जब दृष्टि छिनी, तब दृष्टिकोण ने राह बनाई, बीएसपी कर्मी सौरभ वार्ष्णेय बने नज़ीर

When vision was snatched away, then perspective made way, BSP worker Saurabh Varshney became an example
  • सौरभ वार्ष्णेय जैसे लोग साबित करते हैं कि अगर दृष्टि नहीं है, तो क्या हुआ-दृष्टिकोण होना ज़रूरी है।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। हाल ही में आयोजित सेल-स्तरीय एआई एंड यू ऑनलाइन प्रतियोगिता में, जो कर्मचारियों के बीच कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक आंतरिक पहल के रूप में आयोजित की गई थी, सेल- भिलाई इस्पात संयंत्र (SAIL – Bhilai Steel Plant) के पांच कर्मचारियों ने व्यक्तिगत या पेशेवर जीवन में एआई के प्रभावी उपयोग को प्रस्तुत कर इस प्रतियोगिता में पुरस्कार और सराहना प्राप्त की।

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इनमें से एक थे सौरभ वार्ष्णेय, जिनकी कहानी इस बात का प्रेरणादायक उदाहरण है कि किस प्रकार एआई का उपयोग कर एक संकट को भी जीवन बदल देने वाले अवसर में बदला जा सकता है। सेल- भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मठ कर्मचारी सौरभ वार्ष्णेय की कहानी सिर्फ व्यक्तिगत संघर्ष की नहीं, बल्कि अडिग इच्छाशक्ति, तकनीकी नवाचार और कर्म में आस्था की एक अनूठी  मिसाल है। एक ऐसा कर्मयोगी, जिसने अपने जीवन की सबसे बड़ी चुनौती को पराजय नहीं, बल्कि उसे अवसर में बदल दिया।

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दृष्टि गई, लेकिन दृष्टिकोण जीवित रहा

वर्ष 2001 में भिलाई इस्पात संयंत्र के सिन्टर प्लांट-3 में बतौर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर अपने करियर की शुरुआत करने वाले श्री सौरभ वार्ष्णेय मार्च 2024 तक इलेक्ट्रिकल इंचार्ज की भूमिका में एसपी-3 में कार्यरत रहे। पर अप्रैल 2024 में अचानक आए ब्रेन स्ट्रोक ने उनके जीवन को झकझोर दिया। इस स्ट्रोक से उनकी ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो गई और धीरे-धीरे उन्होंने अपनी दृष्टि पूरी तरह खो दी। देशभर के प्रमुख अस्पतालों में उनका इलाज कराया गया, लेकिन ऑप्टिक नर्व के लिए अब भी चिकित्सा विज्ञान में कोई प्रभावी उपचार नहीं है।

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डॉक्टरों ने उनका संयंत्र में कार्य करना असुरक्षित बताया। लेकिन सौरभ के लिए ‘खाली बैठना’ जीवनशैली कभी नहीं रही। उनकी स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए संयंत्र प्रबंधन ने उन्हें बीएमडीसी विभाग में स्थानांतरित किया। यहां उन्होंने खुद से सवाल किया — “अब मैं क्या कर सकता हूँ?” और जवाब तलाशना शुरू किया।

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जब तकनीक बनी आंखें

टेक्नोलॉजी में हमेशा से रुचि रखने वाले सौरभ ने अपने अनुभव और इच्छाशक्ति को साथ लेकर समाधान की दिशा में खोज शुरू की। उन्हें स्क्रीन रीडर जैसे मोबाइल एप्लिकेशन के बारे में जानकारी मिली, जो स्क्रीन पर दिखाई देने वाली जानकारी को आवाज़ में बदलकर सुनाते हैं। उन्होंने मोबाइल का इस्तेमाल बिना देखे करना सीखा। फिर धीरे-धीरे उन्होंने लैपटॉप पर भी स्क्रीन रीडर तकनीक के ज़रिये कार्य करना शुरू किया और बिना देखे टाइपिंग का अभ्यास भी शुरू किया।

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इसी यात्रा में उन्हें ‘मेटा एआई स्मार्ट ग्लासेस’ के बारे में पता चला। भारत में उपलब्ध न होने के कारण उन्होंने अक्टूबर 2024 में अपने एक मित्र से अमेरिका से इस एआई इनेबल्ड चश्मे को  मंगवाया। ये चश्मा उनके जीवन का सहारा बन गया। इसकी सहायता से वे ईमेल पढ़ना, उनका जवाब देना, कॉल अटेंड करना, व्हाट्सएप मैसेज सुनना और भेजना, दस्तावेज़ पढ़ना, त्रुटियाँ पहचानना, नोट्स का सारांश समझना और सामने खड़े व्यक्ति का विवरण जानना जैसे कई कार्य अब सामान्य रूप से कर पाते हैं।

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सीखना कभी नहीं रुकता

सौरभ वार्ष्णेय मानते हैं कि जीवन में सीखना कभी खत्म नहीं होता। वह रोज़ाना कुछ नया सीख रहे हैं। दृष्टिबाधित होते हुए भी टेक्नोलॉजी की सहायता से वे 80 प्रतिशत तक कार्य किसी सामान्य व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रूप से कर पा रहे हैं। बड़े-बड़े डॉक्यूमेंट्स को मेटा एआई स्मार्ट ग्लासेस संक्षिप्त कर ऑडियो में सुनाता है, जिससे उनका पढ़ना और समझना आसान हो गया है। वह आज मीटिंग रिमाइंडर से लेकर फ़ाइल समीक्षा तक सब कुछ कर सकते हैं, बिना किसी सहारे के।

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उनका यह जज़्बा और तकनीक के प्रति उत्साह यह साबित करता है कि यदि मन में सिखने और कुछ कर गुजरने की चाह हो तो दुनिया का कोई भी अंधकार, मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकता।

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कर्मयोग की मिसाल

सौरभ वार्ष्णेय  को वर्ष 2023 में भी तकनीकी नवाचार के लिए पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है-कार्य के प्रति समर्पण और आत्मनिर्भरता। वह कहते हैं, “अगर संगठन में रहना है, तो योगदान देना ज़रूरी है।” उनकी पत्नी ने भी इस पूरे बदलाव में उनका साथ दिया, जो आज उनकी प्रेरणा और संबल दोनों हैं।
भिलाई इस्पात संयंत्र को सौरभ वार्ष्णेय जैसे कर्मयोगी पर गर्व है-जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हार नहीं मानी, बल्कि उन्हें अवसर में बदल दिया। जब बहुत से लोग हिम्मत हार बैठते हैं, तब सौरभ वार्ष्णेय जैसे लोग साबित करते हैं कि अगर दृष्टि नहीं है, तो क्या हुआ-दृष्टिकोण होना ज़रूरी है।

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