SAIL, NMDC, मेकॉन, नगरनार स्टील प्लांट के मर्जर पर सेफी की मांग पर इस्पात मंत्रालय का आया जवाब

  • इस्पात मंत्रालय ने लिखा कि ऐसा प्रस्ताव वर्तमान में सरकार के पास विचाराधीन नहीं है।

सूचनाजी न्यूज़, भिलाई। सेफी (SEFI) ने नई दिल्ली में 4 अप्रैल 2021 को आयोजित सेफी काउंसिल (SEFI Council) की बैठक में इस्पात क्षेत्र (Steel Area) के सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विलय हेतु संकल्प पारित किया था। जिससे सेफी से संबद्ध इस्पात मंत्रालय (Ministry of Steel) के अधीन उपक्रम सेल (SAIL), आर.आई.एन.एल. (RINL), नगरनार इस्पात संयंत्र (Nagarnar Steel Plant), एन.एम.डी.सी. (NMDC), मेकॉन आदि का रणनीतिक विलय कर इस्पात मंत्रालय के अंतर्गत एक मेगा स्टील पीएसयू का गठन किया जा सके।

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सेफी के संकल्प को आधार बनाकर 15.12.2021 को लोकसभा में इस्पात क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विलय के विषय पर चर्चा की गई। इसी कड़ी में सेफी ने केन्द्रीय इस्पात मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जी से दिनांक 21.07.2023 को अनुरोध किया था कि सार्वजनिक क्षेत्र के सभी इस्पात उपक्रमों का रणनीतिक विलय किया जाए। इस्पात मंत्रालय द्वारा सेफी को सूचित किया गया कि ऐसा प्रस्ताव वर्तमान में सरकार के विचाराधीन नहीं है। इस्पात मंत्रालय के अवर सचिव श्री एन एस वेंकटेश्वरन ने यह पत्र सेफी चेयरमेन नरेन्द्र कुमार बंछोर को प्रेषित किया है।

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विदित हो कि भारत सरकार (Indian Government) के इस्पात मंत्रालय के निर्देशानुसार सेल जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के महारत्न कंपनी को सरकार के इस्पात नीति 2030 के तहत क्षमता विस्तार हेतु निर्देशित किया गया है। इसके तहत सेल (SAIL) को विस्तारीकरण का बड़ा लक्ष्य दिया गया है जिसके तहत एक लाख करोड़ रूपये की राशि का निवेश 2030 तक करने की योजना है।

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सेफी का मानना है कि भविष्य में इस मद में की जाने वाली निवेश की राशि से आर.आई.एन.एल. एवं नगरनार इस्पात संयंत्र तथा एफ.एस.एन.एल. (FSNL) जैसी इकाईयों का रणनीतिक विलय कर जहां सेल (SAIL) के विस्तारीकरण के लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त किया जा सकता है वहीं इन कंपनियों के कार्मिकों के हितों की रक्षा तथा क्षेत्र के सामाजिक दायित्वों का निवर्हन को भी प्राथमिकता देते हुए इसका बेहतर संचालन किया जा सकता है। इन राष्ट्रीय संपत्तियों को बिकने से बचाया जा सकेगा जिससे इन इकाईयों से जुड़े परिवारों, समाजों को प्राप्त प्रत्यक्ष रोजगार तथा इससे सृजित अपरोक्ष रोजगार को सुरक्षित रखा जा सकेगा।

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सरकार का यह कदम जहां क्षेत्र के विकास (Development) को एक नई गति देगा वहीं बस्तर जैसे दुर्गम वनांचल क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक एवं अधोसंरचना विकास को नई दिशा देने में सफल हो सकेगी। वर्तमान में भारत सरकार ने राष्ट्रीय एवं सामाजिक विकास को पहली प्राथमिकता दी है अतः इस संदर्भ में इसतरह की रणनीतिक विलय से एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र का उदय होगा जो भारत सरकार के विकास की रणनीति को सफल बनाने में योगदान देगा। इस संदर्भ में ज्ञात हो कि भारत सरकार द्वारा इस तरह के रणनीतिक विलय बैंको में किया गया जहां इसका बेहतर परिणाम प्राप्त हुआ है।

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सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात उपक्रमों के अधिकारियों का अपेक्स संगठन सेफी प्रारंभ से ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अंधाधुंध नीजिकरण एवं विनिवेश के स्थान पर, पुर्नगठन तथा रणनीतिक समायोजन पर जोर देता रहा है।

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इस्पात क्षेत्र की सार्वजनिक उपक्रमों में पिछले 06 दशकों में देश के भिन्न स्थानों में इस्पात संयंत्रों के माध्यम से न सिर्फ रोजगार का सृजन किया है बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, आधारभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तथा सीएसआर गतिविधियों के माध्यम से अपने आसपास के क्षेत्र का समग्र विकास किया है। आज देश में “मध्यम वर्ग“ के नाम से प्रसिद्ध, सुशिक्षित व सक्षम वर्ग मूलतः इसी प्रकार के सार्वजनिक उपक्रमों के कारण ही फलफूल पाया और देश की आर्थिक, शैक्षणिक उन्नति का कारण बना। विकास के इस समावेशी मॉडल को बचाने की सख्त जरूरत है जिससे कि एक सक्षम नागरिक एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सके। इस्पात क्षेत्र ने पिछले 60 वर्षों में राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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विनिवेश किये जाने वाले इन इकाईयों की क्षमता पर अगर गंभीरतापूर्वक विचार करें तो इन इकाईयों के अलग-अलग क्षमताओं तथा उपलब्ध संसाधनों को मिलाकर एक लाभकारी रणनीति बनाई जा सकती है जिसमें इन इकाईयों को बेचने की आवश्यकता नहीं होगी। उदाहरण के लिए आज आरआईएनएल के पास कुशल व तकनीकी क्षमता से परिपूर्ण मानव संसाधन उपलब्ध है परंतु इनके पास स्वयं का लौह अयस्क माइंस (Iron Ore Mines) नहीं होने के कारण कच्चे माल की कमी तथा कच्चे माल को अधिक कीमत में खरीदने की बाध्यता ने इस कंपनी के लाभार्जन की क्षमता को न्यूनतम कर दिया है।

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वहीं एनएमडीसी (NMDC) के बस्तर में स्थापित नगरनार इस्पात संयंत् जिसे 25 हजार करोड़ रूपये खर्च करके चालू किया जा रहा है। इस संयंत्र के पास कच्चे माल की संपूर्ण उपलब्धता तो है परंतु इसे चलाने के लिए कुशल व तकनीकी क्षमता से परिपूर्ण मानव संसाधन की उपलब्धता नहीं है। जिसके चलते इस संयंत्र की भी लाभार्जन क्षमता भारी रूप से प्रभावित हुई है।

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राष्ट्र को हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी कोई लाभ नहीं हो पा रहा है। अतः इन इकाईयों के रणनीतिक विलय से जहां एक इकाई को कच्चा माल उपलब्ध हो पाएगा वहीं दूसरी इकाई को तकनीकी क्षमता से परिपूर्ण मानव संसाधन मिलने में सहुलियत होगी। इस प्रकार दोनों ही कंपनियां एक दूसरे की पूरक बनकर लाभार्जन करने लगेगी जो भारत सरकार को आर्थिक संबलता प्रदान करेगा।

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इस क्रम में फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड (Fero Scrap Nigam Limited) जो कि इस्पात क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के साथ अनेक परियोजनाओं में भागीदार है तथा पूर्व में शासन के द्वारा इस कंपनी का विलय सेल (SAIL) अथवा आर.आई.एन.एल. (RINL) में किये जाने के प्रस्ताव पारित किया गया था। परंतु वर्तमान में केन्द्र शासन ने फेरो स्क्रैप निगम के निजीकरण का निर्णय लिया है। फेरो स्क्रैप निगम को भी इस रणनीतिक विलय में शामिल कर लाभार्जन की क्षमता को अधिक बढ़ाया जा सकता है।

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राष्ट्रहित में लाभार्जन की इस क्षमता को बढ़ाने हेतु आर.आई.एन.एल., नगरनार इस्पात संयंत्र तथा एफएसएनएल (FSNL) को बेचने के बजाए इनका रणनीतिक विलय महारत्न कंपनी सेल (SAIL) के साथ कर एक मेगा पीएसयू का निर्माण किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार देश इस्पात क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से अग्रसर होने के साथ ही रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। साथ ही सीएसआर गतिविधियों को भी गति प्रदान कर सामाजिक तथा सांस्कृतिक उत्थान के भारत सरकार के लक्ष्यों को भी तेजी से पूर्ण करना संभव हो सकेगा। इस रणनीतिक विलय से सरकार के विकास के एजेंडे को भी नई दिशा मिलेगी।

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सेफी अध्यक्ष श्री नरेन्द्र कुमार बंछोर ने बताया कि प्रस्तावित संयंत्र एक दूसरे के अनुपूरक बन सकते हैं। इस्पात मंत्रालय को सेफी के रणनीतिक विलय के सुझाव पर विचार करना चाहिए। यदि सेल, आर.आई.एन.एल. व नगरनार इस्पात संयंत्र तथा एफएसएनएल को एक मेगा कंपनी बनाया जाता है तो इस कंपनी के पास उन्नत इस्पात संयंत्र तथा प्रचुर मात्रा में आयरन अयस्क और निर्यात हेतु स्वयं का पोर्ट उपलब्ध रहेगा जिससे यह राष्ट्र के लिए अत्यंत ही लाभकारी होगा। अतः केन्द्र शासन को इसके निजीकरण (Privatization) के स्थान पर इसके पुर्नगठन व रणनीतिक विलय कर इसका सुनियोजित संचालन हेतु प्रयास किया जाना चाहिए।

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