भारत की पहली ट्रेड यूनियन का गठन अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान 1920 में हुआ था, जिसके नेतृत्व में श्रमिक वर्ग ने आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। सीटू (CITU) के 54वें स्थापना दिवस पर हिंदुस्तान स्टील इम्प्लाइज यूनियन द्वारा परिवार के सदस्यों के साथ समाज विकास में ट्रेड यूनियन की भूमिका विषय पर कूर्मी भवन सेक्टर 7 में परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में यूनियन को स्थापित करने में बलिदान देने वाले तथा दिवंगत हुए साथियों की स्मृति में 2 मिनट का मौन धारण किया गया।
यूनियन के अध्यक्ष विजय कुमार जांगड़े द्वारा स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए बताया गया कि यह कार्यक्रम यूनियन के सक्रिय कार्यकर्ताओं के परिवारों के सदस्यों के लिए विशेष रूप से रखा गया है ताकि समाज के विकास में ट्रेड यूनियन की भूमिका के बारे में वे अपने विचार एवं समझ साझा कर सके। कार्यक्रम का संचालन जगन्नाथ प्रसाद त्रिवेदी तथा धन्यवाद ज्ञापन डीवीएस रेड्डी ने किया।
‘संघर्ष एकता संघर्ष’ के नारे के साथ हुई सीटू की स्थापना
इस अवसर पर सीटू छत्तीसगढ़ के कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि भारत की पहली ट्रेड यूनियन का गठन अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान 1920 में हुआ था, जिसके नेतृत्व में श्रमिक वर्ग ने आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई किंतु स्वतंत्रता मिलने से ठीक पूर्व एटक से टूट कर इंटक अलग हुई, 1948 में एचएमएस 1949 में यूटीयूसी का गठन हुआ।
जिस ट्रेड यूनियन ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस यूनियन को शासक वर्ग ने अपने चुनावी राजनीतिक लाभ के लिए तोड़ना शुरू कर दिया। इस पृष्ठभूमि में काफी मंथन के पश्चात 30 मई 1970 को कलकत्ता में आयोजित विशाल जनसभा में एकता संघर्ष एकता के नारे एवं व्यवस्था परिवर्तन हेतु ट्रेड यूनियन एकता कायम करने के उद्देश्य के साथ सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स का गठन हुआ।
अपने स्थापना के समय ही सीटू ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अन्य यूनियन से अलग रूख अपनाया जैसे फैमिली पेंशन योजना, कर्मचारी पेंशन योजना 1995, नई आर्थिक नीति 1991। आज सीटू के पहल पर 10 राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन ने 2008 से एक मंच बनाकर कर्मियों के महत्वपूर्ण मुद्दों पर साझा संघर्ष कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था में मांग को बनाएं रखती है ट्रेड यूनियनें
इस अवसर पर सीटू नेताओं ने समाज विकास में ट्रेड यूनियन की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किस तरह से ट्रेड यूनियनों के संघर्ष से कर्मियों का वेतन बढ़ता है, जिससे पूरे समाज में क्रय शक्ति बढ़ती है और क्रय शक्ति बढ़ने से मांग बढ़ती है।
उन्होंने बताया कि उद्योगपति नई प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सस्ते से सस्ता वस्तु का निर्माण कर सकता है किंतु जब तक मांग ना हो उन वस्तुओं को बेच नहीं सकता और मांग को बनाए रखने के लिए ट्रेड यूनियनों की आवश्यकता है। यदि ट्रेड यूनियन ना रहे तो पूरी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ कर नष्ट हो जाएगा।
एक घटना ने बदल दी सीटू के बारे धारणा
एक गृहिणी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक दिन जब वे अपने पति के साथ कहीं जा रही थी। सीटू यूनियन से जुड़ी कुछ महिला ठेका श्रमिकों से मुलाकात हो गई।
वे महिलाएं बता रही थी कि किस तरह ठेकेदार एक सुपरवाइजर के माध्यम से उन पर दबाव बना रहा है कि सीटू यूनियन छोड़ कर दूसरी यूनियन की सदस्य बने तो नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। उन महिलाओं से जब पूछा गया कि यदि सीटू छोड़कर किसी और यूनियन का सदस्य बनने से अगर नौकरी सुरक्षित रहता है तो बुराई क्या है?
उन महिलाओं का जवाब आश्चर्य चकित करने वाला था। उन्होंने कहा कि सीटू से जुड़ने के बाद कितनी भी परेशानी हो, लेकिन हम सम्मान से काम कर पाते हैं। एक बार हमारा नाम सीटू से जुड़ जाता है तो कोई भी छेड़खानी तो दूर की बात है गलत नजर से देख भी नहीं सकता।
ब्लड बैंक खुलवाने में सीटू के पहल से प्रभावित हूं
एक ग्रहणी ने कहा कि सेक्टर 9 ब्लड बैंक को बंद किए जाने के पश्चात जिस तरह से सीटू के पहल पर अन्य यूनियनों तथा ऑफिसर एसोसिएशन मिलकर हर स्तर पर संघर्ष करके ब्लड बैंक को खुलवाया उससे वह बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि सीटू केवल संयंत्र के भीतर ही श्रमिकों के मांग को नहीं उठाता बल्कि सामाजिक मुद्दों में भी जैसे दहेज उत्पीड़न के खिलाफ, यौन उत्पीड़न के खिलाफ महामारी के दौरान लोगों को राहत पहुंचाने, कब्जा से मुक्ति दिलाने आदि मुद्दों पर सीटू की भूमिका को अन्य यूनियनों से अलग एक पहचान देती है।
कार्यक्रम में महिलाओं ने बताया अपना अनुभव
स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए परिवार की महिलाओं ने अपने अनुभव को बताया परिचर्चा में महिलाओं ने खुलकर बात करते हुए कहा कि पहले तो हम भी अपने पति द्वारा सीटू में काम करने को लेकर यही समझते थे कि यह संगठन भी कई अन्य संगठनों की तरह मजा करने एवं अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए काम करने वाला संगठन होगा।
किंतु कालांतर में यह अनुभव सामने आया कि इस संगठन में काम करना ना केवल ईमानदारी से जुड़ा हुआ मामला है, बल्कि कर्मियों के लिए एवं सामाजिक घटनाओं में खुलकर काम करने एवं संगठन को समय देने वाला मामला है। निश्चित रूप से इस संगठन में काम करने के कारण घर में पूरी तरह से समय नहीं दे पाते हैं। किंतु संगठन के कामों को देख कर हमें गर्व होता है कि हम ऐसे सांगठनिक परिवार का हिस्सा है जो जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करता है।