
- मिडिल क्लास लोगों की आधी ज़िन्दगी तो “बहुत महँगा है” बोलने में ही निकल जाती है।
सूचनाजी न्यूज, रायपुर। “मिडिल-क्लास” का होना भी किसी वरदान से कम नही है। कभी बोरियत नहीं होती…! जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत लगी ही रहती है…! मिडिल क्लास वालों की स्थिति सबसे दयनीय होती है। इस मिडिल क्लास के साथ सरकार क्या करती है। किस तरह की सोच होती है। आखिर जिंदगी और दिनचर्या कैसी होती है, इसकी झलक आप इस न्यूज में पढ़ने जा रहे हैं। ईपीएस 95 पेंशन राष्ट्रीय संघर्ष समिति रायपुर के अध्यक्ष अनिल कुमार रामदेव के विचार आप यहां विस्तार से पढ़िए।
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उन्होंने कहा-मिडिल क्लास को न तैमूर जैसा बचपन नसीब होता है, न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा। फिर भी अपने आप में उलझते हुए व्यस्त रहते है…! मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है। चाहे BMW का भाव बढ़े या AUDI का या फिर नया i phone लांच हो जाए। घंटा फर्क नहीं पड़ता। मिडिल क्लास लोगों की आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है।
इन घरों में पनीर की सब्जी तभी बनती है, जब दुध गलती से फट जाता है। और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती हैं, जब रात वाली सब्जी बच जाती है। इनके यहाँ फ्रूटी,कोल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते है, जब घर में कोई बढ़िया वाला रिश्तेदार आ रहा होता है।
मिडिल क्लास वालों के कपड़ों की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती है। डेली,कैजुवल और पार्टी वाला। छानते समय चायपत्ती को दबा कर लास्ट बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालो के लिए परमसुख की अनुभुति होती है।
ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नहीं करते। सीधे अगरबत्ती जला लेते है। मिडिल क्लास भारतीय परिवार के घरों में Get together नहीं होता,यहां ‘सत्यनारायण भगवान की कथा’ होती है। इनका फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 31 के बजाय 1 को आये तो गुल्लक फोड़ना पड़ जाता है।
मिडिल क्लास लोगों की आधी ज़िन्दगी तो “बहुत महँगा है” बोलने में ही निकल जाती है। इनकी “भूख” भी होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है। दरअसल महंगे होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान ‘फूड-आइटम्स’ नहीं बल्कि अपनी “औकात” ढूंढ रहा होता है। इश्क मोहब्बत तो अमीरो के चोचलें है, मिडिल क्लास वाले तो सीधे “ब्याह” करते हैं।
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इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता। “जिम्मेदारियां” जिंदगी भर बजरंग-दल सी पीछे लगी रहती हैं। मध्यम वर्गीय दूल्हा दुल्हन भी मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं, मानो जैसे किसी भारी सदमे में हो। अमीर शादी के बाद हनीमून पे चले जाते है और मिडिल क्लास लोगों की शादी के बाद टेंट बर्तन वाले ही इनके पीछे पड़ जाते है।
मिडिल क्लास बंदे को पर्सनल बेड और रूम भी शादी के बाद ही अलॉट हो पाता है। मिडिल क्लास बस ये समझ लो कि जो तेल सर पे लगाते हैं, वही तेल मुंह में भी रगङ लेते है। एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी गीजर बंद करके तब तक नहाता रहता है, जब तक कि नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए।
रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त नास्तिक हो जाता है और प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक। दरअसल मिडिल-क्लास तो चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, अल्पमत-पूर्णमत हर प्रकार की सरकार पूरा दम से बजाती है। मिडिल क्लास को आजतक बजट में वही मिला हैं, जो अक्सर हम मंदिर में बजाते हैं।
फिर भी हिम्मत करके मिडिल क्लास आदमी की पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता हैं। लेकिन बचा कुछ भी नहीं पाता। हकीकत में मिडिल मैन की हालत पंगत के बीच बैठा हुआ उस आदमी की तरह होता है, जिसके पास पूड़ी-सब्जी चाहे इधर से आये,चाहे उधर से, उस तक आते-आते खत्म हो जाता है। मिडिल क्लास के सपने भी लिमिटेड होते है। “टंकी भर गई है। मोटर बंद करना है”। गैस पर दूध उबल गया है। चावल जल गया है। इसी टाईप के सपने आते है। दिल मे अनगिनत सपने लिए बस चलता ही जाता है। चलता ही जाता है।