- बोकारो स्टील प्लांट के सीआरएम के सीनियर ऑपरेटर कम ऑपरेटिव मनोज कुमार डीन दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल में मदद कर लौटे बोकारो।
अज़मत अली, भिलाई। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड-सेल (SAIL) के कर्मचारी जहां एक ओर अपना पे-पॉकेट (Pay-Pocket) बढ़ाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। दूसरी ओर बोकारो स्टील प्लांट के सीनियर कर्मचारी ने मददगारों के लिए अपनी झोली खोल दी है। देश के किसी हिस्से में बाढ़ आए या भूकंप।
बोकारो स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant) के सीआरएम के सीनियर ऑपरेटर मनोज कुमार डीन मदद करने पहुंच जाते हैं। अपना पैसा खर्च करते और जरूरी सामान बांटने में जुट जाते। हफ्ता-10 दिन तक मददगारों के बीच रहते और हर तरह से हाथ बंटाते। कष्ट की घड़ी में मददगार का फरिश्ता बनकर पहुंचते हैं।
दादा और पिता के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए मनोज ने भी मदद का हौसला बरकरार रखा है। 2004 से बोकारो में मदद की शुरुआत की। 2008 में बिहार में बाढ़ आई तब वह चना-मुर्रा और गुड़ लेकर बस्तियों में बांटना शुरू किया। 5-10 कुंतल मुर्रा बांट दिया। इस कार्य से इतनी खुशी मिली कि परिवार भी गदगद हो गया। पत्नी और बच्चे भी हौसला बढ़ाने लगे। इसके बाद देश में जहां कहीं आपदा आती, मनोज प्लांट से छुट्टी लेते और सफर पर निकल जाते।
दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और भूस्खलन प्रभावितों की मदद करने भी पहुंच गए। शुरुआत दिल्ली से की थी। 19 जुलाई को बोकारो से चले और 20 को दिल्ली पहुंचे थे। वहां यमुना ब्रिज व लक्ष्मीनगर एरिया के लोगों के बीच सूजी का हलुआ, बिस्कुट, केला, पानी बांटे। दो दिन बाद चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए। यहां भी मदद करते रहे।
इसके बाद हिमाचल प्रदेश के मंडी, कुल्लू भुंतर एरिया में लोगों को सामान बांटा। मदद करते-करते अपनी सेहत को लेकर ऐसी लापरवाही बरती कि तबीयत खराब हो गई। इस वजह से अब घर लौट आए हैं। इससे पहले ओडिशा के बालासोर ट्रेन हादसे के समय भी वह मौके पर पहुंच गए थे।
समस्तीपुर बाढ़, केरल बाढ़, काठमांडू भूकंप, केदारनाथ, बिहार बाढ़ में भी मदद करने से पीछे नहीं हटे थे। इनके पिता जय नारायण यादव बोकारो प्लांट के एचआरसीएफ में कार्यरत थे। वह भी इसी तरह मदद के लिए रवाना हो जाते थे। हिमाचल पहुंचे तो 100 लोगों की मदद का टारगेट था। इसी बीच बोकारो स्टील प्लांट के सीनियर मैनेजर रवि भूषण ने बताया कि सेल के अधिकारी और कर्मचारी इस मुहिम में जुड़ते जा रहे हैं। खुले दिन से मनोज जी का सहयोग करते हैं। जो लोग खुद मौके पर नहीं जा पा रहे हैं, वे आर्थिक रूप से अपना सहयोग दे रहे हैं। मदद का हाथ बढ़ाया जा रहा है।