ईपीएस 95 हायर पेंशन: न्याय मिलने में इतना विलंब क्यों, सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले…

EPS 95 Higher Pension: Why so much delay in getting justice, Supreme Court should take suo motu cognizance…
पेंशनरों के कोर्ट जाने की सिर्फ एक ही मजबूरी है कि उन्हें EPS 95 योजना के अनुरूप समुचित पेंशन पाने से रोका गया है।
  • हजारों में सिर्फ दो चार ही अपना मुंह खोल पाते हैं,बाकि की राय तो यही रहती है कि इन्तेजार के सिवाय उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

सूचनाजी न्यूज, रायपुर। ईपीएएस 95 हायर पेंशन (EPS 95 Higher Pension) के मामले न जाने कितने लोगों ने किन-किन अदालतों में केस लगा रखे हैं। दो दशकों से भी अधिक वक़्त गुजर गया, पर EPS 95 के अंतर्गत आने वाले सैकड़ों सार्वजनिक उपक्रम सहित निजी संस्थानों के सेवनिवृत्तों के लिए अभी तक ऐसा एक भी आदेश, जो सब पर समान रूप से लागू हो, नहीं निकल सका है।

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ईपीएस 95 राष्ट्रीय पेंशन संघर्ष समिति रायपुर (EPS 95 Rashtriya Pension Sangharsh Samiti Raipur) के अध्यक्ष अनिल कुमार नामदेव का कहना है-माना कि अलग-अलग याचिकाओं पर गुणदोष के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं,पर मुद्दा तो एक ही नियम कानून और प्रावधान का है, जो EPS 95 के अंतर्गत आते हैं। वो तो एक ही हैं।

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अलग-अलग तो नहीं। सभी पेंशनरों के कोर्ट की शरण में जाने की सिर्फ एक ही मजबूरी होती है,कि उन्हें EPS 95 योजना के अनुरूप समुचित पेंशन पाने से रोका गया है।

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उच्च पेंशन को लेकर पता नहीं कौन कहाँ-कहाँ क्या कर रहा है। लेकिन एक बात ही दिखाई देती है कि आज दिनांक पर भी अनेक प्रकरण देश के विभिन्न उच्च न्यायालय सहित देश की सबसे बड़ी अदालत में भी अनेकों पेंशन के प्रकरण लंबित पड़े हैं। और उन पर अंतिम फैसला कब होगा यह भी कहना मुश्किल है। और उससे भी बढ़ बहुत कठिन है।

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अनिल नामदेव ने कहा-देश तो वो ही चला रहे हैं, जिनको हमने चुना है। न्यायालय को तो हमने नहीं चुना तो कैसे बताएं। न्यायालय के प्रति हमारी निराशा सिर्फ इतनी है कि वो आम और खास के बीच अंतर कैसे कर लेती है।

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कोई खास न्यायालय में जाता है तो उसकी बात तुरंत सुन ली जाती है और कोई आम पक्षकार हो तो उसे तारीख ही मिलती रहती है। ऐसे कैसे? सभी जानते हैं कि पेंशनर्स का मामला कई वर्षों से कोर्ट के चक्कर में फंसा है। न जाने इस बीच कितने ही पेंशनर गुजर चुके हैं।

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क्या न्यालायल खुद भी इसे गंभीर बात नहीं मान सकती? अभी एक प्रकरण में preponding of hearing का आवेदन पेंशनरों की ओर से लगाया गया था,जिसे कोर्ट ने ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि शीघ्र सुनवाई का कोई कारण नहीं बनता। भले कोई न्यालायल को ये बात बताए या न बताए। हम भी तो चुप रहते हैं।

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कोर्ट तक अपनी बात रख ही नहीं पाते। किसकी गलती कहाँ हो रही है। इसका पता नहीं चल पाता। क्या वकील,क्या पक्षकार या फिर कोर्ट। कहाँ किससे चूक हो रही हमारे मामले को तुरंत न सुने जाने की।

हम फेसबुक में इसकी चर्चा करते रहते है,पर हजारों में सिर्फ दो चार ही अपना मुंह खोल पाते हैं,बाकि की राय तो यही रहती है कि इन्तेजार के सिवाय उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

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ठीक है चलिए यही करते हैं। हम भी…जब तक जिंदा हैं। जो स्वर्ग को सिधार गए और जो लगभग स्वर्ग के दरवाजे पर खड़े हैं,उनके प्रति किसी की कोई संवेदना ही नहीं…।

न सरकार की…न EPFO की…न CBT की…। और तो और हमारे खुद के अग्रणी लोगों की, जिन्होंने हमें न्याय के लिए कोर्ट का रास्ता दिखाया। क्या किस्मत पाई है EPS 95 के पेंशनरों ने…हे राम।

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