- पेंशनर्स ने सोशल मीडिया पर अपनी मन की बात की। दुखड़ा साझा किया।
- युवावस्था में कड़ी मेहनत करने वाले और धरती-आसमान को हिला देने वाले श्रमिकों अब परेशान।
- समाज का यह वर्ग बूढ़ा और अशक्त हो जाता है तो कोई ध्यान नहीं देता।
सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। कर्मचारी पेंशन योजना 1995…। ईपीएस 95 न्यूनतम पेंशन 1000 से बढ़ाकर 7500 रुपए करने की मांग थम नहीं रही है। आवाज पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है ताकि उम्र के आखिरी पड़ाव में खड़े पेंशनभोगियों की पेंशन ईपीएफओ बढ़ा दे।
मांग की राह में आ रही अड़चनों पर भी पेंशनर्स भड़के हुए हैं। केंद्र सरकार, श्रम मंत्रालय और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को लेकर खासा नाराजगी है।
पेंशनर्स गौतम चक्रवर्ती लिखते हैं कि हम वरिष्ठ नागरिक बहुत आभारी हैं। हम प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसानों, अन्नदाताओं की मांगों को मान्यता दिए जाने पर प्रसन्न हैं।
लेकिन कोई भी निजी स्कूलों के शिक्षकों के महत्व पर विचार नहीं करता जो राष्ट्र के लिए गुणवत्तापूर्ण जनशक्ति को प्रशिक्षित और तैयार करते हैं। यह दावा इस तथ्य से उचित है कि आम जनता अपने बच्चों के लिए सरकारी संस्थाओं की तुलना में निजी स्कूलों को प्राथमिकता देती है।
इसी तरह, संगठित क्षेत्रों में निजी अस्पताल और अन्य सेवा प्रदाता, FMCG कंपनियाँ, परिवहन फर्म और कई अन्य जो अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं और भारी विदेशी मुद्रा कमाते हैं और वैश्विक मंचों और उपभोक्ताओं से राष्ट्र का नाम रोशन करते हैं।
अपनी युवावस्था में कड़ी मेहनत करने वाले और धरती-आसमान को हिला देने वाले श्रमिकों को तत्कालीन सरकार और यहाँ तक कि समाज द्वारा तब आसानी से भुला दिया जाता है जब समाज का यह वर्ग बूढ़ा और अशक्त हो जाता है।
जब आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, तो हम EPS 95 पेंशनभोगियों को औसतन 1400 रुपये मासिक पेंशन से काम चलाना पड़ रहा है। यह चोट पर नमक छिड़कने जैसा है।
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लोकसभा-राज्यसभा में पार्टी से लाइन उठकर सांसदों ने पेंशनर्स की बात की
मौजूदा मानसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर एक के बाद एक सांसदों ने दयनीय स्थिति को आवाज़ दी है, लेकिन टीम मोदी पर इसका कोई असर नहीं हुआ है। मानो किसानों को चिढ़ाने के लिए उन पर उदारता की बौछार की जा रही है।
यूपी विधानसभा की 10 सीटों पर चुनाव और पेंशनर्स की प्लानिंग
उत्तर प्रदेश विधानसभा की दस सीटों के लिए होने वाले आगामी उपचुनाव भाजपा को वह सबक सिखाएंगे, जो उसमें नहीं है। एक कठिन और दर्दनाक तरीके से टीम मोदी को यह समझ में आएगा कि कामगारों के साथ बुरा व्यवहार करने की क्या कीमत चुकानी पड़ती है।
सरकार पर किसान भी बनाएं पेंशनभोगियों के लिए दबाव
पेंशनभोगी ने अपने पोस्ट में लिखा-किसान भाइयों, क्या यह आपका पारस्परिक कर्तव्य नहीं है कि आप हम पुराने राष्ट्र-निर्माताओं का साथ दें, अपनी संगठनात्मक ताकत का इस्तेमाल करके एनडीए सरकार को हमारी उचित मांग को मानने के लिए मजबूर करें कि 7500 रुपये मासिक ईपीएस 95 पेंशन + डीए + मुफ्त चिकित्सा सेवा दी जाए।
आपने भी हमारी सेवाओं का लाभ उठाया है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे किसान भाई हमारे प्रति उतने आभारी नहीं हैं, जितने हम उनके प्रति हैं।
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