अपने मां-बाप, बच्चे, रिश्तेदार की लाश को खाती थी यह जनजाति, मांस की होती थी दावत

  • अंतिम संस्कार में जलाने के बजाए भुनकर खाने महिलाएं बिनती थी लकड़ियां।
  • मर चुके अपने प्रिय लोगों के सम्मान में खाते थे उनका मांस।
  • दावत से पहले महिलाओं और पुरुषों के बीच शव का होता रहा बराबरी से बंटवारा।

सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ से लेकर देश के कोने-कोने और दुनिया के हरेक महाद्वीप में जनजातियां पाई जाती है। क्षेत्रवार, अंचलवार जनजातियां अलग-अलग होती है। अलग-अलग जनजातियों की रीति, नीति, रिवाज, संस्कृति, परंपराएं भी हर जाति से भिन्न होती है। बहुत-सी जनजातियों के कई रिवाज समय-समय पर सुर्खियों में बने रहे। लेकिन ब्रिटेन और खासकर पापुआ न्यू गिनी में पाई जाने वाली जनजाति की परंपराएं बेहद रहस्यमयी है।

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कारण है कि यहां की जनजाति में किसी मौत के बाद उसके शरीर को महिला और पुरुष बांटकर खा लिया करते थे। पापुआ न्यू गिनी में एक जनजाति पाई है, इस जनजाति का नाम ‘फोर जनजाति’ (Fore Tribe) है। इस जनजाति के लोग किसी की मौत होने पर उसे खा जाया करते थे। महिलाएं मृतक के मस्तिष्क को खाती थी। पुरुष मस्तिष्क के अलावा अन्य हिस्सों को खाते थे। पित्ताशय को छोड़ पुरुष पूरे शरीर को खा जाया करते थे।

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बताया जाता है कि फोर जनजाति में किसी की भी मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार में बकायदा दावत की जाती थी। इस समाज द्वारा ऐसा माना जाता रहा है कि दफनाने या कही रखने से शरीर में कीड़े पड़ जाएंगे इसलिए प्रिय मृतक परिजन के सम्मान में ये लोग मिलकर पूरे शव को खा जाया करते थे।

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अंतिम संस्कार में महिलाएं लड़कियां बिनती थी। सनातन धर्म के हिसाब से लड़की शव को जलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है, लेकिन यहां महिलाएं शव को लकड़ी में फंसाकर अच्छे से भून सकें और आपस में दावत में ग्रहण कर सकें।

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जानलेवा साबित हुई परंपरा

ऐसा माना जाता है कि फोर जनजाति के लोग मृत इंसान के शरीर को खाने से होने वाले दुष्परिणामों से अनजान थे। मानव वैज्ञानिकों द्वारा इस जनजाति पर शोध किया गया और पाया गया कि 1960 तक ये परंपरा जीवित रही। जबकि इंसान के मस्तिष्क में एक अणु (Molecule) पाया जाता हैं, जिसे खाने से रहस्यमयी ढंग से मौत हो सकती है।

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शोध में पता चला कि इंसानी मस्तिष्क में पाए जाने वाले घातल अणु के कारण ही फोर जनजाति में विचित्र तरह की बीमारी पाई गई। इस बीमारी के चलते ही फोर जनजाति के लगभग दो परसेंट (2%) लोगों की हर साल मौत हो जाती थी।

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समाज के लोग अचानक मर जाते थे

एक रिसर्च में पाया गया कि प्रायन्स नामक प्रोटीन के कारण होने वाली बीमारी में कुरु भी पाया जाता हैं। इसमें री-प्रोड्यूस करने और संक्रामक बनने की क्षमता होती है। इसके कारण संक्रामक के उत्पन्न होने के साथ ही इसके बेहद तेज गति से फैलाव का भी कारण बनता है। इसके चलते ही समाज के लोग अचानक मर जाते थे।

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लाइलाज न्यूरोलॉजिकल कंडिशन (Incurable neurological condition) है कुरू

वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि फोर जनजाति के लोगों में यह परम्परा एक मानसिक बीमारी हैं। इस बीमारी को कुरू कहा जाता है। कुरू एक लाइलाज न्यूरोलॉजिकल कंडिशन (Incurable neurological condition) हैं। इसमें नर्वस सिस्टम करीब-करीब पूरी तरह बंद हो जाता हैं।

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