कोयला के बाद अब स्टील इंडस्ट्री में MDO Model, SWFI बोला-लौह अयस्क खदानों में करें विरोध

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  • एसडब्ल्यूएफआई ने कहा-सरकार कुछ पसंदीदा निजी दिग्गजों को लाभ पहुंचाने के लिए एमडीओ मॉडल लाई है।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। निजीकरण का एमडीओ मॉडल पहली बार आधिकारिक तौर पर 26 नवंबर 2013 को सार्वजनिक हुआ था। जब कोयला मंत्रालय ने घोषणा की थी कि उसने केंद्रीय बजट, 2013 की घोषणा के अनुसरण में सीआईएल की सात परियोजनाओं में एमडीओ मोड ऑफ ऑपरेशन शुरू करने के लिए कई पहल की योजना बनाई है। एमडीओ का पहला ड्राफ्ट मॉडल कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट (एमसीए) अगस्त 2015 को जारी किया गया था।

एसडब्ल्यूएफआई के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन में प्रत्येक श्रमिक से अपील किया गया है कि वे यूनियन से जुड़े होने के बावजूद, खदानों को बचाने के लिए एक मजबूत राय बनाएं, जो इस्पात उद्योग की जीवन रेखा हैं।

Vansh Bahadur

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केंद्र सरकार लौह अयस्क खदानों में भी लागू करने का निर्णय लिया है इस मॉडल को

एसडब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष पूर्व सांसद तपन सेन के मुताबिक कोल इंडिया लिमिटेड में एमडीओ मॉडल के खिलाफ विभिन्न रूपों में कई प्रतिरोधों को झेलने के बाद मोदी सरकार ने लौह अयस्क खदानों में इस मॉडल को लागू करने का फैसला किया। सरकार ने सेल को ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के कोइडा माइंस क्षेत्र में ताल्डीह कैप्टिव लौह अयस्क खदान को 25 साल की लीज पर देकर एमडीओ मॉडल के तहत अडानी इंटरप्राइजेज को सौंपने का फैसला लेने के लिए मजबूर किया है।

अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और धरना हुआ। अडानी माइनिंग इंटरप्राइजेज के इशारे पर खदान की उत्पादन क्षमता को मौजूदा दो मिलियन टन प्रति वर्ष से बढ़ाकर सात मिलियन टन प्रति वर्ष करने का एसएएल प्राधिकरण का यह कदम राष्ट्र और हमारे देश के लोगों, विशेष रूप से स्थानीय लोगों, जो पिछड़ी एसटी/एससी जनजाति से संबंधित हैं, के हितों के खिलाफ है। ताल्डीह माइंस में उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क का विशाल भंडार है।

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कुछ पसंदीदा निजी दिग्गजों को लाभ पहुंचाने के लिए है एमडीओ मॉडल

एनजेसीएस सदस्य व एसडब्ल्यूएफआई के महासचिव ललित मोहन मिश्र ने कहा-यह मॉडल एक तरफ पूरे कोयला क्षेत्र पर निजी कॉरपोरेट, घरेलू और विदेशी दोनों के द्वारा एक प्रकार का एकाधिकार नियंत्रण स्थापित करना है और दूसरी तरफ बिजली उत्पादन के लिए कोयले के आयात को बढ़ाना है। वह भी कुछ पसंदीदा निजी दिग्गजों को लाभ पहुंचाने के लिए असामान्य रूप से ऊंची कीमतों पर।

एमडीओ मॉडल स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि ये कोयला-राष्ट्रीयकरण को उलटने और सार्वजनिक कोयला संसाधनों को कॉर्पोरेट समूहों को उपहार में देने के लिए बनी योजना हैं। जिसे अब इस्पात उद्योगों के लौह अयस्क खदानों में भी लागू करने की योजना शुरू की जा रही है जिसे हर हाल में विरोध करना होगा।

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क्या है एमडीओ मॉडल

सीटू उपाध्यक्ष डीवीएस रेड्डी ने बताया कि एमडीओ मॉडल का पूरा नाम माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर है। यह खनन उद्योग में इस्तेमाल किया जाने वाला एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल है। जहां एक निजी कंपनी खदान मालिक की ओर से खनन विकसित करने संचालित करने और प्रबंधन करने के लिए अनुबंध की जाती है। इससे सार्वजनिक क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ने लगती है और वह क्षेत्र निजीकरण की ओर चला जाता है।

बिना किसी चर्चा और बहस के पारित किया गया था खान और खनिज संशोधन विधेयक

केंद्रीय नेताओं का कहना है कि विनाशकारी खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक 2023 को 26 जुलाई 2023 को संसद में रखा गया था। इस विधेयक को सदन में बिना किसी विस्तृत चर्चा और बहस के जल्दबाजी में पारित कर दिया गया।

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प्रस्तावित संशोधन, यदि कानून बन जाते हैं तो प्रकृति एवं लोगों के साथ-साथ भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा, इस्पात उत्पादन और भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी विनाशकारी प्रभाव डालेंगे, जबकि मूल खान और खनिज (विकास और विनियमन) [एमएमडीआर) अधिनियम 1957 ने प्रारंभिक सर्वेक्षण प्रक्रिया के हिस्से के रूप में गड्ढे खोदने, खाई खोदने, ड्रिलिंग और उप-सतही उत्खनन पर रोक लगा दी थी।

यह विधेयक इन सभी पर्यावरणीय रूप से कमजोर गतिविधियों की अनुमति देता है। संशोधन विधेयक खनन क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिए अनिवार्य सभी सुरक्षात्मक वानिकी मंजूरी प्रक्रियाओं को समाप्त करने जा रहा है।