लाखों पेंशनर्स और मोदी सरकार अब आमने-सामने, मुंबई आजाद मैदान बनेगा गवाह

  • न्यूनतम पेंशन 1000 रुपए को बढ़ाकर 7500 रुपए करने का आंदोलन।

सूचनाजी न्यूज, मुंबई। कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (Employee Pension Scheme 1995) के तहत न्यूनतम पेंशन (Minimum Pension) का आंदोलन अब चुनाव हराने और जीताने की रहा पर चल पड़ा है। 1 अक्टूबर की तारीख मुंबई इसका गवाह बनने जा रहा है। केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए देशभर के पेंशनभोगियों की बड़ी आमसभा मुंबई के आजाद मैदान में होने जा रही है।

ये खबर भी पढ़ें: EPS 95 Pension: वरिष्ठ नागरिकों की दुर्दशा और सरकार की खामोशी पर पेंशनर्स के मन की बात

ईपीएस 95 न्यूनतम पेंशन (EPS 95 Minimum Pension) 7500 रुपए की मांग की जा रही है। केंद्र सरकार पर पेंशनभोगी भड़के हुए हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले फैसला करने की चेतावनी दी गई थी, जिस पर अमल न होने से मुंबई में 1 अक्टूबर को बड़ी रैली होने जा रही है। इसमें कोई बड़ा फैसला लिया जाएगा।

ये खबर भी पढ़ें: कर्मचारी राज्य बीमा योजना पूरे राज्य में होगी लागू, भिलाई, रायगढ़ के 100 बिस्तर अस्पतालों में बढ़ेगी सुविधाएं

ईपीएस 95 पेंशनर्स राष्ट्रीय संघर्ष समिति (EPS 95 Pensioners National Struggle Committee) के अध्यक्ष कमांडर अशोक राउत ने एक वीडियो संदेश जारी किया है। संदेश के माध्यम से 1 अक्टूबर को सभी पेंशनभोगी को मुंबई पहुंचने की अपील की गई है। पेंशनर्स को एकजुट करने के लिए सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार का अभियान चलाया जा रहा है। पेंशनभोगियों को आजाद मैदान पहुंचने और आंदोलन का समर्थन करने के लिए हर स्तर पर जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है।

ये खबर भी पढ़ें: EPS 95 पेंशन और 11 महीने के बकाया भत्ते पर BSP के पूर्व अधिकारियों की बड़ी बैठक 1 अक्टूबर को

वहीं, पेंशनर्स सी उन्नीकृष्णन लिखते हैं कि मोदी सरकार और भाजपा सोच रही है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन और डीए में बढ़ोतरी करके वे विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं, जो अभी और थोड़े समय बाद होने वाले हैं। लेकिन ईपीएस पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू किए बिना और न्यूनतम पेंशन की मांग को मोदी और उनकी सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किए जाने पर न केवल भाजपा राज्य विधानसभा चुनावों में हारेगी।

ये खबर भी पढ़ें: SAIL BSP ने गुजरात के अपने प्लांट से रेलवे को दी बड़ी राहत, ये आई ताज़ा रिपोर्ट

नायडू और नीतीश दोनों ही अपने-अपने राज्यों में स्थानीय मतदाताओं का समर्थन चाहते हैं। इसलिए वे उन्हें नाराज़ करके अपने-अपने राज्यों में अपनी सत्ता खोना नहीं चाहेंगे। वे भाजपा से अपना समर्थन वापस लेना पसंद करेंगे। भाजपा को संसदीय चुनाव में पहले ही झटका लग चुका है। अगला गंभीर झटका उन्हें 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों से मिलने वाला है।

ये खबर भी पढ़ें: सेल कर्मचारियों को 1 महीने के अर्जित अवकाश नगदीकरण में 20000 तक नुकसान