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पेंशन अंशदान पर बढ़ा विवाद, 1.16 % को लेकर सीटू के तपन सेन ने श्रम मंत्री को लिखी चिट्‌ठी, कार्मिकों को नुकसान से बचाने की कवायद

पेंशन अंशदान पर बढ़ा विवाद, 1.16 % को लेकर सीटू के तपन सेन ने श्रम मंत्री को लिखी चिट्‌ठी, कार्मिकों को नुकसान से बचाने की कवायद

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। कार्मिकों के पीएफ अंशदान को लेकर चल रहा विवाद बढ़ता जा रहा है। सीटू ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर फैसला वापस लेने की मांग की है। सरकार द्वारा कर्मचारियों के खाते से प्रबंधन के अंशदान का 1.16% अतिरिक्त राशि ईपीएफओ पेंशन कोष में भेजने और सरकार द्वारा स्वयं अपना अंशदान वापस लेने के निर्णय का सीटू द्वारा कड़ा विरोध किया गया।

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भिलाई कार्यालय में इस विषय पर पदाधिकारियों की बैठक भी हुई। नियोक्ता को 8.33 प्रतिशत के बजाय अब 9.49 प्रतिशत अंशदान देना होगा। जबकि सरकार द्वारा 1.16 प्रतिशत अब नियोक्ता को ही देना है। इसकी भरपाई नियोक्ता कार्मिकों से करेगा, जिसको लेकर यूनियन ने मंत्री को चिट्‌ठी लिखी है।

सरकार द्वारा कर्मचारियों के खाते से प्रबंधन के अंशदान का 1.16% अतिरिक्त राशि ईपीएफओ पेंशन कोष में भेजने और सरकार द्वारा स्वयं अपना अंशदान वापस लेने के निर्णय के विरोध में सीटू के अखिल भारतीय महासचिव तपन सेन ने श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव को चिट्‌ठी लिखी है।

तपन सेन की ओर से कहा गया है कि कर्मचारी पेंशन योजना के तहत उच्च पेंशन हेतु विकल्प चुनने वाले कर्मियों के लिए सरकार द्वारा 1.16% अंशदान वापस लेकर एवं उक्त भार को कर्मचारियों के भविष्य निधि खाते (प्रबंधन के अंशदान से अतिरिक्त 1.16% हटा कर पेंशन कोष में भेजते हुए) डालने के निर्णय को वापस लिया जाए।

सीटू के केंद्रीय नेता ने कहा कि हम मंत्रालय के आदेश का तीव्र विरोध करते हैं। उपरोक्त कार्यवाही कर्मचारी पेंशन योजना के तहत कर्मचारी के भविष्य निधि खाते से प्रबंधन के अंशदान की 8.33% हटाकर पेंशन कोष में भेजने तथा उसमें सरकार द्वारा 1.16 % मिलाने के अलावा अन्य प्रावधानों के साथ पेंशन कोष तैयार करने की मूल योजना का उल्लंघन है।

इसी योजना को आधार मानकर सर्वोच्च यायालय द्वारा उच्च पेंशन पर निर्णय दिया गया, जिसे आपने शब्दों और भावनाओं में लागू करने का आश्वासन केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक में दिया था और यह मीडिया में प्रकाशित भी हुआ था।

कर्मचारी पेंशन कोष में सरकार द्वारा 1.16% अंशदान वापस लिया जाना और उक्त भार को कर्मचारियों को अपने भविष्य निधि जमा पूंजी (नियोक्ता का अंशदान) से उनके वास्तविक मूल वेतन के 8.33% के अतिरिक्त वहन करने हेतु बाध्य करना, मूल कर्मचारी पेंशन योजना का उल्लंघन(कर्मचारियों के हितों के खिलाफ) है। उच्च पेंशन पर सर्वोच्च न्यालय द्वारा दिए गए निर्णय एवं आधार कर्मचारी पेंशन योजना 1995 हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय के क्रियान्वयन में की गई ढिलाई के अलावा यह आपके द्वारा दिए गए आश्वासन का भी उल्लंघन है।

तपन सेन ने मंत्रालय के संज्ञान में लाया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कर्मचारियों के भविष्य निधि खाते से हटा कर पेंशन फंड में पहले से भेजी जा रही प्रबंधन के अंशदान से अधिक भेजने पर कुछ नहीं कहा।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई न्याय व्यवस्था निम्नानुसार है “ The requirement in the scheme for employee’s contribution to the extent of 1.16% for option members, in our opinion is illegal. There is nothing in the 1952 Act which requires payment to the pension fund by an employee. Since the Act does not contain plate any contribution to be made by an employee to remain in the scheme , the Central Government under the scheme cannot mandate such stipulation …” The Supreme Court also observed in clear terms that “…the provision of the scheme requiring contribution by an individual employee is ultra vires the parent act.”

सीटू का कहना है कि ‘सामाजिक सुरक्षा संहिता’ की आड़ नहीं लिया जा सकता है। इसलिए मंत्रालय से आग्रह है कि उचित एवं न्यायपूर्ण व्यवहार के हित में तथा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के शब्दों एवं भावनाओं में क्रियान्वयन को सुचारू रुप से संपन्न करने हेतु 3 मई 2023 को जारी की गई संदर्भित अधिसूचना को वापस लिया जाए।

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