- स्वामी निरलिप्तानंद का जीवन इस बात का जीवंत प्रमाण है कि जो व्यक्ति आत्मिक प्रकाश को अपना मार्गदर्शक बनाता है, वह न केवल स्वयं को, बल्कि समाज को भी दिशा देता है।
सूचनाजी न्यूज, राउरकेला। अधिकांश लोग रॉबिन शर्मा की लोकप्रिय पुस्तक ‘द मॉन्क हू सोल्ड हिज फेरारी’ से परिचित हैं, जिसमें एक व्यक्ति अपने वैभवशाली जीवन को त्यागकर शांति की राह चुनता है। लेकिन राउरकेला स्टील प्लांट में आज जिस व्यक्तित्व ने आध्यात्मिक प्रवचन दिया, उनकी कहानी किसी कल्पना का हिस्सा नहीं, बल्कि एक सच्ची और प्रेरक वास्तविकता है।
यह उस व्यक्ति की गाथा है जिसने प्रतिष्ठा, अधिकार और करोड़ों युवाओं का सपना माने जाने वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा-IAS को छोड़कर आध्यात्मिक पथ को अपनाया था।
ये हैं स्वामी निरलिप्तानंद सरस्वती महाराज, दिव्य जीवन सोसायटी, ऋषिकेश के उपाध्यक्ष, जिनका पूर्व नाम था सुनील पटनायक। ओडिशा कैडर के इस IAS अधिकारी ने 23 वर्षों तक राज्य की सेवा की। छात्र जीवन में बोया गया आध्यात्मिक बीज उनके भीतर लगातार बढ़ता रहा, और फिर 1989 में अपने करियर के स्वर्णिम शिखर पर, जब वे ओडिशा स्टेट फाइनेंस कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक थे, उन्होंने जीवन बदल देने वाला निर्णय लिया। उन्होंने संन्यास स्वीकार कर दिव्य जीवन सोसायटी का मार्ग अपना लिया।
सम्मानित नौकरशाह सुनील पटनायक का यह रूपांतरण एक पूजनीय संत स्वामी निरलिप्तानंद सरस्वती के रूप में देशभर में प्रेरणा का स्रोत बन गया है। उनका जीवन बताता है कि सच्चा सुख बाहरी सफलता में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मिक समृद्धि में निहित है।
राउरकेला स्टील प्लांट में आयोजित उनके प्रवचन ने सभी को गहन सोच में डूबो दिया। कार्यक्रम का परिचय देने वाले वक्ता ने कहा कि स्वामीजी के त्याग, दृढ़ निष्ठा और आध्यात्मिक दृष्टि ने उन्हें विनम्र और प्रेरित किया। प्रवचन के उपरांत उपस्थित जनों ने महसूस किया कि वास्तविक खुशी, प्रसिद्धि या पद से नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और जीवन के सच्चे उद्देश्य को पहचानने से प्राप्त होती है।
स्वामी निरलिप्तानंद का जीवन इस बात का जीवंत प्रमाण है कि जो व्यक्ति आत्मिक प्रकाश को अपना मार्गदर्शक बनाता है, वह न केवल स्वयं को, बल्कि समाज को भी दिशा देता है।
















