World Wetlands Day 2025: खतरे में जिंदगी, बचा लो, इंजीनियर्स ने दी चेतावनी, जुटे BSP अधिकारी

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क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण के क्षरण को रोकने की दिशा में बेहतर वेटलैंड प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कारक है। वाटर शेड प्रबंधन पर मंथन किया गया।

विश्व वेटलैंड दिवस पर तकनीकी परिचर्चा का आयोजन।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। द इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) भिलाई लोकल सेंटर, एवं पर्यावरण प्रबंधन विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा विश्व वेटलैंड्स दिवस 2025 (विश्व आद्र भूमि दिवस) मनाया गया। इंजीनियर्स भवन, सिविक सेंटर, भिलाई में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित विषय “हमारे साझे भविष्य के लिए आद्र भूमि की रक्षा करना” पर एक परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय, अधिष्ठाता, अभियांत्रिकी महाविद्यालय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजीव कुमार पांडेय-मुख्य महाप्रबंधक, ऊर्जा सुविधाएं एवं पर्यावरण प्रबंधन भिलाई इस्पात संयंत्र थे।

कार्यक्रम के अतिथि वक्ता के रूप में डा धीरज खलखो, मुख्य वैज्ञानिक, अभियांत्रिकी महाविद्यालय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता द इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स (इंडिया) भिलाई शाखा के चेयरमैन पुनीत चौबे ने की।

मुख्य अतिथि डॉ विनय पाण्डेय अधिष्ठाता, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने कहा कि वेटलैंड को बचाने की दिशा में हम सभी को अपना योगदान देना होगा।

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उन्होंने कहा कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में वेटलैंड की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। श्री पाण्डे ने कहा कि क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण के क्षरण को रोकने की दिशा में बेहतर वेटलैंड प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कारक है। श्री पाण्डे ने वाटर शेड प्रबंधन और वेटलैंड के बीच संबंध को विस्तारपूर्वक समझाया।

विनय पाण्डे ने कहा कि वाटर शेड प्रबंधन में वेट लैंड एक बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण और जल की गुणवत्ता में सुधार तथा मृदा संरक्षण को वाटरशेड प्रबंधन कहते हैं।

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विशिष्ट अतिथि राजीव कुमार पांडेय-मुख्य महाप्रबंधक, ऊर्जा सुविधाएं एवं पर्यावरण भिलाई इस्पात संयंत्र ने कहा कि हमें अपने पुरखों से पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज नदियों की, पहाड़ों की, वनों की पूजा करते थे, उन्हें देवतुल्य मानते थे और इन सभी के संरक्षण और रखरखाव के प्रति बहुत गंभीर रहते थे।

श्री राजीव पाण्डेय ने कहा कि हमने वेटलैंड्स को हटा कर उसके स्थान पर बड़े बड़े भवन और अट्टालिकाएं बनाई, लेकिन हम यह नहीं समझ पाए कि जिसे हटा कर हम भौतिक सुविधा में बढ़ोतरी कर रहे हैं। वहीं, हमारी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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राजीव पाण्डेय ने कहा कि हम हर बात के लिए शासन और उससे जुडी व्यवस्थाओं को दोष देते हैं पर क्या पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए हम कभी अपनी जिम्मेदारी के बारे में सोचते भी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने, केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड ने, राष्ट्रिय हरित प्राधिकरण, राज्य पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने अनेक कानून और नियम बनायें हैं और वो इसका पालन कराने हेतु कटिबद्ध हैं।

अतिथि वक्ता डॉ. धीरज खलखो, मुख्य वैज्ञानिक, अभियांत्रिकी महाविद्यालय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने अपने प्रस्तुतीकरण में वेट लैंड (आद्र्भूमि ) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया की वेटलैंड, हमारी पृथ्वी के सर्वाधिक उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो कि उपलब्ध जल को शुद्ध करने का भी कार्य करते हैं और इसी वजह से इन्हें प्रकृति की किडनी कहा जाता है।

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अपने स्वागत भाषण में द इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स (इंडिया) भिलाई शाखा के चेयरमैन पुनीत चौबे ने कहा कि वेटलैंड प्रकृति का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। उन्होंने कहा कि सन 1700 से आज तक लगभग 90 प्रतिशत वेटलैंडस का क्षरण हो चुका है और वन के विनाश से तीन गुना अधिक गति से वेटलैंड ख़तम हो रहे हैं।

द इंस्टीट्यूशन आफ इंजिनियर्स (इंडिया) भिलाई के कार्यकारीणी सदस्य अरविन्द रस्तोगी, भिलाई इस्पात संयंत्र के पर्यावरण प्रबंधन विभाग की महाप्रबंधक प्रभारी उमा कटोच, छत्तीसगढ़ राज्य शासन के तकनीकी शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी, एनएसपीसीएल के अधिकारी, संस्था के पूर्व अध्यक्ष एमडी अग्रवाल, बीपी यादव, शिखर तिवारी, संस्था के सदस्य बीआईटी दुर्ग, रूंगटा इंजीनियरिंग कॉलेज, दुर्ग पॉलीटेक्निक के छात्र उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन भिलाई इस्पात संयंत्र पर्यावरण प्रबंधन विभाग के महाप्रबंधक के प्रवीण ने दिया।