माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया का 2047 तक का प्लान, पढ़ें डिटेल

Mining Engineers Association of India's plan till 2047, read details
एमईएआई हैदराबाद चैप्टर ने 'माइनिंग द मिनरल्स: वे फॉरवर्ड फॉरवर्ड टुवर्ड्स आत्मनिर्भर विकसित भारत 2047' पर राष्ट्रीय सम्मेलन।
  • उद्योग प्रणेताओं और नीति निर्माताओं की सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ सम्मेलन ने 2047 तक विकसित भारत की तर्ज पर एक सुदृढ़, आत्मनिर्भर और सुस्थिर खनन उद्योग प्राप्त करने के लिए रोडमैप निर्धारित किया।

सूचनाजी न्यूज, हैदराबाद। माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमईएआई), हैदराबाद चैप्टर ने ‘माइनिंग द मिनरल्स: वे फॉरवर्ड टुवर्ड्स आत्मनिर्भर विकसित भारत 2047’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक समापन किया।

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सम्मेलन के दूसरे दिन खनन क्षेत्र, इसकी भविष्य की नीतियों और तकनीकी प्रगति से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रभावोत्पादक विचार-विमर्श किया गया।

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समापन सत्र की अध्यक्षता वी सुरेश, निदेशक (वाणिज्य) एनएमडीसी लिमिटेड ने की, जो इस अवसर पर मुख्य अतिथि रहे। एन. बलराम, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, एससीसीएल सम्मानित अतिथि थे। उपस्थित अन्य विशिष्टजनों बी. विश्वनाथ, आईआरएसएस, मुख्य सतर्कता अधिकारी, एनएमडीसी लिमिटेड; बी. सुरेंद्र मोहन, पूर्व सीएमडी, एनएलसी इंडिया लिमिटेड, एके शुक्ला, पूर्व सीएमडी, एचसीएल; और पीके. सतपथी, पूर्व निदेशक (उत्पादन), एनएमडीसी लिमिटेड ने खनन नवाचार, सुस्थिरता और नीतिगत सुधारों पर चर्चा में योगदान दिया।

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सम्मेलन के दूसरे दिन का प्रारम्भ एमएमडीआर अधिनियम के प्रभाव, रॉयल्टी संरचनाओं में संशोधन, लघु खनिजों के खनन और उद्योग के भविष्य को प्रभावित करने वाले नीतिगत सुधारों पर विशेषज्ञ चर्चाओं के साथ हुआ। प्रख्यात वक्ताओं ने नियामक ढांचे के कानूनी और आर्थिक प्रभावों और विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक हस्तक्षेपों पर महत्वपूर्ण विचार मंथन किया।

तकनीकी सत्रों में अपशिष्ट या निम्न-श्रेणी के अयस्कों से मैंगनीज और बॉक्साइट प्राप्त करने, निम्न-श्रेणी के लौह अयस्कों के अमोनिया बेनीफिसिएशन और सुस्थिर खनन पद्धतियों में प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया गया। उद्योग विशेषज्ञों ने खनिज प्रसंस्करण में दक्षता और स्थिरता लाने वाले नवाचारों पर अपने विचार साझा किए।

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विनय कुमार, निदेशक (तकनीकी), एनएमडीसी लिमिटेड और अध्यक्ष, एमईएआई हैदराबाद चैप्टर ने अपनी समापन टिप्पणी में उल्लेख कहा कि, ” आज हम इस उल्लेखनीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन पर यहां एकत्र हुए हैं। इस अवसर पर मैं आपके समक्ष हार्दिक रूप से कृतज्ञ एव6 आशांवित हूं। पिछले डेढ़ दिनों में, हमने गहन चर्चाएं की हैं, परिवर्तनकारी विचारों को साझा किया है, और विकसित भारत 2047 के लिए भारत के खनन क्षेत्र के भविष्य की सामूहिक रूप से कल्पना की है।

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भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष की ओर बढ़ रहा है। ऐसे समय में आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास को बढाने में खनन क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में उद्योग के अग्रणी व्यक्तित्वों ने नीतिगत सुधारों, अन्वेषण में वृद्धि, टिकाऊ खनन, डीकार्बोनाइजेशन, कौशल विकास और युवा प्रतिभा को आकर्षित करने की आवश्यकता पर जोर देकर सम्मेलन का एक मजबूत आधार बनाया।

हालांकि भारत एक लंबे समय से बल्क मिनरल्स में अग्रणी रहा है, हमारा ध्यान अब महत्वपूर्ण और गौण खनिजों पर विस्तारित होना चाहिए, जहां हम कई वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से पीछे हैं। इस अंतर को दूर किए बिना वास्तविक खनिज सुरक्षा प्राप्त करना एक चुनौती बनी रहेगी।

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एमईएआई सम्मेलन ने उद्योग-व्यापी प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया, जैसे कि नीतिगत सुधारों, डीकार्बोनाइजेशन, ऑटोमेशन और एआई-संचालित खनन प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता । एक महत्वपूर्ण बिंदु था “ग्रीनफ्लेशन” का प्रभाव – हरित ऊर्जा में परिवर्तन के कारण कमोडिटी की बढ़ती कीमतें-और सुस्थिरता और सामर्थ्य के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए हमें कैसी रणनीतिक अपनानी चाहिए। हम इन चुनौतियों पर केवल प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकते बल्कि हमें आर्थिक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करते हुए सुस्थिर खनन प्रथाओं की ओर वैश्विक परिवर्तन का सक्रिय रूप से नेतृत्व करना चाहिए।

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वी. सुरेश, निदेशक (वाणिज्य) एनएमडीसी लिमिटेड ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “भारत का खनन क्षेत्र आर्थिक प्रगति की रीढ़ है और यह 2047 तक विकसित भारत लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत महत्वपूर्ण होगा। सतत खनन, तकनीकी नवाचार, कौशल विकास, नीतिगत सुधार और वैश्विक साझेदारी उद्योग के भविष्य को परिभाषित करेगी। हमारे सामूहिक प्रयास खनन क्षेत्र को आत्मनिर्भर और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार बनाएंगे।

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एन बलराम-अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, एससीसीएल ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए टिप्पणी की, “राष्ट्रीय प्रगति का समर्थन करने के लिए भारत के खनन उद्योग को नवाचार और टिकाऊ नीतियों के साथ विकसित होना चाहिए। आयात पर निर्भरता कम करने और आर्थिक सुदृढता को बढ़ावा देने के लिए घरेलू खनन क्षमताओं को सशक्त करना महत्वपूर्ण है।

एनएमडीसी लिमिटेड के पूर्व निदेशक (उत्पादन) पी.के. सतपथी ने कहा, “भारत के औद्योगिक और बुनियादी ढांचे के विकास को सुनिश्चित करने में खनन की भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता है। उन्नत प्रौद्योगिकी और जिम्मेदार संसाधन प्रथाओं को एकीकृत करके, हम क्रिटिकल माइनिंग क्षेत्र में भी नए अवसरों को अनलॉक कर सकते हैं।

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एचसीएल के पूर्व सीएमडी एके शुक्ला ने कहा, “भविष्य के खनन में न केवल तकनीकी संवर्द्धन शामिल है, बल्कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सामाजिक प्रतिबद्धता पर भी ध्यान केंद्रित करना है। हमें सस्टेनिबिलिटी में वैश्विक बेंचमार्क प्राप्त करने की दिशा में काम करना चाहिए।

एनएलसी इंडिया लिमिटेड के पूर्व सीएमडी श्री बी. सुरेंद्र मोहन सभा को संबोधित करते हुए एक बहुत ही प्रासंगिक विषय और बहुत ही सही समय के साथ राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने की पहल करने के लिए एमईएआई को बधाई दी।

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कार्यक्रम का समापन खनन क्षेत्र में प्रमुख पेशेवरों के योगदान की सराहना में एक सम्मान समारोह के साथ हुआ, जिसमें नवाचार और टिकाऊ प्रथाओं को आगे बढाने में उनकी भूमिका को मान्यता प्रदान की गई। आयोजन के दूसरे दिन, एमईएआई हैदराबाद चैप्टर ने एनएमडीसी लिमिटेड के डीआईओएम कॉम्प्लेक्स परियोजना के पूर्व प्रमुख स्वर्गीय एस के वर्मा को मरणोपरांत सम्मान प्रदान किया।

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साथ ही पीके सतपथी, एनएमडीसी के पूर्व निदेशक (उत्पादन), एके. शुक्ला, पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) बी. राम मोहन, पूर्व क्षेत्रीय खान नियंत्रक, बैंगलोर क्षेत्र, भारतीय खान ब्यूरो, वी बालाकोटी रेड्डी, निदेशक बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड को खनन उद्योग में उनके अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया।

कार्यक्रम के पहले दिन सभा को संबोधित करते हुए जॉयदीप दासगुप्ता, निदेशक (उत्पादन ) एनएमडीसी लिमिटेड के इस बात पर बल दिया कि “खनन उद्योग राष्ट्रीय प्रगति का आधारभूत अंग है, जो आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए उद्योग जगत के दिग्गजों को एक साथ लाने में हैदराबाद चैप्टर के प्रयास सराहनीय हैं। एनएमडीसी में, हम पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ संचालन सुनिश्चित करते हुए खनन क्षमता का विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। खनन क्षेत्र में शामिल होने के लिए युवा प्रतिभा को प्रोत्साहित करना भारत के भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

डॉ एस के सिन्हा, खान योजना प्रमुख और आईएसओ प्रमुख एनएमडीसी लिमिटेड ने राष्ट्रीय संगोष्ठी की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की और भारत में भविष्य के खनन के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी से प्राप्त कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं: –

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1. सुस्थिर खनन गतिविधियां

वर्तमान में खनन क्षेत्र का सबसे प्रभावी विषय सुस्थिरता है। हम पृथ्वी से मूल्यवान खनिजों को जैसे निकालते हैं, इसी तरह हमें पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में भी सचेत रहना होगा । खनन का भविष्य ऐसे कार्यकलापों पर आधारित होना चाहिए जो पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा दें और क्षरण को कम कर करें। स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को लागू करने से हमें अपशिष्ट और ऊर्जा की खपत में कमी एवं दक्षता में सुधार लाने में मदद मिलेगी। हमें खनित भूमि के पुनर्ग्रहण और पुनर्वास को भी प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जल और वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा किया जाए।

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2. प्रौद्योगिकीय नवोन्मेष और अनुसंधान

भारत खनन में वैश्विक रूप से अग्रणी बनने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में हमें नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत के खनन क्षेत्र को खनन कार्यों में उत्पादकता और सुरक्षा में सुधार के लिए स्वचालन, एआई, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाना चाहिए।

अन्वेषण तकनीकों में प्रगति के साथ, हम पृथ्वी के दुर्लभ तत्वों सहित अप्रयुक्त खनिज भंडार को अनलॉक कर सकते हैं, जो हरित प्रौद्योगिकियों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुसंधान और विकास में निवेश करके, हम खनिजों को अधिक कुशलता से और कम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ निकालने के लिए नवीन तरीकों को प्रस्तुत कर सकते हैं ।

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3. कुशल कार्यबल का विकास

कुशल मानव पूंजी के बिना कोई भी क्षेत्र फल-फूल नहीं सकता । जब हम एक विकसित भारत की ओर देखते हैं, तो हमें अपने खनन कार्यबल के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है । इसमें अगली पीढ़ी को आधुनिक खनन कार्यों के प्रबंधन और नवीनतम तकनीकों को लागू करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करना शामिल है।

भारत को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ गठजोड करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यबल न केवल नौकरी के लिए तैयार हो, बल्कि भविष्य के लिए भी तैयार हो।

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4. नीतिगत सुधार और नियामक ढांचा

खनन क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए एक स्पष्ट और सहायक नीतिगत वातावरण आवश्यक है । राष्ट्रीय खनिज नीति, जिसका उद्देश्य नियामक चुनौतियों का समाधान करना और जिम्मेदार खनन को प्रोत्साहित करना है, एक महत्वपूर्ण कदम है । हालांकि, लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और खनिज संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए और सुधारों की आवश्यकता है।

एक स्थिर और पारदर्शी विनियामक ढांचा निवेशकों को अधिक विश्वास प्रदान करेगा और खनन उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देगा। इसके अतिरिक्त, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खनन गतिविधियों से भूमि अधिकारों, पर्यावरण सुरक्षा उपायों और कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानीय समुदायों को लाभ हो।

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5. वैश्विक साझेदारी और व्यवसाय

वर्ष 2047 की ओर बढ़ते हुए भारत के खनन क्षेत्र को अपनी वैश्विक साझेदारी को मजबूत करना होगा। दुनिया अब अधिक परस्पर आश्रित होती जा रही है, और हमारे खनिज संसाधनों की मांग इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढांचे जैसे उद्योगों में उच्च स्तर पर बनी रहेगी।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ा सकता है, रणनीतिक खनिज भंडार विकसित कर सकता है और खनन क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है। हमारे व्यापार संबंधों को इस प्रकार विकसित होना चाहिए कि भारत न केवल खनिजों बल्कि खनन विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी का भी प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सके।

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खनिज केवल कच्चा माल नहीं हैं; वे हमारी भविष्य की अर्थव्यवस्था के निर्माण खंड हैं। चाहे वह इस्पात उद्योग हो, जो बुनियादी ढांचे के विकास को शक्ति प्रदान करता है, ऊर्जा क्षेत्र, जो नवीकरणीय ऊर्जा की ओर अग्रसर है, या प्रौद्योगिकी उद्योग, जो पृथ्वी के दुर्लभ खनिजों पर निर्भर करता है, खनन का आधुनिक जीवन के हर पहलू से सीधा संबंध है।

विकसित भारत के लिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा खनन क्षेत्र संतुलित और सतत तरीके से राष्ट्र के विकास में योगदान दे । ऊपर उल्लिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, हम आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और एक स्वच्छ, हरित भविष्य को बढ़ावा देने में सक्षम होंगे।

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COP26 में घोषित 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता, सुस्थिर खनन के महत्त्व को और अधिक रेखांकित करती है। स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक खनिज जैसे बैटरी के लिए जैसे लिथियम, कोबाल्ट और निकल या वैद्युतिक बुनियादी ढांचे के लिए तांबा और एल्यूमीनियम- हमारे हरित लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए जिम्मेदारी से सोर्स किए जाने चाहिए।

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सम्मेलन के दौरान हुई चर्चाओं और एकत्र की गई अंतर्दृष्टि ने सुस्थिर खनन प्रथाओं, प्रौद्योगिकीय नवाचार, कार्यबल विकास, नीति सुधारों और वैश्विक सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। जिम्मेदार संसाधन प्रबंधन और एआई-संचालित प्रौद्योगिकियों को अपनाना खनन उद्योग के आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक कारकों के रूप में उभरा । भविष्य की चुनौतियों के लिए कार्यबल को तैयार करने के लिए कौशल विकास पर जोर दिया गया।

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नियामक सरलीकरण और पारदर्शी नीतियों के विकास के लिए प्रमुख प्रवर्तक के रूप में मान्यता दी गई। अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत करने से भारत खनन क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी स्थान प्राप्त करेगा। उद्योग प्रणेताओं और नीति निर्माताओं की सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ, सम्मेलन ने 2047 तक विकसित भारत की तर्ज पर एक सुदृढ़, आत्मनिर्भर और सुस्थिर खनन उद्योग प्राप्त करने के लिए रोडमैप निर्धारित किया।

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निष्कर्षत:, भारत में खनन क्षेत्र अत्यधिक अवसरों की राह पर है । जैसे-जैसे हम विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहे हैं, यह जरूरी है कि हम अपनी खनिज संपदा का उपयोग इस तरह से करें जिससे राष्ट्र, पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों को लाभ हो।

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इस संगोष्ठी में आगे की चुनौतियों और अवसरों में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की है, और मुझे विश्वास है कि सरकार, उद्योग जगत के प्रणेताओं और नागरिकों के सामूहिक प्रयास से, हम एक समृद्ध, आत्मनिर्भर और सुदृढ़ भारत के विजन को प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

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