मेरे वोट से मेरी पेंशन नहीं, मेरे वोट से तुम्हारी पेंशन क्यों…अब इससे आगे क्या?

  • कर्मचारी पेंशन योजना 1995 के तहत न्यूनतम पेंशन का मामला।
  • अब आप किसे वोट देंगे किसे नहीं…कैसे तय करेंगे।

सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। ईपीएस 95 पेंशन राष्ट्रीय संघर्ष समिति (EPS 95 Pension Rashtriya Sangharsh Samiti) छत्तीसगढ़ रायपुर के अध्यक्ष अनिल नामदेव का पोस्ट काफी सुर्खियां बटोर रहा है। EPS 95 न्यूनतम पेंशन (EPS 95 Minimum Pension) बढ़ाने की मांग पर किए गए पोस्ट में पेंशनभोगियों को एक वोट बैंक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही सरकार पर गहरा प्रहार किया गया।

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मेरे वोट से मेरी पेंशन नहीं, मेरे वोट से तुम्हारी पेंशन क्यों…अब इससे आगे क्या? से नादेव जी अपनी बात शुरू करते हैं। लिखते हैं कि अब इससे आगे क्या? विचार तो अच्छा है। इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी तो नहीं। वैसे हमारे वोट से उन्हें पेंशन नहीं मिलती,उन्हें आपकी जेब से काटे गए टैक्स की रकम से मिलती है,इसलिए इस चेतावनी का भी कोई महत्व नहीं। आप एक को वोट नहीं देंगे तो वो हार जाएगा,सत्ता में नहीं आएगा,लेकिन एक हारेगा तो दूसरा जीतेगा। फिर उसे भी तो पेंशन मिलेगी ही न?

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आप किसी को वोट दे न दें,उनकी पेंशन पक्की है तो फिर वो आपकी पेंशन और आपके वोट की चिंता क्यों करेंगे भला? EPS 95 पेंशनरों का दुर्भाग्य है कि न वो congress के समर्थन वाली ओल्ड पेंशन के पेंशनर है… न सत्ताधारी सरकार की अपनी इजाद की गई नई पेंशन से उनका कोई तालुक है। हमारी इस विचित्र EPS 95 पेंशन योजना उस अनाथ बच्चे की तरह है, जिसका का न कोई माई है न कोई बाप। बस पैदा कर सड़क पर छोड़ दिया मरने को,और कोई भी गोद लेने को तैयार नहीं।

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सत्ता पक्ष की क्या बात कहें, उनकी निगाहों में तो हम कूड़ा कचरे से अधिक कुछ भी नहीं, शायद इस देश के नागरिक भी नहीं…। और विपक्ष ने भी ये जान कर कि EP95 के पेंशनर से उन्हें किसी भी चुनाव में कोई फायदा होने वाला नहीं है। अब तक हमारी ओर किसी न हाथ नहीं बढ़ाया। EPS 95 पेंशनरों की संख्या 70-72 लाख के लगभग है। देश के वरिष्ठ नागरिक भी हैं।

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अनिल नामदेव आगे लिखते हैं कि विगत 7-8 बरसों से अपनी न्यायोचित मांगों को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर हर विधायक हर संसद के द्वार पर माथा टेक टेक कर थक गए…,पर देश में प्रजातंत्र का राज है…जनता की ही है,जनता के लिए है…जनता के द्वारा वाली सरकार है…। ये सब अब बेमानी से हो चला है।

सरकार गरीबों और कमजोरों की नहीं सुनती। चाहे वो ऐसे कितने भी दावे क्यूँ न करें। अब आप किसे वोट देंगे किसे नहीं…कैसे तय करेंगे, बताइए तो जरा?

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