किस प्रकार का बल्ब था। एलईडी, सीएफएल, हाइलोजन, फ्लोरोसेंट, या सजावटी। और वो मेरे दोस्त आप पर भी लागू होता है। जिस दिन आप इसे समझ गए इस हाउसिंग सोसाइटी में भी आपको शांति और शांति मिलेगी। उगता हुआ सूरज और डूबता हुआ सूरज दोनों ही सुंदर और आराध्य होते हैं।

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परन्तु, वास्तव में उगते सूर्य को अधिक महत्व और आराधना मिलती है, और पूजा भी होती है, जबकि अस्ताचलगामी सूर्य को उतना ही श्रद्धा नहीं दी जाती। इसे देर से समझ लेना बेहतर है। हमारा वर्तमान पद, शीर्षक और शक्ति स्थायी नहीं हैं।

इन चीजों के साथ बहुत सारी भावनाओं को रखना हमारी जिंदगी को तभी उलझा देता है, जब हम इसे एक दिन खो देते हैं। याद रखना जब खेल खत्म होता है तो बादशाह और प्यादा एक ही डिब्बे में वापस जाते है। आज आपके पास जो है उसका आनंद लें। आगे आपका समय शानदार हो…। दिन के अंत में उन सभी प्रमाण पत्र को केवल एक प्रमाण पत्र से बदल दिया जाता है… मृत्यु प्रमाण पत्र।

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