- इसे छुपाने के लिए सरकार ने रिजर्व बैंक आफ इंडिया और चुनाव आयोग की चेतावनियों को भी दरकिनार कर दिया था, जिनमें इलेक्टोरल बॉन्ड को काला धन और चुनावी भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला कहा गया था।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। वामपंथी संगठनों भाकपा, माकपा तथा भाकपा (माले) लिबरेशन द्वारा संयुक्त रूप से रविवार को सेल छोटा परिवार चौक बेरोजगार चौक सिविक सेंटर पर प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के दौरान वामपंथी पार्टियों ने कहा की सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर दिए गए निर्णय की रोशनी में केंद्र सरकार द्वारा अभिलंब कार्यवाही कर इलेक्टोरल बॉन्ड द्वारा उगाई किए गए चंदा को सार्वजनिक किया जाए। किसान एवं मजदूरों के आंदोलन को कुचलने के लिए किया जा रहे हथकंडों पर अभिलंब रोक लगाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया।
राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदा के बारे में जानने का हक है मतदाताओं को
माकपा दुर्ग के सचिव डीवीएस रेड्डी ने कहा-राजनीतिक पार्टियों को कौन एवं कितना चंदा दे रहा है। यह जानने का भारत के मतदाताओं को पूरा अधिकार है। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए देसी और विदेशी व्यक्तियों एवं कंपनियों के लिए गुप्त रूप से राजनीतिक दलों को असीमित मात्रा में चंदा देने का प्रावधान किया गया था। यह क्रोनीवाद और भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाले लोकतंत्र के लिए बेहद घातक कार्यवाही थी।
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सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि यह असंवैधानिक इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से आयी कॉरपोरेट फंडिंग को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करें। इससे पूंजीवादी कॉर्पोरेट घरानों और भाजपा जो इस स्कीम का सबसे ज्यादा फायदा उठा रही है, के बीच के गठजोड़ पर पड़ा पर्दा उठेगा। एवं देश के मतदाता इसको जान पाएंगे।
राजनीतिक भ्रष्टाचार है इलेक्ट्रोल बांड का खेल
भाकपा (माले) लिबरेशन के सचिव बृजेन्द्र तिवारी ने कहा-साल 2017 के इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से आए राजनीतिक चंदे का अधिकांश भाजपा के पास आया है।
इसे छुपाने के लिए मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक आफ इंडिया और चुनाव आयोग की चेतावनियों को भी दरकिनार कर दिया था, जिनमें इलेक्ट्रोल बांड को काला धन और चुनावी भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला कहा गया था। पूरा देश जानता है कि इलेक्ट्रोल बांड चुनाव में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार बढ़ाने का कारण ही नहीं बने हैं, बल्कि संवैधानिक मानदंडों और लोकतंत्र के लिए भी बड़ा खतरा है।
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छोटे राजनीतिक पार्टियों को भी खत्म करने पर तुली हुई है केंद्र सरकार
गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को जिन कंपनियों ने अथवा व्यक्तियों ने चंदा दिया है, उस पर आयकर विभाग की छापेमारी करवाई गई और यह तर्क दिया गया कि कहीं यह कंपनियां राजनीतिक दलों को चंदा देकर आयकर से बचने का खेल में तो शामिल नहीं है।
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कहीं मनी लॉन्ड्रिंग तो नहीं हो रही है? तो यही बात बड़े राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कंपनियों के साथ क्यों नहीं हो रहा है। इस सब के माध्यम से केंद्र सरकार कहीं ना कहीं राज्यों के छोटे राजनीतिक दलों को अपने नियंत्रण में लाना चाहती है अथवा उन्हें हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहती है।
मजदूर एवं किसान आंदोलन पर हमला बंद करें केंद्र सरकार
भाकपा दुर्ग सचिव विनोद कुमार सोनी ने कहा-पिछले 10 साल के राजनीतिक दौर में यदि कोई मजदूर और किसानों से डरता है तो वह मौजूदा केंद्र सरकार है, क्योंकि विश्व का इतिहास गवाह है कि तानाशाह हमेशा मजदूर और किसान की राजनीति से ना केवल दूर रहा है। बल्कि इन वर्गों से भयभीत भी रहा है, क्योंकि इन्हीं वर्गों ने अपने आंदोलन के बूते पर तानाशाहों का सत्ता पलट किया है।
हमारा देश का मजदूर एवं किसान वर्ग भी संयुक्त रूप से इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिससे घबराकर देश के प्रतिक्रियावादी पूंजीपत्तियां का प्रतिनिधित्व करने वाली केंद्र सरकार मजदूर किसानों के आंदोलन पर निर्मम हमला करवा रहा है, जिसे अभिलंब बंद किया जाना चाहिए।