#poochhtahaisailkarmi ट्रेंड कर रहा है। कर्मचारी प्रबंधन की नीति पर बड़ा सवाल उठा रहे।
सूचनाजी न्यूज, बोकारो। बोकारो इस्पात संयंत्र में कार्यरत कुछ ऐसे भी कर्मी हैं, जिन्हे अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा है। और ऐसा हो भी क्यों न…। आज कल हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। युवा कर्मियों के भारी दबाव में कर्मियों को आवास आवंटन को जैसे-तैसे ऑनलाइन कर तो दिया गया, लेकिन उसमे कुछ खामियां ऐसी रह गई जिन्हें दूर करना अति आवश्यक है।
बोकारो में आवास आवंटन प्रक्रिया को लेकर सेल कर्मचारी खासा नाराज हैं। नगर सेवाएं विभाग का इतना चक्कर लगाना पड़ रहा है कि अब ये परेशान हो चुके हैं। सोशल मीडिया पर प्रबंधन को कोस रहे हैं। राहत के बजाय मुसीबत गले पड़ चुकी है। एक कर्मी ने लिखा-मान लीजिए कि आपने डी प्रकार के आवास आवंटन के लिए कुल 20 विकल्पों का चयन करते हैं और आपकी वरीयता सूची के अनुसार आपको एक अच्छा क्वार्टर आवंटित होता है, जिसकी संभावना बिल्कुल भी कम ही है। अच्छे क्वार्टर आउट ऑफ टर्म के नाम पर प्रभावशालियों, पुरस्कार विजेताओं को ही मिलता है।
इसके बाद दूसरे अच्छे क्वार्टर चेंज केस में डाल दिए जाते है। फिर भी किस्मत से कोई अच्छा क्वार्टर आपको अलॉट हो भी जाता है तो आपको असली समस्या से वास्ता होगा। या तो उस क्वार्टर में कोई ऐसी समस्या रहेगी, जिसकी वजह से आप नगर सेवा के चक्कर काटते रहेंगे या फिर उस में अवैध कब्जा होगा। ये दोनों में से क्या होगा, ये पूरी तरह आपके किस्मत पर निर्भर है।
अगर समस्या नगर सेवा की हुई और आप एक साधारण कर्मी है (निष्पक्ष विचार वाले) तो नगर सेवा कार्यालय के इतने चक्कर लगाने होंगे कि आप खुद ही उस क्वार्टर को निरस्त कर एक साल के किए डीबार होना आपको आसान लगने लगेगा। अगर कब्जा हुआ तो भी आपको नगर सेवा उस क्वार्टर को कब्जा मुक्त करवा कर आपको सुपुर्द करें, इसकी तो संभावना न के बराबर है।
कर्मी ने लिखा-इतना ही नहीं जब आप बार-बार नगर सेवा के चक्कर से परेशान हो जाएंगे तो आप खुद ही अलॉटेड क्वार्टर को निरस्त करना पसंद करेंगे नगर सेवा विभाग के अधिकारियों के सुझाव से। या अगर इतना कुछ झेलने के बाद भी आप उक्त क्वार्टर को लेने के लिए अपनी संघर्ष को जारी रखना चाहते है तो रख सकते है। हो सकता कि वह क्वार्टर आपको मिल जाए,लेकिन कब ये सिर्फ प्रभु ही बता पाएंगे।
अब यक्ष प्रश्न यह कि इन सारी समस्याओं का जिम्मेवार कौन? क्या किसी भी प्रकार से इसमें कर्मचारियों की गलती है? अगर नहीं तो इसकी सजा कर्मियों तथा उनके परिवार को क्यों झेलनी पड़ती है? कोई नेता,कोई यूनियन को इस विषय पर गंभीरता क्यों नहीं नजर आती?
इन सारे प्रश्नों के उत्तर के आस में नित्य नए कीर्तिमान स्थापित करने वाला इस्पात कर्मी कब तक इसे झेल पाएगा, शायद यही प्रबंधन तथा नेता देखना चाह रहे हों। आखिर कब तक? #poochhtahaisailkarmi…।