IMD ने क्यों बढ़ाया मानसून सीजन, जानें बड़ी वजह

सूचनाजी न्यूज | IMD ने मानसून सीजन को बढ़ाया दिया है। इसके पीछे बड़ी वजह बताई जा रही है। इसकी सभी जगह जमकर चर्चा हो रही है। @Suchnaji.com News आपको बताने जा रहा है कि इसकी इतनी चर्चा क्यों हो रही ? क्या है मानसून में इस बदलाव का कारण ? फसलों को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है ? वापस लौटते मानसून सीजन के बारे में विस्तार से बात की जाएगी। साथ ही खाद् सुरक्षा पर विस्तारित मानसून के प्रभाव बारे में भी चर्चा की जाएगी।

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-जानिए क्यों है चर्चा में

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) (IMD) के हालिया पूर्वानुमान के अनुसार 2024 का मानसून सीजन बेहद अप्रत्याशित रहा है और यह अक्टूबर तक बढ़ सकता हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का दावा है कि इस साल का बढ़ा हुआ मानसून कोई असामान्य बात नहीं है। यह एक दशक से भी अधिक समय से धीमी गति से बनने वाला रुझान है।

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-क्या है मानसून में इस बदलाव का प्रमुख कारण

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में मानसून का पैटर्न तीव्र हो रहा है, जिसके कारण अनियमित और अत्यधिक वर्षा हो रही है। समुद्र के बढ़ते तापमान और वायुमंडलीय परिवर्तनों के कारण नमी का स्तर बढ़ रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप भारी वर्षा और बाढ़ आ रही है।

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जबकि अल नीनो ने शुरू में मानसून को कमजोर कर दिया, जिससे कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ गया। वहीं ला नीना के कारण अत्यधिक बारिश और बाढ़ आई है।

जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभावों के साथ मिलकर ये अस्थिर मौसम पैटर्न मानसून की अप्रत्याशितता को और खराब कर रहे हैं और पूरे भारत में कृषि, जल प्रबंधन और दैनिक जीवन को बाधिक कर रहे है।

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-खाद्य सुरक्षा पर विस्तारित मानसून का प्रभाव

इस वर्ष का विस्तारित मानसून खरीफ फसलों के लिए परेशानी लेकर आया हैं, जिन्हें मानसूनी फसलें भी कहा जाता है, क्योंकि अच्छी पैदावार मानसून के समय पर लौटने पर निर्भर करती हैं।

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अत्यधिक वर्षा के कारण खेत अत्यधिक भीग जाते है, जिससे कटाई के बाद तैयार उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है, जिससे फसल के नुकसान का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि धान, मक्का और कपास जैसी खरीफ फसलें नमी के स्तर के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है।

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मानसून का यह बदलता स्वरूप भारत के कृषक समुदाय के लिए चिंता का विषय बन गया है। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा आधारित कृषि प्रमुख है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 और 2021-22 के बीच बाढ़ और भारी वर्षा जैसी जल-मौसम संबंधी आपदाओं ने 33.9 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया है।

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-फसलों को बचाने ये करें

विशेषज्ञ अधिक से अधिक जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों के निर्माण और अनुकूलन का सुझाव देते हैं।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए कृषि नियोजन में आमूलचूल परिवर्तन अत्यंत प्रासंगित हो गया है।

फसलों में विविधता लाना, जल निकासी प्रणालियों में सुधार करना तथा सूखा एवं बाढ़ प्रतिरोधी किस्मों को अपनाना कुछ ऐसी रणनीतियां हो, जो अनियमित मानसून के प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकती है।

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-वापस लौटते मानसून सीजन के बारे में समझिए

अक्टूबर-नवंबर के दौरान सूर्य के दक्षिण की ओर बढ़ने के साथ उत्तरी मैदानों पर मानसून गर्त (Monsoon Trough) या निम्न दबाव गर्त (Low Pressure Trough) कमजोर हो जाता है।

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धीरे-धीरे इसकी जगह उच्च दबाव वाली प्रणाली ले लेती है। दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं और धीरे-धीरे पीछे हटने लगती है।
अक्टूबर के प्रारंभ तक मानसून उत्तरी मैदानों से वापस चला जाता है।

अक्टूबर-नवंबर के महीने गर्म बरसात के मौसम से शुष्क सर्दियों की स्थिति में संक्रमण का समय होता हैं।

मानसून की वापसी के समय आसमान साफ रहता है और तापमान में वृद्धि होती है।

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